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गगनयान मिशन पर जाएंगे ये चार वायु-योद्धा

आसमान की ऊंचाइयां छूने के बाद वायुसेना के पायलट्स अब अंतरिक्ष में तिरंगा बुलंद करने को बेताब हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायुसेना के उन चार स्पेस-योद्धाओं के नामों की घोषणा की हैं जो इसरो के गगनयान मिशन का हिस्सा बनने जा रहे हैं. 

मंगलवार को तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव मिशन गगनयान के चार पायलट्स के नामों की घोषणा की. पीएम मोदी ने जिन नामों का ऐलान किया उनमें ग्रुप कैप्टन प्रशांथ बालकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला शामिल हैं. (https://x.com/narendramodi/status/1762419715723481220?s=20)

गगनयान मिशन में जाने वाले चारों एस्ट्रोनॉट भारत में हर तरह के फाइटर जेट्स उड़ा चुके हैं. फाइटर जेट्स की कमी और खासियत से रूबरू हैं. इसलिए चारों को गगनयान एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग के लिए चुना गया है. इनकी रूस में ट्रेनिंग हो चुकी है. फिलहाल बेंगलुरु में एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी में ट्रेनिंग ले रहे हैं.वायुसेना के लिए मंगलवार का दिन बेहद खास रहा. भारतीय वायुसेना के लिए एक ऐसा लम्हा है जिसे स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा. अक्सर वायुसेना का जिक्र आता है तो जंग की बात होती है, दुश्मनों के दांत खट्टे कर देने की बात की जाती है, शत्रुओं को आसमान से खदेड़ देने या फिर एयरस्ट्राइक का जिक्र किया जाता है पर अब अंतरिक्ष में परचम लहराएंगे भारतीय वायुसेना के जांबाज पायलट.

स्पेस योद्धाओं का सस्पेंस हटा

जिन चार एस्ट्रोनॉट के नामों की घोषणा की गई हैं वे सभी फाइटर पायलट हैं. चारों पायलट को करीब 18-25 साल का लंबा अनुभव है. सभी टेस्ट पायलट, फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और फाइटर कॉम्बेट लीडर रह चुके हैं. चारों पायलट को सुखोई, मिग 21, मिग 29, जगुआर, हॉक, डॉरनियर और हॉक जैसे एयरक्राफ्ट उड़ाने में महारत हासिल है. 

ग्रुप कैप्टन प्रशांथ बालकृष्णन नायर मूल रूप से केरल के रहने वाले हैं और एनडीए में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर का खिताब जीत चुके हैं (यानी अपने कोर्स को टॉप किया था). 1998 में वायुसेना में शामिल हुए प्रशांथ को 3000 घंटे फ्लाइंग का अनुभव है. ठीक उसी तरह ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन भी एनडीए (नेशनल डिफेंस कॉलेज) में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर और राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किए जा चुके हैं. वे वर्ष 2003 में वायुसेना में शामिल हुए थे.उन्हें 2900 घंटे उड़ान भरने का अनुभव है. 

ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप मूल रूप से प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं और उन्हें 2000 घंटे फ्लाइंग का अनुभव है. विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला लखनऊ के रहने वाले हैं और उन्हें भी 2000 घंटे का अनुभव है.  

‘फाइनल असॉल्ट’ ने दिखाया था ट्रेनिंग का वीडियो
पिछले साल 7 अक्टूबर को टीएफए ने एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग के वीडियो के बारे में खास जानकारी दी थी. (गगनयान के लिए अंतरिक्ष-योद्धाओं की ऐसी हो रही ट्रेनिंग) इसरो के मुताबिक, गगनयान के तहत 4 अंतरिक्ष-यात्री तीन दिन के लिए स्पेस में जाएंगे. वायुसेना ने करीब 11 मिनट की एक शॉर्ट फिल्म जारी की थी जिसे नाम दिया गया एयर पावर बियोंड बाउंड्री यानी अपनी सीमा-रेखा से बाहर हवाई ताकत. इस फिल्म में फाइटर जेट, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर और मिसाइल क्षमताओं को दिखाया गया है. इसी फिल्म में वायुसेना ने इंडियन स्पेस रिसर्च सेंटर (इसरो) के साथ चल रहे गगनयान के अंतरिक्ष-यात्रियों को दिखाया है. क्योंकि ये बेहद ही संवेदनशील मिशन है इसलिए वायुसेना ने अपने उन वायु-योद्धाओं के नाम और चेहरे नहीं दिखाए थे, जो अंतरिक्ष में जाने वाले हैं. इन सभी एस्ट्रोनॉट्स को जिम में वर्क-आउट करते दिखाया गया था (https://youtu.be/jYFjPWn-uLw?si=w9P3C9pM1ZUa_Hzu). पर अब अंतरिक्ष में जाने वाले फाइटर पायलट्स के चेहरे से पर्दा उठा दिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चारों पायलट्स को ‘अंतरिक्ष यात्री पंख’  दिया और मिशन के लिए शुभकामनाएं दीं.

