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सरकार ने डोवल को फिर बनाया NSA, TFA ने बताया था सबसे पहले

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मोदी 3.0 में भी अजीत डोवल के कंधों पर ही राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी होगी. गुरुवार को सरकार ने डोवल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर नियुक्ति की घोषणा की. दूसरे कार्यकाल की तरह ही इस बार भी डोवल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है. कैबिनेट की नियुक्ति कमेटी (एसीसी) ने कहा कि अगले आदेश या फिर पीएम मोदी के पद पर बने रहने तक डोवल एनएसए के पद पर बने रहेंगे. 

एसीसी ने बताया कि अजीत डोवल की नियुक्ति 10 जून से मान्य होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह वाली एसीसी ही देश के उच्च पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति करती है. खास बात ये है कि टीएफए ने 10 जून को ही बता दिया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी डोवल के कंधों पर डालने जा रहे हैं. एसीसी ने ये नियुक्ति पीएम मोदी के इटली दौरे से पहले की है. इटली में जी-7 समिट में हिस्सा लेने से पहले मोदी ने डोवल से जम्मू-क्षेत्र में एक के बाद एक हो रहे आतंकी हमलों के बारे में पूरी जानकारी ली. इस दौरान पीएम ने आदेश दिया कि काउंटर-टेररिज्म से जुड़ी सभी क्षमताओं के फुल-स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर जम्मू क्षेत्र में आतंकवाद पर लगाम कसी जाए. 

नियुक्ति के बाद डोवल ने गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी उनके दफ्तर में जाकर मुलाकात की. राजनाथ सिंह ने भी गुरुवार को ही साउथ ब्लॉक में अपना कार्यभार संभाला था. 

दरअसल, तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद सोमवार को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साउथ ब्लॉक स्थित अपने दफ्तर (पीएमओ) पहुंचे तो उनके साथ दो अधिकारी भी चल रहे थे. दाएं तरफ थे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और बाएं तरफ थे प्रमुख सचिव पी के मिश्रा. उसी दिन लगभग साफ हो गया था कि पहले और दूसरे कार्यकाल की तरह ही इस बार भी एनएसए डोवल पीएम मोदी का दाहिना हाथ बने रहेंगे. लेकिन इस बार ये डगर चुनौती भरी हो सकती है (पीएम मोदी का ‘दाहिना हाथ’ बने रहेंगे डोवल !).

नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) के तौर पर डोवल की पहली प्राथमिकता होगी रविवार को जम्मू-कश्मीर के रियासी में तीर्थ-यात्रियों से भरी बस पर हुए आतंकी हमले के कसूरवारों को ढूंढ निकालकर ‘न्यूट्रलाइज’ करना. आतंकियों ने ऐसे समय पर कटरा जा रही बस पर हमला किया था जब पीएम मोदी राष्ट्रपति भवन में तीसरी बार देश की कमान संभालने के लिए शपथ ले रहे थे. लेकिन ये पहली घटना नहीं है जब कश्मीर घाटी के बाहर पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने किसी बड़े हमले को अंजाम दिया है. पिछले डेढ़ साल से ‘टीआरएफ’ नाम के आतंकी संगठन ने जम्मू-क्षेत्र के पुंछ, राजौरी और रियासी जिलों में अचानक आतंकी वारदात बढ़ा दी हैं. हालांकि, टीएफएफ ने बाद में जिम्मेदारी से इंकार कर दिया. 

टीआरएफ (‘द रेजिस्टेंस फोर्स’) नाम का आतंकी संगठन पाकिस्तान से ऑपरेट होने वाले लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद का मिलाजुला स्वरूप है. इस संगठन को पीर-पंजाल रेंज के दक्षिण में पुंछ-राजौरी इलाकों में एक बार फिर से आतंकवाद को जिंदा करने की जिम्मेदारी दी गई है. पाकिस्तान से हुए युद्ध-विराम समझौते (फरवरी 2021) से पहले पुंछ-राजौरी से सटी लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम (बैट) सक्रिय रहती थी और भारतीय सैनिकों के हत्या करने के बाद शवों को क्षत-विक्षत करती थी. बैट में पाकिस्तानी सेना के एसएसजी (स्पेशल फोर्स) कमांडो और आतंकी मिले-जुले तौर पर होते थे. 

