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ट्रंप की मेहरबानी Snowden पर, रूस से लाया जाएगा वापस?

By Nalini Tewari

अमेरिका के पूरे खुफिया सिस्टम को हिला कर रख देने वाला और दुनिया के सामने पोल सीआईए की पोल खोल देने वाले कम्प्यूटर प्रोफेशनल एडवर्ड स्नोडन को माफ करने और अमेरिका वापस लाने की कोशिश शुरु की गई है. 

साल 2013 से अमेरिका से भागकर स्नोडन ने रूस में शरण ली हुई है. अब एडवर्ड स्नोडन को अमेरिका वापस लाने की बात की जा रही है. अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया विभाग यानी डीएनआई की चीफ तुलसी गबार्ड इस बातचीत का नेतृत्व कर रही हैं.  

अमेरिका की पोल खोलने वाले स्नोडन को क्षमा करेंगे ट्रंप? 

जेफरी एपस्टीन की फाइल्स को लेकर जूझ रहे व्हाइट हाउस में इन दिनों एडवर्ड स्नोडन को लेकर चर्चा तेज है. बताया जा रहा है कि एक लंबे समय से रूस में रह रहे और अब रूसी नागरिक बन चुके एडवर्ड स्नोडन को अमेरिका वापस लाने की कवायद शुरु कर चुका है. 

खबरों के मुताबिक, इन वार्ताओं का नेतृत्व राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड कर रही हैं, जो स्नोडेन के लिए क्षमादान की लंबे समय से समर्थक रही हैं.

स्नोडन ने सीआईए को लेकर खुलासा किया था कि 9/11 आतंकी हमले के बाद पैट्रियट एक्ट पारित होने के बाद से ही राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी दशकों से बिना किसी ठोस कारण के अमेरिकी नागरिकों के संचार पर गुप्त रूप से जासूसी कर रही थी. 

एडवर्ड स्नोडन के इस खुलासे के बाद अमेरिकी प्रशासन ने उल्टा उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया था. लेकिन अमेरिकी लोग स्नोडन को देशद्रोही नहीं मानते हैं. सोशल मीडिया पर स्नोडन को अमेरिकी नायक और देशभक्त मानते हैं और स्नोडन को अमेरिका वापसी की मांग की जा रही है.

मुहिम छेड़ी गई है कि स्नोडन को क्षमादान दें और उन्हें तुरंत घर वापस लाया जाए. अगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, एडवर्ड स्नोडन को माफ कर देते हैं तो वो अब तक का सबसे बड़ा क्षमादान होगा. 

कौन है एडवर्ड स्नोडन जिसने भारत में सीखी हैकिंग, अमेरिकी सिस्टम को दी चुनौती 

एडवर्ड स्नोडन एक कम्प्यूटर प्रोफेशनल और सीआईए के पूर्व कर्मचारी रह चुके हैं. अमेरिकी एनएसए के लिए एक कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम करता था. 

स्नोडन अपने काम में माहिर था, हैकिंग उसके बाएं हाथ का खेल था. साल 2009 में उसने सीआईए से इस्तीफा दे दिया. और बाद में एनएसए के लिए प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम करने लगा. दिखाने के लिए एडवर्ड एक बड़ी कम्प्यूटर कंपनी का स्टाफ था. लेकिन असल में उसका काम एनएसए के लिए जासूसी करने का था. 

कुछ समय बाद उसे जापान भेजा गया. स्नोडन को एजेंसी का ग्लोबल बैकअप तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई. अगर कभी एनएसए का मुख्यालय तबाह हो जाता है, तब भी सीआईए का बैकअप तैयार रहे और सारा डेटा सुरक्षित रहे. 

बताया जाता है कि साल 2010 में स्नोडन ने दिल्ली में हैकिंग की आधुनिक तकनीक सीखी थी.

साल 2013 में हॉन्ग कॉन्ग से स्नोडन ने मचाया तहलका, अमेरिका का सच दुनिया के सामने आया

साल 2013 में स्नोडन हवाई में एनएसए के रीजनल ऑपरेशंस सेंटर में काम कर रहा था. हवाई में एनएसए के ये सेंटर चीन और नॉर्थ कोरिया पर निगरानी रखता है. मई 2013 में स्नोडन ने कुछ दिनों की छुट्टी ली. ऑफिस में मेडिकल लीव के लिए अप्लाई किया. छुट्टी मिलने के बाद स्नोडन सीधा हॉन्ग कॉन्ग पहुंचा. 

बताया जाता है कि हॉन्ग कॉन्ग में स्नोडन ने कुछ बड़े खोजी पत्रकारों से मुलाकात की और उन्हें ये डेटा सौंप दिया कि कैसे  सीआईए और एनएसए अपनी जासूसी गतिविधियों और आम नागरिकों की निजी जानकारी हासिल करती है. 

