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सैनिकों ने हिला दिया पर्वत, 18 हजार फीट पर चढ़ाई Anti-Aircraft गन

कारगिल युद्ध से लेकर सियाचिन और पूर्वी लद्दाख में ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर तैनात भारतीय सैनिकों ने एक बार फिर ऐसा कारनामा कर दिखाया है जिसकी कल्पना करना भी थोड़ा मुश्किल है. भारतीय सेना ने 1200 किलो की एक एंटी-एयरक्राफ्ट गन को 17,800 फीट की ऊंचाई पर हाथों से चढ़ाकर तैनात कर दिया है.

भारतीय सेना की लेह-लद्दाख स्थित फायर एंड फ्यूरी कोर (14वीं कोर) ने खुद गन को इतनी ऊंचाई पर तैनात करने का एक वीडियो साझा कर इस कारनामे की जानकारी दी है. फायर एंड फ्यूरी कोर के मुताबिक, “दुनिया के सबसे कठोर इलाकों और विपरीत मौसम में तैनात भारतीय सेना के वीर सैनिकों को सलाम. उनका धैर्य और दृढ़ संकल्प चुनौतियों को असंभव को प्राप्त करने वाली जीत में बदल देता है.”

ड्रोन वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि जिस चोटी पर भारतीय सेना ने गन को तैनात किया है वहां तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता या पगडंडी नहीं है. रस्सियों के सहारे सैनिक, गन को पहाड़ की चोटी पर खींचते हुए ले जा रहे हैं. वीडियो में गन को पहुंचाने से पहले सैनिक, चोटी पर ही बंकर बनाते हुए भी दिखाई पड़ रहे हैं. वीडियो के आखिर में दिखाया गया है कि चोटी पर तैनात करने के बाद गन को संघड़ (पत्थरों की अस्थायी दीवार) से घेर दिया गया है. (https://x.com/firefurycorps/status/1855602654954545307)

14वीं कोर ने वीडियो को साझा करते हुए आगे लिखा कि “जहां दूसरे लोग जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं, वे (भारतीय सैनिक) अपनी अटूट भावना के साथ पहाड़ों को हिलाते हुए फलते-फूलते हैं. कार्रवाई में उनकी असाधारण ताकत देखें.”

हालांकि, सेना ने ये साफ नहीं किया है कि इस एंटी-एयरक्राफ्ट गन को लेह-लद्दाख के किस सेक्टर में तैनात किया गया है. एंटी-एयरक्राफ्ट गन का इस्तेमाल दुश्मन के फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर इत्यादि को आसमान में ही मार गिराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैनिक रॉक-क्लाइम्बिंग के जरिए ही पाकिस्तानी बंकरों और चौकियों तक पहुंच पाए थे. यही वजह है कि कारगिल-द्रास में तैनाती से पहले सैनिकों को हाई ऑल्टिट्यूड बैटल स्कूल में रॉक-क्लाइम्बिंग की खास ट्रेनिंग दी जाती है.

कारगिल-द्रास से लेकर सियाचिन और पूर्वी लद्दाख में अभी भी सेना की कई ऐसी चौकियां हैं जहां अभी तक सड़क या कोई पगडंडी नहीं है. वहां तक पहुंचने के लिए ट्रैकिंग या फिर रॉक-क्लाइम्बिंग का ही सहारा लिया जाता है.

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