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अमेरिका के नए NSA भारत के करीबी, चीन पाकिस्तान के कट्टर आलोचक

अमेरिका को मिल गया नया नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर यानी एनएसए. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के करीबी और चीन के कट्टर आलोचक, माइक वाल्ट्ज को नया एनएसए बनाए जाने की घोषणा की है. वे जैक सुलीवन की जगह लेंगे, जिन्हें जो बाइडेन ने व्हाइट हाउस में तैनात किया था. 

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के एनएसए पद के लिए माइक वाल्ट्ज पर भरोसा जताया है तो वहीं चीन, ईरान और क्यूबा के खिलाफ आक्रामक रहे मार्को रुबियो को अमेरिका का विदेश मंत्री बनाए जाने की चर्चा है. 
अमेरिकी सीनेट में इंडिया कॉकस के प्रमुख माइक वाल्ट्ज अमेरिका की मजबूत डिफेंस स्ट्रैटेजी की वकालत करते हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध और मिडिल ईस्ट में तनाव को कम करने के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं. वहीं मार्को रुबियो को भारत का अच्छा मित्र माना जाता है, क्योंकि  उनका भारत के प्रति उनका रुख बेहद सकारात्मक रहा है.

पाकिस्तान की आतंकवाद को लेकर रही नीति के भी वाल्ट्ज बड़े आलोचक रहे हैं. हाल ही में भारतीय मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में वाल्ट्ज ने साफ कह दिया था कि “पाकिस्तान की विदेश नीति में आतंकवाद, टूल की तरह काम नहीं कर सकता है.”

कौन हैं माइक वाल्ट्ज
माइक वाल्ट्ज अमेरिका को सुरक्षित करने के डोनाल्ड ट्रंप के दावे के बड़े समर्थकों में से एक हैं. माइक वाल्ट्ज आर्मी नेशनल गार्ड के अधिकारी रह चुके हैं और  अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं. जिस वक्त जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया था, तब माइक वाल्ट्ज ही थे जिन्होंने बाइडेन की नीति की जमकर आलोचना की थी. 

माइक वाल्ट्ज तीन बार संसद में फ्लोरिडा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. हाउस आर्म्ड सर्विसेज सब-कमेटी के चेयरमैन रहे हैं. साथ ही सदन की विदेश मामलों की समिति के भी सदस्य है. माइक वाल्ट्ज को ट्रंप का बेहद करीबी माना जाता है, क्योंकि अमेरिका को सुरक्षित करने के डोनाल्ड ट्रंप के दावे के बड़े समर्थकों में से एक हैं.

माइक वाल्ट्ज ने कई मौकों चीन का विरोध किया है. कोविड-19 की शुरुआत और उइगर मुस्लिम आबादी के साथ हिंसा को लेकर वाल्ट्स वो शख्स थे जिन्होंने बीजिंग में 2022 शीतकालीन ओलंपिक का अमेरिकी बहिष्कार करने की अपील की थी, माइक वाल्ट्ज रिपब्लिकन पार्टी के चाइना टास्क फोर्स में भी शामिल हैं. वाल्ट्ज का मानना है कि अगर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संघर्ष होता है तो अमेरिकी सेना उतनी तैयार नहीं है जितनी होनी चाहिए.

माइक वाल्ट्ज ने 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे के दौरान कैपिटल हिल में उनके ऐतिहासिक भाषण की व्यवस्था कराने में भी अहम भूमिका निभाई थी. वाल्ट्ज को भारत का हिमायती और चीन का कट्टर विरोधी माना जाता है.

इंडिया कॉकस के हेड हैं वाल्ट्ज
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में वाल्ट्ज, वेस्ट विंग के भीतर अमेरिकी विदेश नीति का  कोओर्डिनेशन करेंगे और दुनिया भर के सिक्योरिटी डेवलपमेंट पर राष्ट्रपति को जानकारी देंगे. माना जा रहा है कि माइक वाल्ट्ज दुनियाभर में चल रहे तनावों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

माइक वाल्ट्ज, इंडिया कॉकस के हेड है. इंडिया कॉकस, अमेरिकी सीनेट का हिस्सा है, जिसका गठन साल 2004 मे, सीनेटर कॉर्निन और तत्कालीन सीनेटर हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी-भारत द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने और आम हितों के मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने के लिए किया था. इसमें भारत के सरकारी अधिकारियों और भारतीय-अमेरिकियों के साथ मिलकर काम करने के लिए सीनेटर्स के लिए सदस्य नियुक्त किए जाते हैं.

मार्को रूबियो बन सकते हैं अमेरिका के विदेश मंत्री
मार्को रुबियो, डोनाल्ड ट्रंप के पसंदीदा और करीबियों में से एक हैं. क्योंकि वे रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के पक्ष में हैं. रूबियो का मानना है कि “यूक्रेन को पिछले दशक में रूस द्वारा लिए गए सभी क्षेत्रों को फिर से हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करने की जगह रूस के साथ बातचीत के जरिए समझौता करने की जरूरत है.” 

यहां तक कि इस साल जब जो बाइडेन ने यूक्रेन को 95 अरब डॉलर की सैन्य मदद का ऐलान किया था तो रूबियो सैन्य सहायता पैकेज के खिलाफ मतदान करने वाले 15 रिपब्लिकन सीनेटर्स में से एक थे.

रुबियो ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि “मैं रूस के पक्ष में नहीं हूं, लेकिन हकीकत है है कि अगर युद्ध समाप्त करना है तो उसका एकमात्र रास्ता रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत ही है.” रूबियो को इजरायल का हितेषी लेकिन हमास का जबरदस्त विरोधी माना जाता है. रुबियो के मुताबिक, इजरायल-हमास युद्ध के लिए हमास जिम्मेदार है. (https://x.com/MOSSADil/status/1856159123571658855)

वाल्ट्ज की तरह ही रुबियो को भी भारत का हितैषी माना जाता है. अमेरिकी संसद में उन्होंने भारत के साथ मजबूत संबंधों की पैरोकारी की है. साथ ही भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के एवज में आतंरिक मामलों में दखलंदाजी से परहेज करने की वकालत की है.

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