स्नोडन के इस खुलासे को अखबारों ने बिना उसका नाम लिए पब्लिश करना शुरु कर दिया. जिससे हड़कंप मच गया. खुलासे में सबूत थे कि कैसे अमेरिकी सरकार अपने करोड़ों नागरिकों पर नजर रख रही थी, लोगों की निजी जानकारियां हासिल की जा रही थीं और कॉल रिकॉर्ड किए जा रहे थे, वो भी बिना किसी वजह के. 

एक खुलासा ये भी थी कि गूगल, फेसबुक, याहू, यूट्यूब, माइक्रोसॉफ्ट, स्काइप जैसी अमेरिकी टेक कंपनियां दुनियाभर के लोगों का डेटा निकाल रही हैं. इसमें यूके की भी मिलीभगत सामने रखी गई थी.

खोजी पत्रकारों ने ये भी खुलासा किया कि अमेरिका के पास दुनिया के हर छोटे बड़े लोगों की जानकारी है, जिसने कभी न कभी लैपटॉप या कम्प्यूटर का इस्तेमाल किया हो. इस लिस्ट में उन देशों के नागरिक थे, जिनके साथ अमेरिका के अच्छे संबंध थे. 

दावा किया गया कि अमेरिका ने यूरोपियन यूनियन के दफ्तर में जासूसी वाले यंत्र लगाए थे.अमेरिका एजेंसियों ने जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल के फोन कॉल्स को भी ट्रैक किया. कई देशों के दूतावासों और लैटिन अमेरिकी सरकारों पर भी नजर रखी गई थी. 

इन खुलासों से हड़कंप मच गया. हालांकि तब तक स्नोडन का नाम कहीं भी नहीं आया. लेकिन कुछ समय बाद एडवर्ड स्नोडन ने खुद इंटरव्यू देकर ये बात स्वीकार कर ली कि ये खुलासे उन्होंने ही किए हैं.

अमेरिका-हॉन्ग कॉन्ग से ठनी, जूलियन असांज ने की स्नोडन की मदद, रूस में मिली शरण

जिस वक्त स्नोडन ने ये सनसनीखेज डॉक्यूमेंट्स लीक किए उस वक्त अमेरिका में बराक ओबामा की सरकार थी. इस दौरान स्नोडन पर खुफिया जानकारियों की चोरी का आरोप लगा दिया गया. जासूसी कानून के तहत स्नोडन पर अमेरिका ने  मुकदमा दायर कर दिया. 

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एनएसए और सीआईए का पक्ष लिया और कहा कि उनकी एजेंसियों ने कुछ भी गलत नहीं किया है. राष्ट्रीय हित में हर कदम उठाए जाते रहेंगे.

इस दौरान अमेरिका ने स्नोडन को प्रत्यर्पित करने की अपील की. हॉन्ग कॉन्ग ने मना कर दिया. लेकिन स्नोडन की लोकेशन का खुलासा होने के बाद ये डर था कि अमेरिकी एजेंट्स उसकी हत्या कर सकते हैं. 

फिर स्नोडन का संपर्क विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज से हुआ. असांज ने स्नोडन को इक्वाडोर में शरण दिलाने की बात कही. स्नोडन हॉन्ग कॉन्ग से मॉस्को के रास्ते इक्वाडोर जा रहा था. जैसे ही स्नोडन का जहाज मॉस्को में उतरा, उसी समय अमेरिका ने उसका पासपोर्ट कैंसिल कर दिया है. जिसके बाद स्नोडन को रूस ने शरण दे दी. 

साल 2022 यानि रूस-यूक्रेन के युद्ध के दौरान ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 75 विदेशी लोगों को रूस की नागरिकता देने की अपील मंजूर की, जिसमें एडवर्ड स्नोडन भी था. स्नोडन अब रूसी नागरिक है, लेकिन अभी तक अमेरिका की नागरिकता छोड़ी नहीं है.

पश्चिम देशों के आलोचकों को शरण देता रहा है रूस

एडवर्ड स्नोडन के अलावा, ब्रिटिश ब्लॉगर ग्राहम फिलिप्स जैसे कई पश्चिमी आलोचकों को रूस ने पहले भी पनाह दी है. अमेरिकी फाइलों में एडवर्ड स्नोडन को भगोड़ा बताया गया है. 

लेकिन अमेरिका का एक धड़ा स्नोडन को हीरो की तरह देखता है, लेकिन दूसरा धड़ा राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से खिलवाड़ करने वाला मानता है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि एडवर्ड ने अमेरिका से जुड़ी बहुत संवेदनशील जानकारियां रूस को दी हैं. 

अब खबर आई है कि डोनाल्ड ट्रंप एडवर्ड स्नोडन को क्षमादान दें और तुलसी गबार्ड की कोशिश है कि एडवर्ड स्नोडन को वापस लाया जाए.

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