“…दुश्मन हमसे महज 500 गज की दूरी पर है. दुश्मन हमसे नंबर भी कहीं ज्यादा है. हम पर जबरदस्त गोलाबारी हो रही है. लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे बल्कि हमारा हरेक सैनिक आखिर तक गोलियां खत्म होने तक लड़ता रहेगा.” ये आखिरी शब्द थे हमारे देश के पहले परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा के, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर को बचाने के लिए आजादी के तुरंत बाद देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था.
मेजर सोमनाथ शर्मा की आज (31 जनवरी 2024) 101 वीं जयंती है. उनका जन्म 31 जनवरी 1923 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म एक मिलिट्री-फैमिली में हुआ था. लेकिन वे जन्म से ही अपने दादा के बेहद करीब थे जो उन्हें ‘गीता’ में श्री कृष्ण और धर्नुधारी अर्जुन के संवाद पढ़ाते थे. मेजर सोमनाथ शर्मा को गीता इतनी पसंद थी कि उनकी यूनिफॉर्म की पॉकेट में हमेशा उसकी एक कॉपी रहती थी. यहां तक की देश पर प्राण न्योछावर करने के बाद उनके पार्थिव-शरीर की पहचान भी उसी ‘गीता’ से हुई थी.
शायद यही वजह थी कि देश के आजाद होने के फौरन बाद जब भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर को बचाने के लिए कूच किया तो मेजर सोमनाथ शर्मा सबसे पहले सामने आए. हालांकि, उस वक्त मेजर शर्मा के हाथ पर प्लास्टर चढ़ा था और उनके सीनियर अधिकारियों ने जंग में जाने से मना किया था लेकिन वे नहीं माने और रणभूमि में पहुंच गए. दरअसल, हॉकी खेलने के दौरान उनके हाथ में चोट आ गई थी और प्लास्टर चढ़ा था.
मेजर सोमनाथ ने वर्ष 1942 में भारतीय सेना ज्वाइन की थी. वे ब्रिटिश इंडियन आर्मी की हैदराबाद रेजीमेंट का हिस्सा थे और द्वितीय विश्वयुद्ध में बर्मा (म्यांमार) में आराकन युद्ध का हिस्सा बने थे. आजादी के बाद वे भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट (4 कुमाऊं) का हिस्सा बन गए थे. बंटवारे (और स्वतंत्रता) के फौरन बाद जब पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित कबीलाईयों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया तो भारतीय सेना ने 27 अक्टूबर 1947 को चर्चित बडगाम (श्रीनगर) लैंडिंग की थी. इसके तहत बड़गाम एयरपोर्ट पर भारतीय सैनिक उतरे थे और श्रीनगर सहित पूरे कश्मीर को बचाने की जिम्मेदारी मिली थी.
3 नवम्बर 1947 को 4 कुमाऊं की तीन कंपनियों को बड़गाम (बडगाम) की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी. क्योंकि इस बात की आशंका थी कि गुलमर्ग से बड़गाम के रास्ते हथियारबंद कबीलाई श्रीनगर पर कब्जा करने पहुंच सकते हैं. अगर श्रीनगर कबीलाईयों के हत्थे चढ़ जाता तो पूरी कश्मीर घाटी भारत के हाथ से निकल सकती थी. यही वजह थी कि किसी भी तरह कबीलाइयों को श्रीनगर घुसने से रोकना था. साथ ही श्रीनगर एयरपोर्ट को भी सुरक्षित रखना था. क्योंकि इसी एयरपोर्ट के जरिए भारतीय सेना अपनी रिइंफोर्समेंट कश्मीर भेज सकती थी.
सुबह करीब 11 बजे मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में 4 कुमाऊं की डी कंपनी बड़गाम के मोर्चे पर डटी हुई थी और साथ ही पैट्रोलिंग भी कर रही थी. दोपहर 2 बजे तक जब वहां किसी तरह की कोई हलचल नहीं हुई तो 4 कुमाऊं की बाकी दो कंपनियां बैरक में लौट गई. डी कंपनी को 3 बजे तक वहां रुकना था. लेकिन उससे पहले ही यानी 2.35 पर करीब 700 कबीलाई श्रीनगर पर हमला करने के लिए बड़गाम की तरफ बढ़ने लगे. मेजर सोमनाथ शर्मा की कंपनी में उस वक्त मात्र 100 सैनिक थे. इसके बावजूद मेजर सोमनाथ शर्मा ने दुश्मन से मोर्चा लेने की ठान ली. उन्होंने अपने सैनिकों को दुश्मन से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया.
मेजर सोमनाथ शर्मा के 100 सिपाही 500-700 कबीलाईयों पर भारी पड़ गए. मेजर सोमनाथ खुद एक जगह से दूसरी जगह जा-जाकर अपने सैनिकों को गोलियां और दूसरा एम्युनेशन दे रहे थे. बावजूद इसके की वे खुद दुश्मन की डायरेक्ट फायरिंग लाइन में आ सकते हैं मेजर सोमनाथ शर्मा खुली जगह में खड़े होकर भारतीय एयरक्राफ्ट को कपड़े से इशारा कर कबीलाईयों को निशाना बनाने के लिए सिग्नल देते रहे. इसी दौरान दुश्मन का एक मोर्टार शैल उनके एम्युनेशन पर आकर गिर गया और वे बुरी तरह घायल हो गए. अपने आखिरी मैसेज में मेजर सोमनाथ शर्मा ने ब्रिगेड हेडक्वार्टर ने कहा था कि “दुश्मन महज 500 गज की दूरी पर है लेकिन हम एक इंच पीछे नहीं हटेंगे.”
पूरे छह घंटे तक मेजर सोमनाथ दुश्मन को आगे बढ़ने से रोके रहे. इसका नतीजा ये हुआ कि कुमाऊं रेजीमेंट की दूसरी यूनिट (बटालियन) वहां पहुंच गई. लेकिन तब तक मेजर सोमनाथ शर्मा और उनके साथियों ने 200 कबीलाईयों को ढेर कर दिया था. इतनी बड़ी संख्या में नुकसान उठाने के चलते कबीलाई मोर्चा छोड़कर भाग खड़े हुए. लेकिन मेजर सोमनाथ शर्मा का पार्थिव-शरीर गोलाबारी में इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गया था कि उनकी पहचान पॉकेट में रखी ‘भागवत गीता’ से हुई थी जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते थे.
मेजर सोमनाथ शर्मा के अदम्य साहस, असाधारण वीरता और उच्च कोटि के नेतृत्व के चलते सरकार ने उन्हें युद्ध के दौरान देश के सबसे बड़े बहादुरी पुरस्कार, परम वीर चक्र से नवाजा.
परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा को हाल ही में प्रकाशित हुई एक पुस्तक में कुछ इस तरह वर्णन किया गया है
कृष्ण गीता में लिखा, जो ज्ञान सीखा है यही,
जो करे कर्तव्य अपना, है सदा जीता वही.
देह की चिंता नहीं है, एक दिन हो ध्वस्त ही,
पत्र लिख अपने पिता को, कर दिया आश्वस्त भी.
पाक (पाकिस्तान) ने हमला किया जब, श्रीनगर बड़गाम पर,
छुट्टियों पर चल रहे थे, हाथ में था प्लास्टर.
चाहते थे सैन्य अफसर, और साथी रोकना,
मैं रूकंगा ही नहीं देखो, मुझे मत टोकना.
(इस पूरी कविता को आप ‘परमवीर शौर्य गाथा’ पुस्तक में पढ़ सकते हैं जिसकी लेखिका हैं ऋतुबाला रस्तोगी)
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