रूस के कजान में चल रही ब्रिक्स समिट के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक तस्वीर ने पश्चिमी देशों की मीडिया को हिला कर रख दिया है. यूक्रेन युद्ध के चलते पुतिन को पूरी दुनिया से अलग-थलग करने की पश्चिमी देशों की कोशिशों को बड़ा झटका माना जा रहा है.
ब्रिक्स समिट (22-24 अक्टूबर) में 36 देशों ने हिस्सा ले रहे हैं और 22 देशों के राष्ट्राध्यक्ष शिरकत कर रहे हैं. लेकिन पश्चिमी मीडिया शायद ये भूल गया कि ब्रिक्स समूह, पुतिन का संगठन नहीं है बल्कि ग्लोबल साउथ के गैर-पश्चिमी देशों का समूह है.
पुतिन ने समिट की पहली शाम को एक डिनर का आयोजन किया. डिनर के समय एक कॉन्सर्ट का आयोजन भी किया गया, जिसमें पुतिन के एक तरफ मोदी और दूसरी तरफ शी जिनपिंग दिखाई दे रहे थे. एक तस्वीर में तीनों राष्ट्राध्यक्ष खड़े हुए हैं और पुतिन ने कॉन्सर्ट की तरफ उंगली कर कुछ ऐसा कहा जिससे तीनों मुस्कुराते हुए दिखाई पड़ रहे हैं.
इंग्लैंड के सरकारी मीडिया बीबीसी ने ब्रिक्स समिट पर हेडलाइन दी, ‘पुतिन ने वेस्ट (पश्चिमी दुनिया) को दिखाने के लिए कि दबाव काम नहीं कर रहा है, अपने सहयोगी (मित्र-देशों) को किया कज़ान में इकठ्ठा’.
इंग्लैंड के द टाइम्स (लंदन) ने लिखा, ‘वेस्ट के साथ पावर-प्ले में पुतिन ने ब्रिक्स समिट में शी जिनपिंग और मोदी की अगवानी की’.
टाइम मैगजीन ने लिखा कि ‘ब्रिक्स समिट की अगवानी कर रशिया ने दिखाया कि वो अलग-थलग नहीं है’. अमेरिका के ही वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा कि ‘पुतिन ने समिट को होस्ट कर पश्चिमी देशों को दिखाया कि ग्लोबल स्टेज से रशिया को हटाया नहीं जा सकता’.
दरअसल, पश्चिमी देश और वेस्टर्न मीडिया, ब्रिक्स को पुतिन के किसी संगठन से तुलना कर रहे हैं. जबकि हकीकत ये है कि ब्रिक्स की नींव वर्ष स 2006 में पड़ी थी जिसमें रशिया के अलावा भारत, चीन और ब्राजील जैसे विकासशील देश संस्थापक सदस्य थे. ये चारों वे देश थे जिनकी अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो रहा था. वर्ष 2010 में साउथ अफ्रीका के शामिल होने के साथ, समूह का नाम ‘ब्रिक्स’ (बीआरआआईसीएस) कर दिया गया. ब्रिक्स के बी का मतलब है ब्राजील, आर यानी रशिया, आई यानी इंडिया, सी यानी चायना और एस यानी साउथ अफ्रीका.
ब्रिक्स की नींव ऐसे समय में पड़ी थी जब रूस (पुतिन) पूरी तरह से पश्चिम के विकसित देशों के सबसे बड़े समूह माने जाने वाले जी-8 (अब जी-7) का हिस्सा था. वर्ष 2014 में पुतिन द्वारा यूक्रेन के क्रीमिया पर बिना किसी खून-खराबे के कब्जा करने के बाद जी-8 से रूस को बाहर कर दिया गया था और इसे जी-7 का नाम दे दिया गया.
आज स्थिति ये है कि ब्रिक्स समिट में शामिल देशों की जीडीपी जी-7 देशों के समूह से ज्यादा है. क्योंकि ब्रिक्स समूह में इस साल ईरान, यूएई, मिस्र और इथोपिया जैसे देश भी शामिल हो गए हैं.
