IOR Military History War

इतिहास ने भूला दिया समंदर के शिवाजी को (TFA Special))

भारतीय नौसेना आज एक ब्लू वॉटर नेवी है यानि दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचकर अपना प्रभाव स्थापित कर सकती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस नौसेना का आदर्श कौन है ? भारतवर्ष का वो कौन सा एडमिरल है जिसे पूरी नौसेना अपना आदर्श मानती है ? ऐसा एडमिरल जिसके सामने हरेक नौसेना प्रमुख नतमस्तक होता है. ऐसा नेवी कमांडर जो समंदर में कोई भी युद्ध नहीं हारा था. जिसके सामने अंग्रेज, पुर्तगाली और डच तक थरथर कांपते थे. ‘समंदर का ऐसा ‘शिवाजी’ जिसकी मूर्ति को देखकर अमेरिकी एडमिरल तक भी हतप्रभ रह जाते हैं।

राजधानी दिल्ली की रायसीना हिल्स पर है हमारे देश का पावर सेंटर यानि जहां सरकार का मुख्यालय है. जहां से पूरा देश चलता है. इसी रायसीना हिल पर है साउथ ब्लॉक. रक्षा मंत्रालय के साथ-साथ इस बिल्डिंग में है भारतीय नौसेना के प्रमुख का ऑफिस. जैसे ही कोई इस दफ्तर में दाखिल होता है वहां मिलती है एक बड़ी सी मूर्ति. ये मूर्ति है मराठा सेना के सरखेल कान्होजी आंग्रे की. सरखेल यानि एडमिरल. किसी भी देश की नौसेना का सबसे बड़ा नेवल ऑफिसर. हमारे इतिहास की किताबों तक में कान्होजी आंग्रे का कोई ज्यादा जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन अगर उनकी मूर्ति भारतीय नौसेना यानि मॉर्डन इंडियन नेवी के चीफ ऑफ नेवल स्टाफ के सेक्रेटेरिएट के बाहर लगी है तो आप समझ सकते हैं ये कोई साधारण समुद्री-योद्धा नहीं हो सकता है. वाकई सरखेल कान्होजी आंग्रे कोई साधारण योद्धा नहीं थे. उन्होनें समंदर में एक भी लड़ाई नहीं हारी थी. उनके नेतृत्व में मराठा नौसेना ने ईस्ट इंडिया कंपनी यानि इंग्लैंड, पुर्तगाल और नीदरलैंड यानि डच नौसेना की नाक में दम कर दिया था।

अगर आप ये सोच रहे हैं कि मैं आज सरखेल कान्होजी आंग्रे की बात क्यों कर रहा हूं तो आपको बता दूं कि आज से 356 साल पहले अगस्त के महीने में ही उनका जन्म हुआ था. कान्होजी आंग्रे जिन्हें आंगरिया भी कहा जाता है, उनका जन्म 1667 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था. उनके पिता मराठा सेना में एक संकपाल थे यानि समंदर के किनारे छत्रपति शिवाजी महाराज के एक किले के संचालक थे. कहते हैं कि समंदर के किनारे रहने के चलते उन्होनें बचपन में ही कोली समाज से समुद्री-ज्ञान अर्जित कर लिया था. महाराष्ट्र का कोली समाज फिशरमैन कम्युनिटी है जो समंदर में जाकर फिशिंग करता है. जिस वक्त कान्होजी बड़े हो रहे थे उस वक्त तक शिवाजी ने अपनी नौसेना को खड़ा कर लिया था. उन्होनें कोंकण तट पर अपने किले बना लिए थे. उनकी नौसेना में करीब करीब 200 बोट और जहाज थे. लेकिन जब तक कान्होजी आंग्रे बड़े होते तब तक शिवाजी का स्वर्गवास हो चुका था. ऐसे में मराठा नौसेना थोड़ी बिखर गई थी. लेकिन 1690 में जब शिवाजी के उत्तराधिकारी साहू महाराज ने  कान्होजी आंग्रे को सरखेल बनाया तब से लेकर उनकी मौत यानि 1729 तक…करीब करीब 40 साल तक अरब सागर में खासतौर से भारत से लगे तटीय सीमा पर मराठा नौसेना का एक छत्र राज रहा।

