दुनिया को कर्ज तले दबाने की साजिश के बाद अब चीन ने ड्रग्स का मकड़जाल पूरी धरती पर फैलाना शुरू कर दिया है. इसके लिए चीन ने हेरोइन से 50 गुना ज्यादा घातक ड्रग्स तैयार की है जिसे फेंटेनाइल या फिर ‘चायना-व्हाइट’ के नाम से जाना जाता है. टीएफए की खास पड़ताल में सामने आया है कि चीन ने अपने देश में तो ड्रग्स पर कड़े नियम बनाए हैं लेकिन दूसरे देशों के युवाओं को नशे की लत लगाने के लिए खास रणनीति तैयार की है. क्योंकि, चीन आज दुनिया में नारकोटिक्स ड्रग्स का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर बन गया है.
चीन की राजधानी बीजिंग से लेकर शंघाई, चेंगदू और वुहान जैसे बड़े शहरों में फेंटेनाइल के करीब 100 वेंडर ऑपरेट कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक, शंघाई में आज 13 ऐसे वेंडर हैं जो इस ड्रग्स का धंधा करते हैं तो वुहान में 14. शिझाहजजुआंग में तो ऐसे 47 वेंडर हैं.
चीन की कंपनियां खुले-आम गैर कानूनी ड्रग्स का धंधा ऑनलाइन कर रही हैं. इनमें सबसे ज्यादा बिजनेस फेंटेनाइल का ही किया जाता है. फेंटेनाइल कितनी घातक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र दो मिलीग्राम के सेवन से किसी भी व्यक्ति की जान जा सकती है.
एक अनुमान के मुताबिक, चीन में 40 हजार से ज्यादा दवा और उससे जुड़े केमिकल के वैध और अवैध निर्माता हैं. इनमें से बड़ी संख्या में दवा की आड़ में नारकोटिक्स ड्रग्स का धंधा करते हैं.
दुनियाभर में ड्रग्स को भेजने का काम चीन खुद नहीं करता है. इसके बजाए चीन ने म्यांमार के शान और कचिन प्रांतों को चुना है. म्यांमार के ये दोनों प्रांत चीन सीमा से सटे हुए हैं और अशांत हैं. इन दोनों प्रांतों में म्यांमार की जुंटा (मिलिट्री शासन) का शासन लगभग न के बराबर है. यहां पर विद्रोही संगठनों ने एकछत्र राज कायम किया हुआ है.
म्यांमार के शान और कचिन से ही चीन की ड्रग्स की खेप पहले दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक पहुंचती है और फिर समंदर के रास्ते वहां से दुनिया के अलग-अलग देशों तक स्मगलिंग के जरिए पहुंचाई जाती है.
म्यांमार के अशांत प्रांतों के अलावा चीन ने लाओस से सटे 100 किलोमीटर बॉर्डर को भी ड्रग्स की तस्करी के लिए खास तौर से चुना है. लाओस के सीमावर्ती इलाकों में चीन के तस्कर, बिजनेस के आड़ में गैर-कानूनी तरीके से नारकोटिक्स ड्रग्स का धंधा करते हैं. यही वजह है कि लाओस के इस क्षेत्र को ‘लिटिल-चायना’ का नाम दे दिया गया है.
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस की एक रिपोर्ट की मानें तो दक्षिण-पूर्व एशिया में ड्रग्स की तस्करी में 78 प्रतिशत अकेले चीन से ही आती है. यही वजह है कि अमेरिका जैसे देशों ने चीन की उन कंपनियों को बैन कर दिया है जो फेंटेनाइल का धंधा करती हैं.
अमेरिका की डायरेक्टरेट ऑफ एनफोर्समेंट एजेंसी (डीईए) का भी आरोप है कि पड़ोसी देश मैक्सिको से जो 90 प्रतिशत मेथामफेटामाइन (मेथ) आती है, उसमें से 80 प्रतिशत के लिए प्रीकर्सर-केमिकल चीन से ही आता है. मेथ एक सिंथेटिक-ड्रग्स है जो पब और रेव पार्टियों में इस्तेमाल की जाती है.
मैक्सिको के अलावा इटली भी चीन की ड्रग्स की चपेट में आने की कगार पर है. इटली के ड्रग कार्टेल चीन के शैडो बैंक से आने वाली पेयमेंट को छिपाने की कोशिश करते पाए गए हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 35 मिलियन (3.50 करोड़) लोग मेथ की आदी बन चुके हैं. लेकिन ड्रैगन का चायना-व्हाइट, मेथ से भी 100 गुना ज्यादा घातक माना जाता है. चीन ने फेंटेनाइल से लैस ड्रग्स के उत्पादन को जबरदस्त तरीके से अपने देश में बढ़ा दिया है.
चीन ने हालांकि मैक्सिको और इटली जैसे देशों में ही अपना ड्रग्स का जाल नहीं बिछाया है बल्कि मित्र-देशों तक को नहीं बख्शा है.
भारत से दोस्ती का हाथ छुड़ाकर चीन का दामन थामने वाला मालदीव तक ‘चायना-व्हाइट’ की चपेट में आ चुका है. चीन के गैरकानूनी ड्रग्स के धंधे के लिए मालदीव आज एक ‘ट्रांस-शिपमेंट हब’ बन चुका है. चीन की फेंटेनाइल आज मालदीव से ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और थाईलैंड सहित फिलीपींस पहुंचती है. इसके चलते मालदीव के युवा भी नशे की आदी बनते जा रहे हैं.
कुछ साल पहले चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसे प्रोजेक्ट का लालच देकर दुनिया के कई देशों को कर्ज के जाल में फंसाने की कोशिश की. लेकिन भारत और अमेरिका जैसे देशों ने चीन कr साजिश का भंडाफोड़ कर दिया. अब बेहद कम देश हैं जो चीन के बीआईआर का हिस्सा हैं. ऐसे में चीन ने ड्रग्स के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और दुनिया के बाकी हिस्सों को बर्बाद करने की ‘ग्रे-जोन’ रणनीति तैयार की है. इसके लिए मालदीव, म्यांमार और लाओस जैसे देशों को चीन कंधे के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है.
[TFA की ये पड़ताल OSINT पर आधारित है]