भारत, चीन और रुस भले ही विदेशियों को अपने देश में नापसंद करते हैं बावजूद इसके इन देशों की अर्थव्यवस्था बेहद तेजी से बढ़ रही है. भारत और चीन तो दुनिया के उन 10 देशों की श्रेणी में शुमार हैं जिनकी अर्थव्यवस्था सबसे तेज बढ़ रही है. ऐसे में अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडेन का इन देशों के खिलाफ जेनोफोबिया का बयान गले से नीचे नहीं उतर रहा है.
आईएमएफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था इस वक्त 6.8 प्रतिशत की रफ्तार से दौड़ रही है. चीन की विकास दर 4.6 प्रतिशत है तो रशिया की 3.2 प्रतिशत से. आईएमएफ के ही आंकड़ों की मानें तो अमेरिकी की विकास दर इस वक्त महज 2.7 प्रतिशत है यानी रुस से भी धीमी. यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद रुस की इकोनॉमी भी अमेरिका से तेज रफ्तार से बढ़ रही है. कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो जापान की आर्थिक दर भी अमेरिका से तेज है.
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने वॉशिंगटन के एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि भारत, चीन, जापान और रुस जैसे देशों की आर्थिक दिक्कतों के पीछे विदेशियों का खौफ है. उन्होंने इन देशों की आर्थिक परेशानियों के लिए ‘जेनोफोबिया’ को जिम्मेदार ठहराया था यानी आप्रवासियों का डर या फिर सम्मान ना देना. बाइडेन ने कहा था कि ये देश “आप्रवासियों को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं.” उन्होंने कहा, “चीन आर्थिक रूप से क्यों पिछड़ रहा है, जापान में जोखिम क्यों है, रूस और भारत में समस्या क्यों है, क्योंकि वे जेनोफोबिक हैं.”
वहीं बाइडेन ने अमेरिकी की अर्थव्यवस्था को इसलिए बेहतर बताया क्योंकि उनके देश में “विदेशियों का सम्मान किया जाता है.” अपने चुनावी अभियान के वास्ते धन जुटाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में बाइडेन ने कहा कि अमेरिका में “आप्रवासियों का स्वागत किया जाता है. इसलिए अमेरिकी की इकोनॉमी बेहतर प्रदर्शन कर रही है.” इस कार्यक्रम में एशियाई अमेरिकी, हवाईयन और प्रशांत द्वीप के मूल निवासी मौजूद थे जिन्होंने अमेरिका को ही अपना देश मान लिया है. लेकिन बाइडेन ये दावा करते हुए आईएमएफ के पूर्वानुमानों को भूल गए जिसमें वैश्विक संस्था ने भारत, चीन, जापान और रुस जैसे देशों की अर्थव्यवस्था का लोहा माना है.
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