कान्होजी आंग्रे ने 18 वर्ष की उम्र में ही मराठा नौसेना के एक किलेदार की इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि वो अपने दुर्ग को जंजीरा के सिद्दियों के हवाले करना चाहता था, जो मराठा साम्राज्य के एक तरह से दुश्मन थे. ये किला था सुवणदुर्ग. जैसा हम जानते हैं कि शिवाजी महाराज ने पूरे कोंकण तट पर डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा किलों का निर्माण कराया था ताकि पूरे मराठवाड़ा यानि आज के महाराष्ट्र की समुद्री सीमाओं की रक्षा की जा सके. पहले शिवाजी और फिर कान्होजी आंग्रे जाने चुके थे कि अगर देश की सीमाओं की रक्षा करनी है तो समुद्री सीमाओं की सुरक्षा बेहद जरूरी है. क्योंकि प्राचीन काल और मध्यकालीन यानि इस्लामिक आक्रांता जमीन के रास्ते भारत में घुसे थे. लेकिन अंग्रेज, डच और पुर्तगाली समुद्र के रास्ते भारत में पैठ बनाने की फिराक में थे. लेकिन जब तक शिवाजी और कान्होजी रहे तब तक ये विदेशी आक्रमणकारी हमारे देश में पूरी तरह से पांव नहीं जमा पाए।

विश्वासघात के खातिर अपनी ही नौसेना के किलेदार की हत्या करने से मराठा शासक बेहद खुश हुए और सुवर्णदुर्ग का किलेदार कान्होजी को नियुक्त कर दिया. ये 1685 की बात है. कान्होजी के समुद्री-पराक्रम को देखते हुए मराठा शासक ने उन्हें 1698 में अपनी नौसेना का सरखेल नियुक्त किया. सरखेल यानि आज के एडमिरल की बराबर जिन्हें हम नौसेना प्रमुख या चीफ ऑफ नेवल स्टाफ के तौर पर जानते हैं. कान्होजी ने विजयदुर्ग को अपना नेवल बेस बनाया. ये ऐसा दुर्ग था जिसके अंदर समंदर से जहाज भी आ जाता था. इसके अलावा एक बेस मुंबई के करीब खंडेरी आईलैंड को बनाया. इसी खंडेरी आईलैंड के नाम पर भारतीय नौसेना की इस वक्त एक स्कोर्पीन क्लास पनडुब्बी है, सबमरीन…आईएनएस खंडेरी. इसके अलावा अलीबाग को भी कान्होजी ने बसाया था जो एक बेस के तौर पर काम करता था।

कान्होजी ने अपनी नौसेना के लिए जहाज बनाने के लिए शिपयार्ड भी बनाए. कोलाबा, सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग में शिप बनाने वाले डॉकयार्ड बनाए. इन शिपयार्ड में बने युद्धपोत बेहद ही उच्च-कोटि के माने जाते थे. उनके जहाज में गन लगी होती थी. अपनी गन्स के बारूद के लिए उन्होनें पुर्तगालियों से समझौता तक किया था. उनके जहाज दो तरह के होते थे. बड़े जहाज 400 टन के और छोटे 120 टन वाले. सभी में कई तरह की गन यानि तोप लगी होती थीं।

समंदर में कान्होजी की युद्धनीति ऐसी थी कि वे समुद्र-तट से बहुत दूर जाकर नहीं लड़ते थे. जो भी विदेशी जहाज महाराष्ट्र के तट के करीब से गुजरता था वो उससे चौथ यानि टैक्स वसूलते थे. जो नहीं देता था उसे अपनी नेवी के दम पर कब्जा कर लेते थे. यूरोप का अगर कोई जहाज उनकी नौसेना पर भारी पड़ता था तो शिवाजी की गुरिल्ला-वारफेयर…युद्ध-पद्धति को अपनाते हुए अपने फोर्ट में घुस जाते थे. क्योंकि मराठा साम्राज्य के फोर्ट में जहाज भी अंदर घुस जाते थे. लेकिन दुश्मन दाखिल नहीं हो पाता था. कहते हैं कि कान्होजी को मराठा साम्राज्य के तटों की गहन जानकारी थी. कहां कौन सी क्रीक है, आइलैंड है उन्हें सब पता था, ऐसे में दुश्मन को चकमा देना आसान होता था।