कैसे हुआ चयन?

अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए आवेदन करने वाले बहुत से टेस्ट पायलट्स में से 60 वायु योद्धाओं को चुना गया. कड़ी ट्रेनिंग और अलग अलग टेस्ट के बाद 12 लोगों को सितंबर 2019 में बेंगलुरु में हुए पहले चरण के चयन में सफलता मिली. यह चयन भारतीय वायु सेना के अधीन आने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (आईएएम) द्वारा किया गया था. कई चरणों के चयन के बाद आईएएम और इसरो ने अंतिम 4 लोगों को चुना. इन अंतरिक्ष-यात्रियों को खास ट्रेनिंग के लिए 2020 में रूस भी भेजा गया था. इन सभी वायु योद्धाओं को रूस के गैगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में करीब एक साल के प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा था. गगनयान अंतरिक्ष की परिक्रमा करने के बाद भारत के समंदर में कही उतरेगा ऐसे में इन वायु-योद्धाओं को इंडियन नेवी के कोच्चि स्थित डीप-डाइविंग ट्रेनिंग सेंटर में भी प्रशिक्षण दिया गया है. गगनयान के लिए इसरो ने अपने एचएलवीएम-3 रॉकेट लॉन्चर और ऑरबिटल-माड्यूल (ओएम) को भी तैयार कर लिया है. इस ऑरबिटल मॉड्यूल में अंतरिक्ष-यात्रियों को बिल्कुल पृथ्वी पर रहने का वातावरण मिलेगा. ये ओएम खास स्टेट ऑफ ट आर्ट एवियोनिक्स से लैस है.

कैसे हो रही है ट्रेनिंग ?

अंतरिक्ष में जाने से पहले फाइटर पायलट्स को शारीरिक और मानसिक तौर से मजबूत किया गया है. इसरो के बेंगलुरु स्थित एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में इन वायु-योद्धाओं की कड़ी ट्रेनिंग चल रही है.  इसरो के ह्यूमन स्पेस फ्लाइट सेंटर में कई तरह के सिम्युलेटर लगाए जा रहे हैं. जिनपर ये चारों प्रैक्टिस कर रहे हैं. ये लगातार उड़ान भी कर रहे हैं. ये चारों गगनयान मिशन पर उड़ान नहीं भरेंगे. इनमें से 2 या 3 टेस्ट पायलट गगनयान मिशन के लिए चुने जाएंगे. इसरो अभी गगनयान के क्रू मॉड्यूल के हाई-एल्टीट्यूड ड्रॉप टेस्ट करवा रहा है. पैड अवॉयड टेस्ट करवा रहा है. जिसमें क्रू एस्केप सिस्टम रॉकेट से अलग होकर 2 किलोमीटर दूर जाकर गिरेगा, अभी टेस्ट व्हीकल प्रोजेक्ट भी है. जिसमें जीएसएलवी बूस्टर की जांच की जा रही है.

कब लॉन्च होगा गगनयान मिशन ?
इसरो का गगनयान मिशन साल 2025 तक लॉन्च होगा. हालांकि किस दिन लॉन्च किया जाएगा, इसकी औपचारिक तौर पर जानकारी साझा नहीं की गई है. इससे पहले दो मानवरहित मिशन को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. जब ये मिशन सफल होंगे उसके बाद ही एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. गगनयान मिशन भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है. इस मिशन के तहत 4 चालक दल के सदस्यों को 400 किलोमीटर की कक्षा में तीन दिनों के मिशन के लिए लॉन्च करना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है. इसरो ने इस मिशन की टेस्टिंग पिछले साल की थी.

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