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बांग्लादेश के आजादी समारोह में पाकिस्तानी राजनयिकों के शामिल होने पर रोक (TFA Exclusive)

File: National memorial at Kustia in Bangladesh adjoining India border depicting surrender of Pakistan Army surrender during '71 war.

By Manish Shukla

’71 के युद्ध में भारत के हाथों हार का दर्द आज तक पाकिस्तान को सता रहा है. यही वजह है कि पाकिस्तान ने विदेशों में स्थित अपनी सभी दूतावास और राजनयिकों को आदेश जारी किया है कि बांग्लादेश आर्म्ड फोर्सेज डे से जुड़े किसी कार्यक्रम और समारोह में शामिल न हों.  

खुफिया एजेंसियों से मिली एक्सलूसिव जानकारी से पता चला है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर में स्थित अपने सभी दूतावास, हाई कमीशन और मिशन से जुड़े डिप्लोमैट्स को आदेश जारी कर कहा है कि 21 नवंबर को मनाये जा रहे बांग्लादेश आर्म्ड फोर्स डे के कार्यक्रमों में वो शामिल न हो. इस महीने 13 नवंबर को इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने खासतौर से भारत और बांग्लादेश में स्थित अपने हाई कमीशन को ऐसे किसी कार्यक्रमों में शामिल न होने का फरमान जारी किया है.

21 नवंबर, 1971 को बांग्लादेश (उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान) की गुरिल्ला-सेना (मुक्ति-वाहिनी) ने पाकिस्तानी सेना पर बड़ा हमला बोला था. बांग्लादेश सरकार इस मौके पर भारत समेत दुनिया के देशों में स्थित अपने दूतावासों में खास तरीके के कार्यक्रम आयोजित करती है जिसमें सभी देशों के राजदूतों को भी आमंत्रित किया जाता है. फजीहत से बचने के लिए पाकिस्तान ने अपने सभी दूतावास को ऐसे कार्यक्रम में शामिल न होने को कहा है.

इस्लामाबाद में पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के दफ्तर में तैनात इलयास महमूद निजामी की तरफ से अपने सभी मिशन को भेजे गये फरमान में कहा गया है कि बांग्लादेश में 21 नवंबर को 52वें आर्म्ड फोर्सेज डे के लिए आये किसी भी निमंत्रण में उनके डिप्लोमैट शामिल न हो. निजामी पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय में साउथ एशियन डेस्क के इंचार्ज हैं.

पाकिस्तान ने 24 साल (1947-71) के अपने राज में पूर्वी पाकिस्तान के आम लोगों पर बेतहाशा जुल्म किये थे. लाखों की तादाद में बेगुनाह लोगों का कत्लेआम किया गया. पाकिस्तानी सेना ने मानवाधिकारों के उल्लंघन की सभी सीमाओं को पार कर दिया था. पाकिस्तानी सेना से परेशान होकर बड़ी संख्या में बांग्लादेशी लोग भारत में शरण लेने के लिए पलायन करने लगे. पाकिस्तान के जुल्मों-सितम और दमनकारी नीतियों से परेशान होकर पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ था. 

भारतीय सेना ने भी बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का समर्थन किया. महज 13 दिन की लड़ाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी. 16 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तानी सेना के 93 हज़ार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया. भारत मेें हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

बांग्लादेश सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से गुजारिश की है कि 25 मार्च को अंतरराष्ट्रीय नरसंहार दिवस के रूप में मान्यता दी जाए. यही नहीं फरवरी 2023 में बांग्लादेश ने आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान से 1971 में अपनी सेना की तरफ से किए गए अत्याचारों के लिए माफी मांगने को कहा था. यह मामला बांग्लादेशी विदेश मंत्री और पाकिस्तान के विदेश राज्य मंत्री के बीच श्रीलंका में बैठक के दौरान उठा था, जहां दोनों श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस में भाग लेने के लिए उपस्थित थे.

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय सैनिकों के योगदान के प्रति अपने आभार को व्यक्त करने के लिए बांग्लादेश सरकार एक वॉर-मेमोरियल बनवा रही है जिसके अगले महीने पूरा होने की उम्मीद है (जब 71 युद्ध की 53वीं वर्षगांठ होगी). साल 2021 में बांग्लादेश की यात्रा पर गये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस युद्ध-स्मारक की आधारशिला रखी थी. सैन्य स्मारक की दीवार पर बांग्लादेश युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए 1600 से अधिक  भारतीय सैनिकों के नाम अंकित किए गए हैं. 

पिछले साल दिसंबर के महीने में भारत ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल, भारत और बांग्लादेश ने एक-दूसरे के पूर्व-सैनिकों (वॉर-वेटरन्स) और सेवारत अधिकारियों को समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था. इस कार्यक्रम में बांग्लादेश के 29 फ्रीडम फाइटर्स और बांग्लादेश सशस्त्र बलों के छह (06) सेवारत अधिकारियों ने कोलकाता का दौरा किया था और भारत की तरफ से 30 वॉर-वेटरन्स और  भारतीय सशस्त्र बलों के छह सेवारत अधिकारी, बांग्लादेश के विजय दिवस समारोह में भाग लेने के लिए ढाका गए थे. 

(मनीष शुक्ला लंबे समय से डिफेंस और आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी टीवी पत्रकारिता कर रहे हैं. उन्हें ज़ी न्यूज और लाइव इंडिया जैसे चैनल में काम करने का अनुभव है.) 

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