समंदर में चीन के बढ़ते दबदबे को काउंटर करने के लिए भारत ने अंडरवाटर ड्रोन निर्माण की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं. हाल ही में डीआरडीओ ने एक प्राईवेट कंपनी को समंदर के नीचे ऑपरेट करने वाले ड्रोन उत्पादन की जिम्मेदारी दी तो प्राईवेट कंपनियां भी मेक इन इंडिया के तहत बेहद खतरनाक अंडरवाटर कॉम्बैट यूएवी बनाने के लिए कमर कस चुकी हैं. ऐसी ही एक स्वदेशी कंपनी है ‘एनाड्रोन सिस्टम’ जिसने अमेरिका की ‘ओसियन एरो’ के साथ मिलकर ऑटोनोमस अंडरवाटर एंड सर्फेस व्हीकल (‘एयूएसवी’) बनाने का दावा किया है.
गुरुग्राम की एनाड्रोन कंपनी जल्द ही भारतीय नौसेना को अपने ऑटोनोमस अंडरवाटर एंड सर्फेस व्हीकल ‘ट्राइटन’ की क्षमताओं का डेमो देने जा रही है. क्योंकि कंपनी ने जिस अमेरिकी फर्म (ओसियन एयरो) के साथ सामरिक साझेदारी की है उसका दावा है कि ये दुनिया का पहला और एकमात्र अनमैन्ड व्हीकल है जो समंदर की सतह और भीतर, दोनों जगह ही ओपरेट कर सकता है. एनाड्रोन सिस्टम का दावा है कि ट्राइटन को अमेरिकी नौसेना ने इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है.
भारतीय नौसेना को ट्राइटन के डेमो देने से पहले एनाड्रोन की एक प्रतिनिधि ने टीएफए से खास बातचीत में बताया कि इस बेहद ही खास अंडरवाटर-ड्रोन का उत्पादन ओडिशा में किया जाएगा. इस ड्रोन को आर्म्ड भी किया जा सकता है कि यानी मिसाइल और टॉरपीडो जैसे पेलोड से लैस भी किया जा सकता है. यही वजह है कि ट्राइटन को एंटी-सबमरीन वारफेयर में तैनात किया जा सकता है.
अनाड्रोन ने ओसियन एरो कंपनी के साथ साझेदारी का ऐलान ऐसे समय में किया है जब अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलीवन इनदिनों भारत के दौरे पर हैं. इस दौरान उन्होंने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल से आईसीईटी यानी इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी से जुड़ी दूसरी बैठक में हिस्सा लिया. इसके तहत अमेरिका, भारत को सैन्य तकनीक देने के लिए तैयार है.
एनाड्रोन के मुताबिक, यूएस नेवी की टास्क फोर्स 59 और 68 पहले से ही ट्राइटन का इस्तेमाल कर रही हैं. यूएस की कमांडर टास्क फोर्स यानी ‘सीटीएफ-59’ खाड़ी देशों की सेंट्रल कमांड के अंतर्गत तैनात रहती है तो ‘टास्क फोर्स-68’ यूरोप में तैनात रहती है. गौरतलब है कि रुस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेनी सेना ब्लैक सी (काला सागर) में रशियन फ्लीट (जंगी बेड़े) के खिलाफ बड़ी संख्या में अंडरवाटर और सर्फेस व्हीकल का इस्तेमाल कर रही है. यूक्रेन के इन अंडरवाटर ड्रोन से रुस की ब्लैक सी फ्लीट और क्रीमिया में बंदरगाहों को बड़ा नुकसान पहुंचा है.
एनाड्रोन का दावा है कि एंटी-सबमरीन वारफेयर के अलावा ट्राइटन आईएसआर (यानी इंटेलिजेंस, सर्विलांस एंड रेनेकोसेंस) ऑपरेशन्स, पोर्ट सुरक्षा, सोनार मैपिंग, माइन काउंटर-मेजर्स, अंडरवाटर पाइपलाइन, ओशनोग्राफिक रिसर्च और पर्यावरण मॉनिटेरिग के साथ-साथ मेरीटाइम जागरूकता में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
कंपनी का दावा है कि ट्राइटन पूरी तरह से सोलर पावर से संचालित है. ऐसे में ये एक महीने तक समंदर पर नौवहन कर सकता है और समुद्र के भीतर पूरे पांच दिनों तक. हाल ही में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) ने ‘सागर इंजीनियिरंग’ नाम के जिस स्टार्टअप को अंडरवाटर लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल’ (यूएलयूएवी) के उत्पादन की जिम्मेदारी दी है उसे किसी सबमरीन की मदद से ही संचालित किया जा सकता है. जबकि ट्राइटन ऑटोनोमस व्हीकल है और एक मिनी स्टेल्थ सबमरीन की तरह ऑपरेट कर सकती है. क्योंकि ट्रिटोन के ‘लो रडार एंड विजुअल सिग्नेचर’ हैं.
एनाड्रोन के मुताबिक, ट्राइटन को आईडीडीएम यानी इंडियन डिजाइन, डेवलपमेंट एंड मैन्युफैक्चरिंग के तहत ओडिशा में निर्माण किया जाएगा. ट्राइटन से पहले एनाड्रोन कंपनी, भारतीय नौसेना को ‘शिकरा’ एरियल टारगेट ड्रोन भी सप्लाई कर चुकी है. इन ड्रोन का इस्तेमाल ट्रेनिंग के दौरान हवाई टारगेट के तौर पर किया जाता है.