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Siachen Pioneers: सबसे ऊंची बैटलफील्ड की लाइफ-लाइन (TFA Special)

Helicopters flying in Siachen Glacier.

सियाचिन ग्लेशियर में पाकिस्तान के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे हो चुके हैं. पाकिस्तान के साथ 20 साल पहले युद्धविराम समझौता भी हो गया था. बावजूद इसके दुनिया के सबसे उंची बैटलफील्ड यानी रणक्षेत्र में ये ऑपरेशन आज भी जारी है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 20-22 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात हमारे सैनिकों को जरूरी रसद, तेल और हथियार तक कैसे पहुंचाएं जाते हैं. इसका जवाब है सियाचिन पायनियर्स–भारतीय वायुसेना की लेह स्थित 114 हेलीकॉप्टर यूनिट.

80 के दशक के शुरुआती सालों में पाकिस्तान को चकमा देकर भारत ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर को अपने अधिकार-क्षेत्र में कैसे लिया था वो हम सभी अच्छे से जानते हैं. लेकिन तभी से पाकिस्तान की बुरी नजर इस ग्लेशियर पर रहती है. यहां तक की कारगिल युद्ध भी पाकिस्तान ने इसी ग्लेशियर की याद में लड़ा था. ऐसे में भारतीय सैनिक 12 महीने 24×7 इस ग्लेशियर की रक्षा करते हैं. 20-22 हजार फीट तक की ऊंचाई पर हमेशा बर्फ से ढकी चौकियों पर हमारे देश के वीर जवान तैनात रहते हैं. 13 अप्रैल 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन पर पाकिस्तान से पहले पहुंचने के लिए ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया था. 

भारतीय वायुसेना की सियाचिन पायनियर्स हेलीकॉप्टर यूनिट ही है सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ-लाइन. सियाचिन पायनियर्स (114 एचयू) लेह स्थित एयरबेस पर तैनात रहती है. इस यूनिट में इनदिनों चीता और चीतल हेलीकॉप्टर तैनात रहते हैं. सियाचिन में तैनात सफेद सोल्जर्स किस तरह सोनम और कुमार जैसी चौकियों पर तैनात रहते हैं तो वो संभव हो पाता है इस यूनिट के हेलीकॉप्टर और जांबाज पायलट द्वारा. वायुसेना के साथ-साथ थलसेना की एविएशन कोर भी सियाचिन में तैनात सैनिकों को जरूरी सामान पहुंचाती है. 

सियाचिन पायनियर्स को वर्ष 1964 में लेह पर तैनात किया गया था. अगले साल यानी 1965 के युद्ध में ही 114 यूनिट के हेलीकॉप्टर को मिलिट्री कमांडर्स को फॉरवर्ड लोकेशन से लेकर जम्मू कश्मीर और घायल सैनिकों को सुरक्षित निकालने के लिए भी इस्तेमाल की गई. उस वक्त इस यूनिट में चेतक हेलीकॉप्टर हुआ करते थे. लेकिन 114 यूनिट को पहली बार सियाचिन बेस कैंप में लैंड करने का मौका मिला 1978 में. उन दिनों खबर आई थी कि पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर के लिए अचानक अपने एक्सपीडिशन बढ़ा दिए हैं. ऐसे में भारतीय सेना ने कैप्टन नरेंद्र कुमार बुल के नेतृत्व में एक पर्वतारोही दल को  सियाचिन ग्लेशियर भेजा था. उसी दौरान लेह से सियाचिन के लिए पहली बार लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए 114 यूनिट के चेतक हेलीकॉप्टर ने पहली बार सियाचिन में लैंडिंग की थी. क्योंकि उससे पहले तक सियाचिन भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए ही नो-मैन्स लैंड की तरह था. सियाचिन में उतरने के बाद से ही वायुसेना में लेह स्थित 114 यूनिट को सिचायिन पायनियर्स का नाम दे दिया गया. इस हेलीकॉप्टर को फ्लाई किया था एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने. उस वक्त वे एक युवा पायलट थे. 

सियाचिन में पहली लैंडिंग के छह साल बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया और पाकिस्तानी सेना से पहले सियाचिन पर पहुंचकर कब्जा कर लिया था. भारतीय सैनिकों ने यहां के साल्टोरो रिज पर अपनी चौकियां बना लगी और फिर वहीं डट गए. 13 अप्रैल 1984 को वायुसेना ने भारतीय सैनिकों को सिया ला और बिलाफ़ॉन्ड ला यानी दर्रे पर एयर-ड्रॉप किया था. 

पाकिस्तान को ये बात नागवार गुजरी और फिर क्या था अगले 20 सालों तक पाकिस्तानी सेना भारतीय चौकियों पर तोप से गोलाबारी करने लगे. लेकिन तोप के गोले तक इंडियन एयरफोर्स के पायलट को नहीं रोक पाए. 80 के दशक के आखिरी सालों में सिचायिन पायनियर्स के पायलट रह चुके रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन संदीप मेहता आज भी पाकिस्तान की गोलाबारी के बीच अपने फ्लाइंग की हैरतअंगेज लेकिन सच्चे किस्से सुनाते हैं तो किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. ग्रुप कैप्टन मेहता ने बताया कि कैसे उनके जैसे पायलट पाकिस्तानी गोलाबारी के बीच सेना के कैंप और चौकियों तक जरूरी सामान पहुंचाते थे. 

