कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ना सिर्फ भारत में घिरे हुए हैं, बल्कि उनके खुद के देश में सवाल उठाए जाने लगे हैं. हमेशा से भारत और कनाडा में रिश्ते अच्छे रहे हैं, लेकिन जिस तरह से अपने वोट बैंक के चक्कर में ट्रूडो ने भारत के मोस्ट-वांटेड आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत को घेरा है, वो किसी के गले नहीं उतर रहा.
कनाडा में खुद जस्टिन ट्रूडो पर लोग सवालिया निशान लगाने लगे हैं और भारत से रिश्ते खराब करने के लिए ट्रूडो को जिम्मेदार मान रहे हैं. यहां तक की कनाडा के बड़े पत्रकार भी ट्रूडो की विश्वसनीयता पर सवाल पूछने लगे हैं.
मतभेदों का खालिस्तानी उठा रहे फायदा: कनाडाई पत्रकार
कनाडा के बड़े पत्रकार डेनियल बोर्डम ने भारत से कनाडा के डिप्लोमैट्स के निष्कासन और भारत से अपने राजनयिक को वापस बुलाने पर जस्टिन ट्रूडो पर सवाल खड़े किए हैं. डैनियल बोर्डम ने अपने एक्स पोस्ट में एक के बाद एक कई टिप्पणियां की हैं. डेनियल बोर्डम ने लिखा, “भारतीय सरकार द्वारा उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों को वापस बुलाने के फैसले को दोनों देशों के बीच गहरे मतभेद साफ हैं. खालिस्तानी तत्व इस स्थिति का पूरा फायदा उठा रहे हैं. भारत-कनाडा के बिगड़े रिश्ते को खालिस्तानी अपनी पूरी जीत मान रहे हैं और भारत पर हमले कर रहे हैं.”
ट्रूडो ने खोई विश्वसनीय़ता, भारत के पक्ष में लोग: डैनियल बोर्डम
पत्रकार डैनियल बोर्डम के मुताबिक, “कनाडा के लोग ट्रूडो के इस फैसले से बेहद निराश हैं. लोग अब ट्रूडो सरकार से तंग आ चुके हैं. जस्टिन ट्रूडो पर कोई विश्वास नहीं करता. ट्रूडो ने जो कहा उस पर बहुत से कनाडाई सिर झुकाएंगे और शायद भारत के पक्ष में भी खड़े हो जाएंगे. भारत-कनाडा संबंधों की स्थिति भारतीय सरकार द्वारा तब तक स्थगित रखी जाएगी जब तक कनाडा में नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता. अगर चुनाव होते हैं तो नई सरकार भारत के साथ संबंधों के प्रति एक अलग दृष्टिकोण अपनाएगी, क्योंकि चुनाव में ट्रूडो की सत्ता जाना लगभग तय है.”
कनाडा में समस्या ही समस्या, अपनी नाकामियां छिपा रही ट्रूडो सरकार?
अगले साल अक्टूबर 2025 में कनाडा में चुनाव होने हैं. फिलहाल कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी अल्पमत में है. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के समर्थन से सरकार बनी थी. पर सितंबर 2024 में एनडीपी ने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष जगमीत सिंह सिख हैं, जिन्हें खालिस्तान समर्थक माना जाता है.
बहरहाल घिस-घिस कर चल रही ट्रूडो सरकार कनाडा में बढ़ती महंगाई, अनियंत्रित अप्रवास और खत्म होती नौकरियों की वजह से घिरी हुई है. खुद लिबरल पार्टी में ही नेता अब ट्रूडो को नापसंद कर रहे हैं. कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लिबरल पार्टी को लगता है कि अगर ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी चुनाव लड़ती है, तो वे हार जाएगी.”
ट्रूडो इस बात को जानते हैं कि कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की अच्छी तादाद है और उनके वोट को भुना लिया जाए तो सत्ता वापसी आसान है. यही वजह है कि निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो, अचानक से भारत विरोधी हो गए. बार-बार खालिस्तानी समर्थकों के ऐसे कार्यक्रमों में पहुंचते हैं जो खालिस्तानी आतंकियों के पक्ष और भारत में विरोध में रखे जाते हैं. मतलब साफ है कि वोट की खातिर भारत विरोधी एजेंडा चलाकर खालिस्तानियों की धूल चाट रहे हैं ट्रूडो.
एक कनाडाई नागरिक ने तो सोशल मीडिया पर यहां तक लिख दिया कि अपने वोट बढ़ाने के लिए ट्रूडो ने एक मित्र (भारत) को बस के नीचे धकेल दिया. एक दूसरे नागरिक ने लिखा कि राजनीति की किताब की ये एक पुरानी चाल है कि जब भी जनता आपके खिलाफ हो तो बाहरी दुश्मन का डर दिखाकर सभी को अपने पीछे जुटा लो.