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गलवान के तीन भारतीय कमांडर पहुंचे ताइवान

 पिछले एक साल से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि चीन ताइवान पर कब्जा करने जा रहा है. लेकिन ये कब्जा इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि अमेरिका की मदद ले रहे ताइवान ने अपनी सेना को चीन से लड़ने के लिए तैयार कर रखा है. ऐसे में अगर भारत, बिल्कुल ठीक सुना आपने, भारत, ताइवान की मदद की लिए सामने आ जाता है तो क्या बाजी पलट जाएगी. वही भारत जिसने तीन साल पहले गलवान घाटी में चीन को जबरदस्त पटखनी दी थी और पूर्वी लद्दाख में अभी भी भारत और चीन की तनातनी जारी है. ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि भारत के जिन तीन टॉप मिलिट्री कमांडर्स ने गलवान घाटी की लड़ाई में चीन को पटखनी दी थी वो आजकल ताइवान के दौरे पर हैं.

पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली एलएसी पर भारत को लगातार परेशान करने वाला देश चीन अब अपने पड़ोसी देश ताइवान पर गिद्ध की तरह निगाहें टिका कर बैठा है. रोज चीन के फाइटर जेट और युद्धपोत ताइवान स्ट्रेट में घुसपैठ करते हैं। ताइवान की एयर स्पेस का उल्लंघन करते हैं। एक-एक हफ्ते तक ताइवान जैसे बेहद ही छोटे आइलैंड के इर्द गिर्द मिलिटरी एक्सरसाइज के दौरान गोले बरसाकर डराने की कोशिश करता है. कुछ मिलिटरी एक्सपर्ट का मानना है कि चीन अगले दो-तीन साल में ताइवान पर कब्जा कर लेगा। ये जो मिलिटरी ड्रिल चीन लगातार कर रहा है ये उसकी रिहसर्ल है.

चीन में जहां कम्युनिस्ट पार्टी का ऑथॉरिटेरेनियम शासन है, ताइवान एक लोकतांत्रिक देश है. अमेरिका और जापान सहित सभी G-7 देश चीन की दादागिरी का विरोध करते हैं और ताइवान में डेमोक्रेसी का समर्थन करते हैं. चीन को ये कतई बर्दाश्त नहीं है. यहां तक की जब इन देशों का कोई प्रतिनिधि ताइवान जाता है तो चीन तिलमिला जाता है और उसका जबरदस्त विरोध करता है.

पिछले साल जब अमेरिकी सीनेट की स्पीकर नैन्सी पेलोसी जब ताइवान की यात्रा की थी तो चीन ने लगातार चार-पांच दिन तक ताइवान के चारों तरफ एक बड़ा युद्धाभ्यास किया और जमकर गोलीबारी की, बम बरसाए. यहां तक की नैन्सी पेलोसी के विमान को भी आसमान में ट्रेल करने की कोशिश की. साफ है ये चीन की उकसावे की कारवाई थी.

चीन के मुकाबले ताइवान बेहद ही छोटा सा देश है. उसकी सेना भी चीन की पीएलए आर्मी का एक बंटा दस भाग भी नहीं है. इसके बावजूद ताइवान की सेना दुनिया की सबसे बड़ी और एडवांस पीएलएआर्मी से अपने मातृभूमि की रक्षा करने के लिए भिड़ने के लिए तैयार है.

ताइवान की सेना के दृढ संकल्प के पीछे वहां की राष्ट्रपति अक बड़ी ड्राइविंग फोर्स है. नाम है साई इंग वेन, जो सीधे शी जिनपिंग और चीन जैसी महाशक्ति से भिड़ने के लिए तैयार हैं. करीब 65 साल की ये महिला देखने में बेहद शालीन और सौम्य है लेकिन वो ताइवान सेना की मिलिटरी ड्रिल में हमेशा देखने को मिल जाती है। अपनी सेना की तैयारियों की समय समय पर समीक्षा करती है. इस दौरान वेसेना की कैमोफ्लाज बुलेट प्रूफ जैकेट पहने दिखती हैं.

साई इंग वेन ने साफ कर दिया है कि भले ही उन्हें अमेरिका और दूसरे देशों उनके देश के पीछे ढालबनकर खड़े हैं वे अपने देश की सेना को चीन के खिलाफ मजबूत बनाना उनका मिशन है. इसी क्रम में ताइवान के कैटागेलन फॉरम ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक बड़ी सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया.

इस इंटरनेशनल डायलॉग में अमेरिका, जापान और इजरायल सहित कई बड़े देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिय. खुद साई इंग वेन ने भी इस सम्मेलन को संबोधित किया। लेकिन इस सम्मेलन में भारत की मौजूदगी को देखकर पूरी दुनिया हैरान रह गई.

कैटागेलन फॉरम में भारत के तीन पूर्व सेना प्रमुखों ने हिस्सा लिया. पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर केएस भदौरिया.

एडमिरल करमबीर सिंह से ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने खास मुलाकात की, जिसका आधिकारिक वीडियो भी ताइवान ने रिलीज किया.

एडमिरल करमबीर सिंह ने भी इस सम्मेलन को संबोधित किया और साफ कर दिया कि भारत अपने पड़ोस में दूसरा साउथ चायना सी नहीं चाहता है जहां चीन हमेशा अपनी दादागिरी दिखाता है और दूसरे देशों के युद्धपोत तो क्या वहां की एयरस्पेस में दूसरे देशों के विमानों तक को नहीं फ्लाई करने देता है. यानि चीन की ग्रे जोन टेक्टिक्स को किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं रिपीट करने दिया जाएगा.

एडमिरल करमबीर सिंह ने साफ कर दिया कि ताइवन स्ट्रेट में युद्ध नहीं होने दिया जाएगा यानि चीनको ताइवान पर आक्रमण नहीं करने दिया जाएगा और इसके लिए बैलेंस ऑफ पावर लोकतांत्रिक देंशों के पक्ष में होनी चाहिए ये बताने की जरूरत नहीं है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतत्रिक देश है. हालांकि, एडमिरल करमबीर सिंह सहित भारत के तीनों पूर्व सेना प्रमुखों की ताइवान यात्रा पूरी तरह प्राईवेट थी और भारत सरकार ने इसे स्पोंसर नहीं किया था लेकिन ताइवान जिस तरह जियो-पॉलिटिकल विवाद का एपीसेंटर बनता जा रहा है, उसमें भारत की क्या पोजिशन होगी उसेदर्शाता है. क्योंकि ये तीनों मिलिटरी कमांडर उस वक्त भारत की सेना के तीनों अंगों के प्रमुख थे जब पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ गलवान घाटी की झड़प हुई थी और फिर तनातनी रही थी.

यहां पर ये भी बताना बेहद जरूरी है कि हाल ही में सीडीएस अनिल चौहान ने सेना को एक स्टडी पर काम करने का ऑर्डर दिया है जिससे ये पता किया जाएगा कि अगर चीन ने ताइवान पर आक्रमणकिया और दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ तो इसका भारत पर क्या असर होगा। भारत का रेस्पोंस क्या होगा ।क्योंकि चीन का एलएएसी पर भारत से विवाद जारी है। तो ऐसे में क्या से माना जा सकता है कि टू-फ्रंट चैलेंज या वार सिर्फ भारत के लिए ही चुनौती नहीं है, चीन के लिए भी उतनी ही बड़ी चुनौती है। यानि एक तरफ अमेरिका और G-7 देशों के समर्थन वालाताइवान और दूसरी तरफ भारत।

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