शायद यही वजह है कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने ब्रिक्स समिट पर अपनी हेडलाइन दी है, ‘पुतिन ने उन अर्थव्यवस्थाओं को किया इकठ्ठा जो पलट सकती हैं वेस्ट को’. द इकोनॉमिस्ट ने भी अपने न्यूज-स्टोरी का शीर्षक दिया है, ‘डॉलर को हराने के लिए पुतिन का प्लान’.
फरवरी 2022 में यूक्रेन के खिलाफ आक्रमण करने के बाद अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने पुतिन और रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ लगा दी थी. अमेरिका को लगा कि ऐसा कर रूस और पुतिन, दोनों को पूरी दुनिया से अलग-थलग या जा सकता है. लेकिन जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, ये साफ हो गया कि अमेरिका, इंग्लैंड और दूसरे पश्चिमी देश, युद्ध को रोकने के बजाए उसमें घी डालने का काम ज्यादा कर रहे हैं.
रूस के हाथों करीब एक चौथाई देश की जमीन (डोनबास) खोने और लाखों की संख्या में यूक्रेनी जनसंख्या (सैनिक सहित) मारे जाने और देश छोड़ने के बावजूद पश्चिमी देश हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराकर रूस के खिलाफ जंग को जिंदा रखे हुए हैं. यूक्रेन को अमेरिका और नाटो देशों ने हथियार लगाने की फैक्ट्री की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
दूसरी तरफ भारत जैसे देशों ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा ताकि ग्लोबल मार्केट पर युद्ध का असर कम हो जाए. प्रधानमंत्री मोदी ने दो टूक कह दिया कि रूस-यूक्रेन में भारत तटस्थ नहीं है बल्कि ‘शांति’ का पक्षधर है. ऐसे में पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से मोदी ने खुद मुलाकात की.
नतीजा ये हुआ कि भारत की तरह ग्लोबल साउथ के देश, ब्रिक्स में जुड़ने लगे. आज 30 से ज्यादा देश ब्रिक्स की सदस्यता लेने के लिए आतुर हैं. इनमें नाटो देश टर्की भी शामिल है जिसे यूरोपीय देशों ने ईयू की सदस्यता देने से इंकार कर दिया है. (ब्रिक्स नहीं है जियोपॉलिटिकल विरोधी: White House)
रूस के कजान शहर में 22 देशों के राष्ट्राध्यक्ष जुट गए. वो इसलिए क्योंकि, इस साल ब्रिक्स की अध्यक्षता रूस कर रहा है. पिछले साल ये अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका ने की थी, जिसमें मोदी और पुतिन दोनों शामिल हुए थे. उसी बैठक में ईरान, इथोपिया और यूएई को सदस्य बनाने की घोषणा की गई थी.
ऐसे में ये कहना गलत है कि पुतिन ने 36 देशों की अगवानी की है. ये ब्रिक्स समूह है जिसमें दुनिया की 45 प्रतिशत आबादी जुड़ना चाहती है. क्योंकि जी-7 समूह में किसी विकासशील देश को शामिल नहीं किया गया. बावजूद इसके, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल में अमेरिका की यात्रा के दौरान साफ कहा कि ब्रिक्स, भले ही गैर-पश्चिमी देशों का समूह है लेकिन पश्चिमी देशों का विरोधी नहीं है.
अमेरिकी मीडिया नेटवर्क सीएएन ने अपनी हेडलाइन में लिखा कि ‘पुतिन को अलग-थलग करना चाहता है वेस्ट लेकिन एक बड़े शिखर सम्मेलन को आयोजित कर उसने (पुतिन) ने दिखा दिया है कि वो बिल्कुल अकेला नहीं है’. (BRICS पर पुतिन की West को नसीहत)
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पुतिन नहीं BRICS ने जुटाए 36 देश, भूल गया West
- by Neeraj Rajput
- October 23, 2024
- Less than a minute
- 4 weeks ago