ये एक तरह से मराठा साम्राज्य की आधिपत्य का प्रतीक था कि अगर आप हमारी समुद्री सीमा से होकर गुजर रहे हैं तो आपको चौथ देना ही होगा. इसके लिए कान्होजी ने अपनी सील यानि स्टांप तक जारी की थी. लेकिन ये सभी सील मराठा शासक के नाम से होती थी. इतनी बड़ी नौसेना होने के बावजूद उनकी वफादारी शिवाजी महाराज के वंशजों के लिए थी. ठीक वैसे ही जैसे आज के नौसेना प्रमुख की हमारे देश की सरकार और संविधान के प्रति होती है।

कान्होजी ऐसे समय में हमारे देश की समुद्री सीमाओं की रखवाली करते थे जब अंग्रेज यानि ईस्ट इंडिया कंपनी, डच और पुर्तगाली धीरे-धीरे कर हमारे देश में घुसने की फिराक में थे. इसलिए उनके जहाज या यूं कहें कि जहाजों का काफिला मुंबई यानि उस वक्त के बॉम्बे में आना शुरू हो गए थे. ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना दफ्तर मुंबई में खोल लिया था और यहां अपने सैनिकों को भी तैनात कर दिया था. अंग्रेजों ने अपना एक शिपयार्ड कारवार में खोल लिया था जहां युद्धपोतों का निर्माण होता था. पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा कर लिया था. ईस्ट इंडिया कंपनी और पुर्तगालियों को भारत में हो रहे जबरदस्त व्यापार और मुनाफे को देखते हुए डच और स्पेन के जहाज भी अब भारत आना शुरू हो गए थे. ऐसे में कान्होजी ने धीरे-धीरे सभी विदेशियों पर आघात करना शुरु कर दिया।

1712 में कान्होजी की नौसेना ने इंग्लैंड के एक जहाज को कब्जा में लिया और उसमें सवार कारवार फैक्ट्री के चीफ को मार गिराया. साथ ही अंग्रेज अफसर के पत्नी को बंधक बना लिया. कान्होजी ने अंग्रेज अफसर की पत्नी और जहाज को तब तक नहीं छोड़ा जब तक की ईस्ट इंडिया कंपनी ने 30 हजार के तौर पर ज़कत यानि चौथ नहीं दिया. इसके बाद कान्होजी ने इंग्लैंड के कई जहाजों पर कब्जा किया जो कोंकण तट के करीब से गुजरते थे. घबराई ईस्ट इंडिया कंपनी ने ऐसे में कान्होजी से समझौता करने में ही भलाई समझी और चौथ देना शुरु कर दिया. लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई स्थित अपने गर्वनर को पद से हटाकर वापस इंग्लैंड बुला लिया।

ईस्ट इंडिया कंपनी के नए गर्वनर ने पुर्तगालियों के साथ मिलकर कान्होजी पर आक्रमण करने का प्लान तैयार किया. इसके लिए छह हजार नाविकों और जहाज के एक बड़े बेड़े…फ्लीट के साथ कान्होजी को पकड़ने की योजना बनाई लेकिन मराठा नौसेना के आगे एक ना चली और हार का सामना करना पड़ा. पहले विजयदुर्ग पर आक्रमण विफल रहा और फिर अलीबाग में भी हार का सामना करना पड़ा. इधर कान्होजी ने कोचिन यानि आज के केरल तक पहुंचकर अपनी विजय पताका फहराई. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कान्होजी ने अंडमान निकोबार आइलैंड तक अपनी परचम फहराया था. इस बच डच नौसेना ने भी विजयदुर्ग पर आक्रमण किया लेकिन विफलता हाथ लगी. कान्होजी ने एक बार पुर्तगालियों के 30 जहाज के बेड़े को भी हराकर दांत खट्टे किए थे. कान्होजी ने मुगल साम्राज्य के वफादार सिद्दियों के जंजीरा फोर्ट पर भी कब्जा किया. इस तरह उन्होनें मुगल, जंजीरा के सिद्दियों, ईस्ट इंडिया कंपनी, डच और पुर्तगालियों से ना केवल एक साथ मोर्चा लिया बल्कि उन्हें हराया।

