द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार युद्ध के मैदान में उतरी जर्मन नौसेना को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है. हूती विद्रोहियों पर अटैक करने के बजाए जर्मन नेवी ने अपने ही सहयोगी देश अमेरिका के एमक्यू-9 ड्रोन को निशाना बनाने की कोशिश की. इस दौरान जर्मन नेवी ने ना सिर्फ एमक्यू-9 ड्रोन को टारगेट किया बल्कि लक्ष्य भी चूक गया.
लाल सागर में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के खिलाफ मोर्चा संभाले पहुंची जर्मन नेवी का अपने ही देश में मजाक बनाया जा रहा है. जर्मन नेवी ने अमेरिकी एमक्यू 9 ड्रोन को दुश्मन सेना का समझ लिया. दुश्मन समझकर निशाना लगाया पर मिसाइल टारगेट पर पहुंचने से पहले ही फुस्स हो गई. अब जर्मन की मीडिया अपने ही देश की जमकर आलोचना कर रही है और सैन्य तैयारियों को लेकर सवाल खड़े कर रही है.
जर्मन नेवी को दोस्त-दुश्मन की पहचान नहीं ?
लाल सागर में अचानक बढ़े अटैक के बाद कई देशों की नेवी एक साथ हूतियों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. इस दौरान जर्मन युद्धपोत ने गलती से अमेरिकी सैन्य लड़ाकू ड्रोन को मार गिराने की कोशिश की. जर्मनी की फ्रिगेट हेसेन ने एमक्यू-9 रीपर को निशाना बनाया क्योंकि यह लाल सागर के आसपास एक मिशन पर था. गनीमत थी कि जर्मनी नेवी का निशाना चूक गया नहीं तो अमेरिका को अपना विध्वंसक रीपर ड्रोन खोना पड़ जाता.
जर्मनी के सशस्त्र बलों ने इस घटना की पुष्टि की प्रिगेट हेसेन दोस्त और दुश्मन की पहचान नहीं कर पाया. ऐसे में हूतियों के खिलाफ मिशन पर गए अमेरिकी ड्रोन पर ही टारगेट कर लिया गया. युद्धपोत ने कई मिसाइलें दागीं, पर युद्धपोत के रडार सिस्टम में तकनीकी दिक्कत के चलते मिसाइलें सिस्टम तक नहीं पहुँच पाईं. जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने भी घटना की पुष्टि की है. पत्रकारों से बातचीत में बोरिस पिस्टोरियस ने बताया है कि एक टोही ड्रोन पर गोलियां चलाई गईं, लेकिन कुछ भी नुकसान नहीं हुआ.
अमेरिका खो देता अपनी तीसरा रीपर ड्रोन
जर्मनी अगर सच में रीपर को मारने में सफल हो जाता तो नवंबर से अबतक 4 महीने में अमेरिकी सेना अपना तीसरा रीपर ड्रोन खो देती. ऑपरेशन के दौरान हूती विद्रोही पहले ही दो एमक्यू-9 ड्रोन को मारने में कामयाब रहे हैं. हाल ही में यमन के तट पर पिछले हफ्ते ही एक ड्रोन का नुकसान अमेरिका ने झेला है. जनरल एटॉमिक्स कंपनी द्वारा बनाए गए एक एमक्यू 9 रीपर ड्रोन की कीमत तकरीबन 460 करोड़ है. ड्रोन में बड़ी रेंज को कवर करने वाले सेंसर, मल्टी-मोड संचार सूट और सटीक हथियारों के साथ काम करने की क्षमता है. ये कम समय में संवेदनशील लक्ष्यों पर अचूक हमला कर सकता है. इसे दूर से भी कंट्रोल किया जा सकता है. अपने अचूक निशाने के चलते ही अमेरिकी ने हूती विद्रोहिओं की तलाश और खात्मे के लिए लाल सागर में एमक्यू रीपर को तैनात किया है.
