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स्वदेशी एस-400 मिसाइल बनाने में जुटा DRDO, माता सीता की ‘कुशा’ की तरह नहीं फटकेगा पास दुश्मन

पौराणिक ‘रामायण’ में जिस तरह माता सीता ने घास के एक तिनके के जरिए रावण को अपने करीब नहीं फटकने दिया था ठीक वैसे ही भारत अब दुश्मन के हवाई हमलों से निपटने के लिए स्वदेशी लॉन्ग रेंज एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैयार करने में जुट गया है. ‘प्रोजेक्ट कुशा’ (घास) के जरिए भारत दुश्मन के फाइटर जेट, ड्रोन और मिसाइलों को भारत की धरती पर गिरने से पहले हवा में मार गिराने की तैयारी कर रहा है. रूस के एस-400 मिसाइल प्रणाली की तर्ज पर डीआरडीओ ने प्रोजेक्ट कुशा लॉन्च कर दिया है जो अगले 5-6 साल में पूरा होने की उम्मीद है. 

जानकारी के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) को 21,700 करोड़ के लागत वाले ‘प्रोजेक्ट कुशा’ के लिए अपनी मंजूरी (आवश्यकता की मंजूरी यानि एओएन) दे दी है. इस प्रोजेक्ट के तहत डीआरडीओ लॉन्ग रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल यानि लंबी दूरी की जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल की पांच स्क्वड्रन तैयार करेगा. डीआरडीओ ने वर्ष 2028-29 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का टारगेट रखा है. 

डीआरडीओ ने इस प्रोजेक्ट के तहत तीन तरह की मिसाइल को विकसित करने का प्लान तैयार किया है. ये तीन मिसाइल 150 किलोमीटर, 250 किलोमीटर और 350 किलोमीटर की दूरी पर दुश्मन के एरियल अटैक को विफल करने में सक्षम होंगी. ऐसे में दुश्मन के फाइटर जेट, ड्रोन और मिसाइल को उनकी स्पीड के अनुसार अलग-अलग दूरी पर मार गिराया जा सकता है. टोही विमान या फिर मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को ये मिसाइल सिस्टम 350 किलोमीटर की दूरी पर ही तबाह कर सकती है, लड़ाकू विमान को 250 किलोमीटर की दूरी पर नेस्तनाबूद कर देगी. इसके अलावा दुश्मन के स्टील्थ फाइटर जेट, क्रूज मिसाइल और प्रेशेसियन म्युनिशन को भी मार गिरा सकने की ताकत इस कुशा मिसाइल में होगी. ये दुश्मन के टारगेट को ‘लो-रडार क्रॉस सेक्शन’ पर भी मार गिरा सकती है यानि जो एरियल टारगेट बेहद ही कम उंचाई पर उड़ान भरते हैं.  

लंबी दूरी पर दुश्मन के हवाई हमलों से निपटने के लिए भारत ने वर्ष 2018 में रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदी थी. ये सिस्टम 380-400 किलोमीटर की दूरी पर ही दुश्मन के एरियल अटैक को मार गिराने का दम रखती है. 5.43 बिलियन डॉलर (39 हजार करोड़) में भारत ने रूस से ऐसी पांच स्क्वाड्रन खरीदी हैं. इनमें से तीन स्क्वाड्रन भारत को मिल चुकी हैं जिन्हें चीन और पाकिस्तान से सटी सीमाओं पर तैनात किया गया है. हाल ही में वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी ने बताया था कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दो स्क्वाड्रन की डिलीवरी में देरी हुई है. ये देरी डॉलर में पेमेंट न होने के चलते हो रही है लेकिन माना जा रहा है कि अगले एक साल में ये दोनों स्क्वाड्रन भी भारत पहुंच जाएंगी. 

प्रोजेक्ट कुशा के तहत तैयार होने वाली मोबाइल एलआर-सैम प्रणाली को वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आईएसीसीएस) से जोड़ा जाएगा ताकि भारत की एयर-स्पेस को मजबूत सुरक्षा दी जा सके. रूस की एस-400 प्रणाली की तरह ही मोबाइल होने के चलते एलआर-सैम को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है. 

भारत की एयर स्पेस की जिम्मेदारी फिलहाल लंबी दूरी की एस-400 सिस्टम के पास है तो मध्यम दूरी के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित ‘बराक’ एमआर-सैम के हवाले है. ये मीडियम रेंज-सर्फेस टू एयर मिसाइल डीआरडीओ ने इजरायल की मदद से तैयार की है. एमआरसैम की रेंज करीब 70 किलोमीटर है. कम दूरी के लिए भारत के पास ‘आकाश’ मिसाइल है जिसकी रेंज 24 किलोमीटर है. इसके अलावा भारत के पास इजरायल की कम दूरी की ‘स्पाइडर’ मिसाइल है तो कंधे से मार करने वाली पुरानी ‘इग्ला’, ‘ओसा’ और ‘पिचोरा’ मिसाइल भी हैं. 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, माता सीता के पास ऐसी शक्ति थी कि वे दुश्मन को अपनी आंखों से भस्म कर सकती थीं. लेकिन अपने ससुर राजा दशरथ के कहने पर उन्होनें किसी को भी गुस्से से न देखने का प्रण किया था. ऐसे में जब रावण अशोक वाटिका में उनसे मिलने आता था तो वे उसकी तरफ न देखकर कुशा यानि घास के एक तिनकेे को उठाकर उसी की तरफ कर देती थी. जैसे ही रावण उस तिनके को छूता था तो उसे जोर का झटका लगता था. क्योंकि माता सीता की शक्तियों से वो कुशा भी एक आग के गोले में तब्दील हो गई थी जिसके कारण दुश्मन (रावण) उनके पास फटकने की ज़ुर्रत नहीं कर पाता था.  ठीक वैसे ही स्वदेशी प्रोजेक्ट कुशा से दुश्मन के फाइटर जेट, ड्रोन और मिसाइल भारत की एयर-स्पेस में दाखिल होने से पहले हजार बार सोचेगी. 

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