ऐसे में कान्होजी भारतवर्ष के ऐसे सरखेल यानि एडमिरल की उपाधि दी जाती है जिन्हें समंदर में एक भी लड़ाई में हार का सामना नहीं करना पड़ा. जब तक कान्होजी रहे पूरे कोंकण कोस्ट पर मराठाओं का एकछत्र राज रहा. अपने दुश्मनों को पूरी तरह से परास्त करने के बाद कान्होजी ने भारत की पहली फ्लीट रिव्यू का आयोजन किया था. यानि उन्होनें अपनी नौसेना के सभी युद्धपोतों और बोट्स की अरब सागर में परेड का आयोजन किया और गार्ड ऑफ ऑनर लिया. ठीक वैसा ही जैसा आज की नौसेना हर 10 साल में एक बार आयोजित करती है. वर्ष 2016 में भारतीय नौसेना ने ठीक वैसी ही इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू का आयोजन विशाखापट्टनम में किया था. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राष्ट्रपति ने भारतीय नौसेना के सभी जंगी जहाज, पनडुब्बियों और फाइटर जेट की सलामी ली थी. ठीक इसी तरह से इंडियन नेवी ने 2011 में मुंबई में इसी तरह की प्रेसिडेंशियल फ्लीट रिव्यू का आयोजन किया था।

यही वजह है कि भारतीय नौसेना कान्होजी को अपना आदर्श मानती है और उनकी स्टेच्यू नौसेना प्रमुख के ऑफिस के बाहर लगी है. वष 2021 में जब अमेरिका नौसेना के चीफ ऑफ ऑपरेशन्स एडमिरल माइकल गिलडे तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह से मिलने पहुंचे तो वे वहां लगी मूर्ति को देखकर हतप्रभ रह गए. उस दौरान एडमिरल करमबीर सिंह ने एडमिरल गिलडे को कान्होजी के इतिहास और उनके नेवल कैंपन के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी।

मुंबई में भारतीय नौसेना के पश्चिमी कमान में आज आईएनएस आंग्रे के नाम से एक नेवल बेस है जो अरब सागर के लिए लॉजिस्टिक बेस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है और पश्चिमी कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ का ऑफिस भी इसी बेस में है।

1729 में कान्होजी की मृत्यु हो गई थी. लेकिन उनकी मृत्यु के बाद मराठा शासकों ने अपनी नौसेना पर इतना ध्यान नहीं दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी दिनोंदिन मजबूत होती चली गई और धीरे-धीरे कर मुंबई प्रेसिडेंसी बनाकर पूरे महाराष्ट्र पर कब्जा कर लिया और फिर तीन तरफ से भारत पर कब्जा कर यानि मुंबई, कोलकता और मद्रास यानि चेन्नई के जरिए पूरे भारत पर अपना अधिकार जमा लिया. साफ है कि अगर कान्होजी की तरह भारत के दूसरे राजाओं ने अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा की होती तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती. शायद यही वजह है कि आज का भारत अपनी नेवी को मजबूत करने और समुद्री-सीमाओं को सुरक्षित करने में दिन-रात जुटा है।

(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस-जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ (प्रभात प्रकाशन) प्रकाशित हुई है. लेखक ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिन्दू कॉलेज से एम ए (हिस्ट्री) की पढ़ाई की है.)

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