वर्ष 2003 में भारत और पाकिस्तान ने सिचायिन में गोलीबारी रोकने के लिए युद्ध-विराम समझौता कर लिया था. अब सियाचिन में दोनों देशों के बीच एलओसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को एजीपीएल यानी एक्चुअल ग्राउंड पोजीशनिंग लाइन नाम दे दिया गया. लेकिन अब भारत के लिए एक दूसरा दुश्मन तैयार बैठा था. ये दुश्मन था सियाचिन का मौसम और यहां की टेरेन यानी भौगोलिक परिस्थिति. खराब मौसम के कारण यहां हेलीकॉप्टर फ्लाई करना एक बड़ी चुनौती है. बावजूद इसके सरहदों की रक्षा में दिन-रात जुटे सैनिकों की मदद के लिए सियाचिन पायनियर्स के पायलट हमेशा तैयार रहते. कई बार खुद पायलट को भी नुकसान उठाना पड़ा. लेकिन जैसा कि सियाचिन पायनियर्स के मौजूदा कमाडोर कमांडेंट ने कहा कि वायुसेना के जिन पायलट ने यहां ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवाई उनकी स्प्रिट यानी आत्मा बाकी के पायलट के लिए एक स्पिरिट यानी मजबूती का काम करने लगी. 

80 के दशक में सियाचिन पायनियर्स का हिस्सा रह चुके कमाडोर मनोज मसंद की मानें तो यहां हेलीकॉप्टर फ्लाई करना इसलिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यहां तैनात सैनिक और पायलट दोनों के लिए ही एक बड़ी परीक्षा होती है. और वो परीक्षा है ह्यूमन एंड्यूरेंस की. शायद यही वजह है कि 114 यूनिट का आदर्श-वाक्य ही है—हम मुश्किल काम को भी रुटीन की तरह करते हैं, क्योंकि असंभव कार्य थोड़ा ज्यादा समय ले सकता है. 

सियाचिन पायनियर्स ने ग्लेशियर के साथ साथ भारतीय वायुसेना के लिए एक रिकॉर्ड भी कायम किया है. और वो रिकॉर्ड है दुनिया के सबसे ऊंचाई वाले इलाके में लैंडिंग का. वर्ष 2004 में सियाचिन पायनियर्स के पायलट ए एस बुटोला ने सियाचिन के करीब ही लद्दाख के सासेर कांगरी चोटी पर 25 हजार से भी ज्यादा की ऊंचाई पर लैंडिंग कराकर एक रिकॉर्ड बनाया था. उस वक्त बुटोला ही वायुसेना और एचएएल के उस प्रोजेक्ट के पीछे थे जिसमें चीता हेलीकॉप्टर में एएएल ध्रुव का पावरफुल इंजन लगाकर नया चीतल हेलीकॉप्टर तैयार किया गया था. 

सियाचिन पायनियर्स में पायलट का सिलेक्शन भी बेहद सोच समझ कर किया जाता है. चारों तरफ बर्फ के कारण पायलट डिश-ओरिएंट तक हो सकते हैं. कभी कभी बर्फ से ढकी एक छोटे से जमीनी टुकड़े पर हेलीकॉप्टर को लैंड कराना पड़ता है तो ग्लेशियर में मौजूद क्रेवास यानी दरारें भी मुश्किलें खड़ी कर देती हैं. यही वजह है कि सेना और सरकार ने ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल बाद भी सियाचिन को एक एक्टिव रणक्षेत्र घोषित कर रखा है. क्योंकि यहां निभाए जाने वाला कर्तव्य किसी युद्ध में लड़ने से कम नहीं है. यही वजह है कि वायुसेना की सियाचिन पायनियर्स पिछले 40 सालों से भारतीय सेना के लिए एक सपोर्ट रोल में हमेशा तत्पर रहती है. पिछले 40 सालों में सियाचिन पायनियर्स ने सात हजार से भी ज्यादा सैनिकों और लेह-लद्दाख के आम नागरिकों को अलग-अलग ऑपरेशन में इवेक्युएट कर हॉस्पिटल पहुंचाने और जान बचाने में बेहद ही कारगर भूमिका निभाई है. 

सियाचिन पायनियर्स के अदम्य साहस, कर्तव्य-परायणता और दृढ संकल्प के लिए अब तक 60 से ज्यादा वीरता मेडल से पुरस्कृत किया जा चुका है जिसमें 04 वीर चक्र, 07 शौर्य चक्र और दो दर्जन से ज्यादा वायुसेना मेडल शामिल हैं. सियाचिन पायनियर्स को प्रेसिडेंट स्टैंडर्ड से भी नवाजा जा चुका है. 13 अप्रैल को ऑपरेशन मेघदूत की 40वीं वर्षगांठ है तो इसी महीने की एक तारीख को यानी एक अप्रैल को सियाचिन पायनियर्स ने अपनी 60वीं वर्षगांठ मनाई है यानी डायमंड जुबली. ऐसे में हैप्पी लैंडिंग टू सियाचिन पायनयर्स–ओल्वेज.

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