“सारे जहां से अच्छा…” यही शब्द थे देश के पहले अंतरिक्ष-यात्री राकेश शर्मा के अपने स्पेसक्राफ्ट से जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा था कि ऊपर से भारत कैसा दिखता है. ठीक 40 साल पहले आज ही के दिन यानी 3 अप्रैल 1984 को स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने अपने दो अन्य सोवियत कॉस्मोनॉट के साथ आउटर-स्पेस की यात्रा शुरु की थी.
भारत और सोवियत संघ (आज के रशिया) की इस बेहद ही महत्वपूर्ण स्पेस-ओडिसी पर राजधानी दिल्ली स्थित रुसी राजदूत डेनिस अलीपोव ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि “सोवियत सोयुज टी-11 अंतरिक्ष यान पर पहली भारतीय अंतरिक्ष उड़ान की 40वीं वर्षगांठ पर हीरो विंग कमांडर राकेश शर्मा और सभी भारतीयों को हार्दिक बधाई!” भारतीय वायुसेना ने अपने एक्स अकाउंट पर ‘सारे जहां से अच्छा’ लिखकर कहा कि “आज जब #भारत ने #गगनयान मिशन की ओर अपना रास्ता तय किया है, इस दिन, हम तत्कालीन स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा द्वारा की गई वीरतापूर्ण अंतरिक्ष उड़ान को याद करते हैं. भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री स्क्वाड्रन लीडर राकेश ने 40 साल पहले आज ही के दिन अपनी अंतरिक्ष यात्रा की थी.”
स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट थे और जब वे सोवियत स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष मे गए थे तब उनकी उम्र 35 वर्ष थी. राकेश शर्मा मिग-21 फाइटर जेट के पायलट थे और उन्होंने 1971 पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया था. शर्मा के साथ स्क्वाड्रन लीडर रवीश मल्होत्रा का भी चयन स्पेस यात्रा के लिए हुआ था. लेकिन फाइनल डेस्टिनेशन के लिए शर्मा को ही चुना गया था. राकेश शर्मा और बाकी सोवियत कॉस्मोनॉट ने सात दिन (07) दिन 21 घंटे और 40 मिनट अंतरिक्ष में बिताए थे.
स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा जब स्पेसशिप में सवार थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे सैटेलाइट के जरिए सीधे बातचीत की थी. ये बातचीत उन दिनों दूरदर्शन (टीवी) पर लाइव सुनी गई थी. बातचीत के दौरान इंदिरा गांधी ने पहला सवाल राकेश शर्मा से पूछा था कि ‘अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखाई पड़ता है.’ इस सवाल पर राकेश शर्मा ने कहा था, “सारे जहां से अच्छा.” इस बातचीत को उन दिनों करोड़ो हिंदुस्तानियों ने सुना था. ये वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर वायरल है (https://youtu.be/jlr_aE0Va44?si=9Ygl0OTgsvu40n5n).
इंदिरा गांधी ने एक भारतीय को अपनी स्पेस यात्रा में भागीदार बनाने के लिए सोवियत संघ का तहेदिल से धन्यवाद दिया था. क्योंकि इससे अंतरिक्ष के रहस्य तो खुलते ही, पृथ्वी के पर्यावरण को समझने में काफी मदद मिल सकती थी. इंदिरा गांधी ने कहा था कि “अंतरिक्ष से प्राप्त हुए ज्ञान का इस्तेमाल विश्व-कल्याण और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हो.” ये स्पेस यात्रा भारत और सोवियत संघ के बीच “मैत्री की सुंदर मिसाल बनकर उभरी.”
स्पेस यात्रा से लौटने के बाद स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा का देशभर में हीरो की तरह स्वागत किया गया. उन्हें शांति-काल में देश के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से नवाजा गया. सोवियत संघ तक ने उन्हें हीरो ऑफ सोवियत के खिताब से नवाजा. स्पेस का सफर तय करने के तीन साल के भीतर राकेश शर्मा ने भारतीय वायुसेना से रिटायरमेंट ले लिया. वे उस वक्त वायुसेना में विंग कमांडर के पद पर थे. रिटायरमेंट के बाद राकेश शर्मा ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में टेस्ट पायलट के तौर पर सेवाएं दी और देश के पहले स्वदेशी फाइटर जेट एलसीए-तेजस से भी जुड़े. एचएएल से रिटायरमेंट के बाद राकेश शर्मा तमिलनाडु के कन्नूर जिले में जाकर बस गए और अब कम ही सार्वजनिक तौर से दिखाई पड़ते हैं.
आज जब भारत गगनयान मिशन की तैयारी कर रहा है तो उसमें हिस्सा लेने वाले भारतीय वायुसेना के सभी पायलट की प्रारंभिक ट्रेनिंग रुस में ही संपन्न हुई है. माना जा रहा है कि इस साल के मध्य में भारत का गगनयान अपनी अंतरिक्ष की उड़ान भर सकता है (गगनयान मिशन पर जाएंगे ये चार वायु-योद्धा).
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