जर्मन नौसेना का हेसेन यूरोपीय संघ के ऑपरेशन एस्पाइड्स का हिस्सा है और हाल ही में चार फ्रिगेट में से एक के तौर पर लाल सागर में प्रवेश किया है. लाल सागर में अमेरिका के नेतृत्व वाले ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन में कई देशों को मिलकर अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग जहाजों की हूतियों से रक्षा करनी होती है. अमेरिकी नौसेना के ड्वाइट डी. आइजनहावर कैरियर स्ट्राइक ग्रुप ने इस अभियान का नेतृत्व किया है, हवा में हूती ड्रोन और मिसाइलों को रोका गया है. ईयू और ऑपरेशन एस्पाइड्स साथ मिलकर एमक्यू-9 घटना की जांच कर रहे हैं. घटना के बाद अमेरिका ने कहा है कि हम एक साथ मिलकर काम करेंगे,
जर्मन मीडिया अपनी नेवी की कर रही आलोचना
जर्मनी की वेबसाइट और समाचार पत्रों में नौसेना की खामियों की रिपोर्ट छापी गई है. लाल सागर में हमारी नौसेना के लिए शर्मिंदगी” वाले शीर्षक से आर्टिकल लिखे जा रहे हैं. जिसमें सशस्त्र बलों की कमियों को बताया गया है और रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस के नेतृत्व की भी आलोचना की गई है. इस बात का भी खुलासा किया गया कि फ्रिगेट ‘हेसन’ के गोला-बारूद का हिस्सा अब खरीदा नहीं जा सकता. ऐसे में अगर गोला-बारूद के भंडार समाप्त हो गए, तो नौसेना उन्हें फिर से भरने में असमर्थ होगी, और फ्रिगेट को वापस लेना पड़ेगा. विपक्षी नेता ये भी आरोप लगा रहे हैं कि पारदर्शिता की कमी के चलते संसद ने 124 श्रेणी के युद्धपोतों को प्रभावित करने वाली स्पष्ट गोला-बारूद की कमी की जानकारी दिए बिना तैनाती को मंजूरी दे दी. दरअसल एसएम-2 (स्टैंडर्ड मिसाइल 2) प्रकार की मिसाइल अब नहीं बन रही हैं और हेसन में एसएम 2 का ही इस्तेमाल किया जाता है.
भारत के रक्षा सचिव जर्मनी के दौरे पर
खास बात ये है कि जर्मन नेवी को ऐसे समय में शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है जब भारत के रक्षा सचिव गिरिधर अरामने जर्मनी के दौरे पर थे. इस दौरान गिरिधर अरामने ने अपने जर्मन समकक्ष से डिफेंस सहयोग पर खास चर्चा की. जर्मनी की थायसनक्रूप कंपनी भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 75 (आई) के लिए मेक इन इंडिया के तहत बनाई जा रही पनडुब्बियों के निर्माण की दौड़ में है. इसके अलावा भारतीय सेना के टैंक के लिए भी इंजन देने पर जर्मनी से बातचीत चल रही है. (Stealth सबमरीन बनाने की रेस हुई दिलचस्प)
भारत दौरे के बाद जर्मन नेवी चीफ ने दिया था इस्तीफा
पहली बार नहीं है जब जर्मन नेवी की आलोचना हुई हो. साल 2022 में जर्मन नेवी चीफ काई आखन सोनबर भारत आए थे. इस दौरान एक कार्यक्रम में बोलते हुए तत्कालीन जर्मन नेवी चीफ ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन की तारीफ करते हुए ये कह दिया था कि पुतिन आदर के योग्य हैं. सोनबर ने कहा था कि ‘पुतिन सम्मान चाहते हैं. किसी को सम्मान देने में कोई लागत नहीं लगती है. पुतिन आदर के योग्य हैं. रूस एक पुराना और अहम मुल्क है.’ बाद में वाइस एडमिरल सोनबर ने अपने बयान के लिए माफी मांगी थी. और कहा था कि भारत में जल्दबाजी में दिए गए मेरे बयान से मेरे ऑफिस में तनाव बढ़ गया था. जर्मन नेवी, जर्मन सेना और अपने देश का और कोई नुकसान नहीं हो, इसलिए मैं इस्तीफा दे रहा हूं.
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