पश्चिमी देशों का समय खत्म होने जा रहा है. ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय मामलों की कमान ग्लोबल साउथ के नेताओं को अपने हाथ में ले लेनी चाहिए. ये मानना है रूस के पड़ोसी और परम-मित्र बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको का.
लुकाशेंको का ये बयान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत ग्लोबल साउथ देशों के करीब एक दर्जन राष्ट्राध्यक्ष की मौजूदगी में सामने आया है. मौका था वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट की वर्चुअल कांफ्रेंस का.
लुकाशेंको ने आरोप लगाया कि पश्चिमी देश दुनियाभर में लड़ाई करा रहे है जिसके कारण लाखों की तादाद में लोगों को विस्थापित होकर शरणार्थी बनना पड़ रहा है. लुकाशेंको ने कहा कि दरअसल, पश्चिमी देशों के संसाधन खत्म हो रही है. ऐसे में पश्चिमी देश ग्लोबल साउथ का रुख कर रहे हैं. बेलारूस के राष्ट्रपति के मुताबिक, आर्थिक उन्नति, वैश्विक विकास और राजनीतिक-फैसलों का केंद्र अब ग्लोबल साउथ बन गया है. लुकाशेंको ने पश्चिमी देशों द्वारा ग्लोबल साउथ के देशों पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों की भी जमकर आलोचना की.
रूस की तरह ही बेलारूस भी अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के तले दबा हुआ है. यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध का खामियाजा बेलारूस को भी उठाना पड़ा है. क्योंकि लुकाशेंको की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से गहरी दोस्ती है. लुकाशेंको का ग्लोबल साउथ में बयान ऐसे समय में आया है जब बेलारूस भी यूक्रेन युद्ध में कूदने के लिए पूरी तरह तैयार है.
हाल ही में लुकाशेंको ने नाटो देशों की सेना को बेलारूस की सीमा पर तैनात करने का कड़ा ऐतराज जताया था.
शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के तीसरे संस्करण का वर्चुअल उद्घाटन किया. सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम ने मौजूदा वैश्विक अनिश्चितता और चुनौतियों पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने बताया कि दुनिया अभी भी कोविड-19 के प्रभावों से पूरी तरह उबर नहीं पाई है, लेकिन संघर्ष (युद्ध) भी ग्लोबल साउथ देशों के विकास में काफी बाधा डाल रहे हैं.
पीएम मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ये देश जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दों से जूझ रहे हैं. उन्होंने आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद से उत्पन्न मौजूदा खतरों को भी संबोधित किया. इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि डिजिटल विभाजन और प्रौद्योगिकी से संबंधित उभरती आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां तेजी से प्रमुख होती जा रही हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हाल के वर्षों में बुनियादी ढांचे, डिजिटल प्रौद्योगिकी और ऊर्जा संपर्क में प्रगति के माध्यम से वैश्विक दक्षिण देशों के बीच सहयोग में वृद्धि देखी गई है.
मोदी ने मानवीय संकटों में पहले प्रतिक्रिया कर्ता के रूप में भारत की भूमिका को रेखांकित किया, जो जरूरतमंद मित्र देशों को सहायता प्रदान करता है.
अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने ग्लोबल साउथ के लिए एक व्यापक और मानव-केंद्रित “ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट” का प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा कि यह भारत के विकास के समग्र ढांचे के तहत व्यापार, सतत विकास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और परियोजनाओं के रियायती वित्त पोषण पर ध्यान केंद्रित करेगा. उन्होंने कहा कि वित्तीय सहायता की जरूरत वाले देशों पर विकास वित्त के नाम पर कर्ज का बोझ नहीं डाला जाएगा.
उन्होंने दुनिया भर में संघर्षों को हल करने के लिए समावेशी वैश्विक शासन पर जोर दिया।
पीएम ने कहा कि “आपने तनाव और संघर्षों से संबंधित चिंताओं को भी उठाया है. यह हम सभी के लिए एक गंभीर मुद्दा है. इन चिंताओं का समाधान न्यायपूर्ण और समावेशी वैश्विक शासन पर निर्भर करता है.”
मोदी ने कहा, “ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच की खाई को कम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। अगले महीने संयुक्त राष्ट्र में होने वाला भविष्य का शिखर सम्मेलन इस सब के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन सकता है.”
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