TheFinalAssault Blog Defence Acquisitions ऊहापोह के बाद तपस निगहबानी के लिए तैयार
Acquisitions Alert Breaking News Defence

ऊहापोह के बाद तपस निगहबानी के लिए तैयार

File

लंबे ऊहापोह के बाद आखिरकार वायुसेना और नौसेना, स्वदेशी ड्रोन ‘तपस’ को अपने बेड़े में शामिल करने के लिए तैयार हो गए हैं. वायुसेना जल्द ही रक्षा मंत्रालय से कुल दस (10) तपस ड्रोन के ऑर्डर का आग्रह करने जा रहा है. इनमें से छह ड्रोन वायुसेना के लिए होंगे और बाकी चार भारतीय नौसेना के लिए. 

पिछले साल कर्नाटक के चित्रदुर्ग में परीक्षण के दौरान तपस ड्रोन के क्रैश होने के बाद डीआरडीओ के इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डालने की मांग की जाने लगी थी. क्योंकि, तपस ड्रोन सशस्त्र सेनाओं के पैरामीटर पर खरा नहीं उतर पा रहा था. 

सेना के तीनों अंगों को अमेरिकी एमक्यू-9 रीपर ड्रोन की तर्ज पर एक ‘हेल’ (एचएएलई) यानी ‘हाई ऑल्टिट्यूड लॉन्ग एंडूयरेंस यूएवी’ की दरकार थी. जबकि तपस, ‘मेल’ (एमएएलई) कैटेगरी में माना जाता है यानी ‘मीडियम ऑल्टिट्यूड लॉन्ग एंडयूरेंस’. बावजूद इसके वायुसेना और नौसेना तपस के अधिग्रहण के लिए तैयार हैं. माना जा रहा है कि इस्तेमाल के दौरान, डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) तपस के मार्क-2 वर्जन पर काम करता रहेगा. ठीक वैसे ही जैसे की स्वदेशी एलसीए तेजस फाइटर जेट. 

डीआरडीओ द्वारा तैयार तपस ड्रोन को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) का साझा उपक्रम उत्पादन करेगा. रक्षा मंत्रालय से करार करने के 24 महीनों के भीतर इस साझा उपक्रम को सशस्त्र-बलों को सप्लाई पूरी करनी होगी. 

दरअसल, तपस का हिन्दी में अर्थ होता है ‘गर्मी’. यानि ऐसा ड्रोन जो अपनी तपन या गर्मी से दुश्मन के नापाक इरादों को पिघलाने का माद्दा रखता है. इंग्लिश में इस ड्रोन का नाम है ‘तापस’ (टीएपीएएस) यानी ‘टेक्टिकल एयरबोर्न प्लेटफॉर्म फॉर एयर सर्विलांस’. डीआरडीओ ने इसका पूरा नाम दिया है तपस–बीएच 201 यानि बियोंड होराइजन 201.

बेंगलुरु के करीब चित्रदुर्ग में डीआरडीओ की एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एडीई) लैब ने तपस के 200 से भी ज्यादा परीक्षण पूरी कर चुकी है. यानि तपस अब तक 200 बार उड़ान भर चुका है. खास बात ये है कि 200वां टेस्ट, ट्राई-सर्विस यानी देश की थलसेना, वायुसेना और नौसेना की एक ज्वाइंट और इंटीग्रेटेड टीम की मौजूदगी में किया गया था. 

खुद डीआरडीओ ने इस तपस की इस फ्लाइट के बाद एडीई के साइंटिस्ट और ट्राई-सर्विस दल के साथ तस्वीर साझा की थी. इस तस्वीर में एक एयरक्राफ्ट भी पीछे दिखाई पड़ रहा है. दूसरी तस्वीर में पायलट और दूसरी मिलिटरी ऑफिसर तपस के कमांड एंड कंट्रोल सेंटर में दिखाई दे रहे हैं. लेकिन इसी साल जनवरी में परीक्षण के दौरान क्रैश के बाद से तपस के उत्पादन पर सवाल खड़े होने लगे थे. 

तपस ड्रोन को वाकई में डीआरडीओ ने अमेरिका के एमक्यू-9 रीपर ड्रोन की तर्ज पर ही बनाना शुरु किया था. 2010 में बनाना शुरु किया और तपस (या तापस) की पहली फ्लाइट हुई थी वर्ष 2016 में. 

तपस की लंबाई है 31 फीट और चौड़ाई यानि विंग-स्पैन है 67 फीट. इसका कुल वजन है 1800 किलो और ये पेलोड यानी वजन उठा सकता है 350 किलो. अगर एंड्यूरेंस की बात करें तो तपस अमेरिकी एमक्यू-9 के लगभग बराबर ही है यानि 24 घंटे से ज्यादा. इसकी कॉम्बेट रेंज है 250 किलोमीटर यानि ये अपने कमांड सेंटर से 250 किलोमीटर दूर तक उड़ान भर सकता है. तपस कितनी ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है, अगर इसकी बात करें तो ये भी 30 हजार फीट तक उड़ान भर सकता है. जबकि प्रीडेटर ड्रोन 40-50 हजार फीट तक उड़ान भर सकता है. यही वजह है कि तपस को हेल के बजाए मेल माना जाता जाता है.

वायुसेना, तपस ड्रोन को चीन और पाकिस्तान सीमा की निगहबानी के लिए इस्तेमाल करेगी तो नौसेना हिंद महासागर की सर्विलांस के लिए. करीब एक साल पहले नौसेना ने तो समंदर में एक ट्रायल भी कर भी लिया था. इसके लिए डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने कारवर बेस (कर्नाटक) से 148 किलोमीटर दूर अरब सागर में आईएनएस सुभद्रा युद्धपोत में तपस का कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया और फिर समंदर में साढ़े तीन घंटे की उड़ान भरी. इस दौरान 40 मिनट की उड़ान आईएनएस सुभद्रा जहाज में बने कमांड सेंटर से कंट्रोल की गई थी. तपस इस दौरान 20 हजार फीट की उंचाई पर उड़ान भर रहा था. परीक्षण के बाद तपस वापस चित्रदुर्ग में अपने बेस पर लौट आया जो कारवार से 250 किलोमीटर दूर है (https://youtu.be/_vSEl_IA_cI?si=MJ6W16OZc9NGMt_T).

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तपस ड्रोन की खूबियों को खुद देख चुके हैं. फरवरी 2022 में बेंगलुरु में एयर-शो के उद्घाटन समारोह के दौरान आयोजित फ्लाई पास्ट की लाइव-फीड तपस के जरिए पीएम मोदी के सामने लगी स्क्रीन पर दिखाई गई थी. 

वायुसेना और नौसेना फिलहाल इजरायली ‘हेरोन’ और ‘सर्चर ड्रोन इस्तेमाल करती हैं. हाल ही में इजरायल की मदद से अडानी कंपनी द्वारा मेक इन इंडिया के तहत तैयार किए गए ‘दृष्टि’ (‘हरमीस-स्टारलाइनर’) यूएवी की सप्लाई भी नौसेना और थलसेना को शुरु हो चुकी है. साथ ही अमेरिका से 31 एमक्यू-9 प्रीडेटर (कॉम्बैट यूएवी) के सौदे पर भी चर्चा चल रही है. 

Exit mobile version