जापान के इतिहास का सबसे काला अध्याय माने जाने वाले मामले में 80 साल के बाद आया है फैसला. यहां हम बात कर रहे हैं ‘कम्फर्ट वुमेन’ की. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों ने एक दो नहीं बल्कि 2 लाख विदेशी लड़कियों को सेक्स-गुलाम बनाया था. जापानी सैनिकों ने विदेशी महिलाओं को जबरन कई वर्षों तक अपनी कैद में रखा था और यौन शोषण किया था. अब दक्षिण कोरिया की एक अदालत ने जापान को बड़ा झटका दिया है. कोर्ट ने युद्ध के दौरान बंधक बनाई गई महिलाओं और उनके यौन शोषण के मामले में सभी पीड़ितों को 1 लाख 54 हजार डॉलर यानि हर एक महिला को 1 करोड़ 28 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने का आदेश दिया है.
80 साल बाद इंसाफ
सियोल की कोर्ट ने माना युद्ध के दौरान पीड़ितों का अपहरण किया गया, फिर उन्हें कंफर्ट वुमेन बनाया गया. दरअसल सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जीवित बची 16 महिलाओं ने पहले निचली अदालत में अपील दायर की थी, पर 2021 में निचली अदालत ने कहा था कि महिलाएं मुआवजे की हकदार नहीं हैं. क्योंकि अगर पीड़ितों के पक्ष फैसला दिया गया तो टोक्यो के साथ राजनयिक घटना हो सकती है. पर दक्षिण कोरिया के उच्च न्यायालय ने निचली अदालत फैसले को पलटते हुए महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया और महिलाओं को मुआवजा देने का आदेश दिया.
95 वर्षीय पीड़िता की आंखों में छलके आंसू
एक 95 वर्षीय पीड़िता उन विक्टिम में से एक हैं जिन्हें सेक्स गुलाम बनाया गया था. कोर्ट से हक में फैसला आने के बाद यंग-सू ने कहा- ये फैसला उन महिलाओं के लिए हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. मैं उन पीड़ितों को धन्यवाद कहना चाहूंगी, जो गुजर चुकी हैं.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
1895-1945 तक ताइवान पर जापान का शासन था. जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोरिया, वियतनाम, चीन, फ़िलीपीन्स जैसे देशों से लड़कियो को फैक्ट्री में काम करने के बहाने लाया गया. तो बहुत सारी महिलाओं और लड़कियों को उनके घरों से सैनिकों ने जबरन उठा लिया. इन लड़कियों का जापानी सैनिक शोषण करते और विरोध करने पर बंदूक की बट से मारने और जिंदा जला देने तक जैसी क्रूरता करते. हर दिन 20 से 40 बलात्कार झेल रही कम उम्र की लड़कियों को एक इंजेक्शन भी दिया जाता था ताकि वो प्रेग्नेंट न हों. जापान ने बाकायदा कंफर्ट स्टेशन तैयार किए थे. कंफर्ट स्टेशन में खाने-पीने की चीजों के साथ लड़कियां भी रखी जाती थीं. यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के मुताबिक, साल 1932 से अमेरिका के सामने समर्पण यानी 1945 तक जापान ने बड़े ही संगठित तरीके से पूरी की पूरी “सेक्स इंडस्ट्री” खड़ी की गई थी. 1945 में परमाणु बम के हमले के बाद जापान ने सरेंडर किया तब जाकर महिलाओं की गुलामी की कहानी दुनिया के सामने आ सकी.
क्या है जापान का पक्ष?
जापान के युद्ध के समय महिलाओं के साथ हुई यातनाएं एक ऐसा गंभीर मुद्दा रहा जिसने समय समय पर जापान का सिर झुका दिया. हालांकि जापान सरकार ने महिलाओं के बंधक बनाए और कंफर्ट वूमेन जैसी बातों को नाकारा है. जापान ने हमेशा ये कहा है कि महिलाओं को नागरिकों द्वारा सैन्य वेश्यालय में भर्ती किया गया था जो व्यावसायिक रूप से संचालित थे. यानी महिलाएं अपने मन से व्यावसायिक तौर पर चलाए जा रहे वेश्यालय में काम करती थीं.
‘कंफर्ट वूमेन’ का खुलासा कैसे हुआ?
अगस्त 1991 में किम-हक-सुन नाम की एक कोरियाई महिला सामने आईं. जिन्होंने टीवी में एक इंटरव्य़ू दिया कि कैसे जापानी सैनिकों ने यातनाएं दीं. किम-हक-सुन के आवाज उठाए जाने के बाद और भी महिलाओं ने अपनी जिंदगी के ब्लैक चैप्टर को खोलना शुरु किया. क्योंकि जापान के युद्ध हारने के बाद ये महिलाएं या तो छिप कर रह रही थीं, क्योंकि समाज ने ऐसी महिलाओं को कभी स्वीकार ही नहीं किया था. संयुक्त राष्ट्र ने भी जापानी आर्मी की जघन्यता को इतिहास की सबसे बड़ी सेक्सुअल स्लेवरी (गुलामी) माना.
ऑपरेशन जेड लाइव
भारत के जाने-माने डिफेंस जर्नलिस्ट नीरज राजपूत की रूस-यूक्रेन युद्ध पर हाल में प्रकाशित हुई पुस्तक, ‘ऑपरेशन जेड लाइव’ में भी जापान द्वारा कोरियाई महिलाओं को कंफर्ट-वूमेन के तौर पर भर्ती करने का जिक्र है. इसके अलावा ब्रिटिश काल में भारत (और पाकिस्तान) में भी सैनिकों की ‘जरूरतों’ को पूरा करने के लिए सैन्य छावनियों में आधिकारिक वेश्यालय खोले जाने की जानकारी मिलती है. इन वेश्यालय को ‘लालकुर्ती’ के नाम से जाना जाता था. आज भी भारत और पाकिस्तान में कैंटोनमेंट के आस-पास लालकुर्ती नाम से बाजार और इलाकों के नाम मिल जाते हैं. मेरठ, रूड़की, लाहौर, रावलपिंडी इत्यादि कुछ ऐसे ही शहर हैं.