जिस तरह बीच सड़क में खड़े होकर सेना की यूनिफॉर्म पहने आतंकियों ने रविवार को बस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई उससे साफ होता है कि उन्होंने फौजी ट्रेनिंग ली हुई है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या पाकिस्तानी बैट टीम एलओसी पार कर जम्मू के जंगलों में सक्रिय हो गई है. क्योंकि पिछले साल दिसंबर के महीने में आतंकियों ने जब पुंछ में सेना की एक जिप्सी पर हमला किया था तो एक सैनिक के शव के साथ बर्बरता पूर्ण कार्रवाई की थी. यहां तक की घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने की कोशिश भी की गई थी. सैनिकों के काफिले या फिर पैट्रोलिंग कर रहे सैनिकों की ये एकमात्र घटना नहीं है. पिछले डेढ़ साल में ऐसी 8-10 घटनाएं सामने आ चुकी हैं. 

धारा 370 हटने के बाद से कश्मीर घाटी में शांति लौट चुकी है. हाल ही में शांतिपूर्वक संपन्न हुए लोकसभा चुनाव भी इसकी बानगी है. लेकिन एनएसए डोवल के लिए अब जम्मू में आतंकवाद के लौटने से पहले उसके फन को कुचलना होगा. 

एनएसए के तौर पर डोवल ने पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में म्यांमार में उग्रवादियों के खिलाफ क्रॉस-बॉर्डर रेड और पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करने में अहम भूमिका निभाई थी. साथ ही पुलवामा हमले का बालाकोट एयर-स्ट्राइक से बदला लेने और विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान से सकुशल वापस लाने में डोवल की ही रणनीति काम आई. मोदी के दूसरे कार्यकाल में जब कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तो खुद डोवल ग्राउंड जीरो पर उतरकर आम लोगों के बीच शोपियां जैसे संवेदनशील इलाके में पहुंच गए थे. दिल्ली हिंसा के दौरान, उन्होंने पुलिस अधिकारियों के साथ सीलमपुर में मार्च कर खुद लोगों को ढांढस बढ़ाया था. लेकिन पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल शुरु होने से पहले सोशल मीडिया पर ऐसी भ्रांति फैलाई गई की डोवल अब रिटायरमेंट लेना चाहते हैं. ऐसे में सोमवार को खुद पीएम मोदी जब डोवल के साथ साउथ ब्लॉक में दाखिल हुए थे सभी अफवाहों का बाजार बंद हो गया. 

कश्मीर के अलावा आंतरिक-सुरक्षा के मद्देनजर एनएसए के लिए मणिपुर की हिंसा भी बड़ा सिर-दर्द है. पिछले एक साल से ज्यादा हो चुका है लेकिन मणिपुर में जातीय हिंसा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. सोमवार को ही उग्रवादियों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की एडवांस पार्टी पर जानलेवा हमला कर दिया. ताजा हिंसा का शिकार जिरीबाम जिले का मुख्यमंत्री दौरा करना चाहते थे. सुरक्षा के मद्देनजर उनकी सिक्योरिटी में तैनात एडवांस टीम को पहले वहां भेजा गया था लेकिन रास्ते में ही उग्रवादियों ने हमला बोल दिया. हमले में मुख्यमंत्री की सुरक्षा के जवान घायल हुए हैं. खुद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने  सरकार बनने के बाद मणिपुर की हिंसा को रोकने का आह्वान किया है.  

पिछले चार साल से पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन से चल रहा विवाद भी डोवल के लिए एक बड़ी चुनौती है. ताइवान के राष्ट्रपति लाई जिंग-ते के साथ बधाई संदेश के आदान-प्रदान को लेकर चीन ने पीएम मोदी को देख लेने की धमकी तक दे डाली है. ऐसे में भारतीय सेना को चीन के किसी भी दुस्साहस से निपटने के लिए 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर दिन-रात चौकन्ना रहना बेहद जरूरी होगा. 

खालिस्तान आंदोलन भी डोवल के लिए एक बड़ा सिर-दर्द बना हुआ है. खास तौर से अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों में भारत-विरोधी अलगाववादी गतिविधियों को रोकना बेहद जरुरी है. साथ ही खालिस्तानी आतंकियों को लेकर अमेरिका और कनाडा के साथ जो संबंधों में खटास आई है, उसे भी पटरी पर लाना बेहद जरुरी है. ये इसलिए भी जरूरी है कि पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल के शुरुआत होते ही अमेरिका के एनएसए जैक सुलीवन भारत के दौरे पर आ रहे हैं. उनके दौरे के एजेंडे में भारत के साथ रक्षा-क्षेत्र में मेक इन इंडिया के तहत सहयोग बढ़ाना तो होगा ही साथ ही एक पूर्व-भारतीय अधिकारी के खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कोशिश की साजिश में शामिल होना भी वरीयता क्रम में ऊपर हो सकता है. 

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