पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर जहां चीन अपने मिलिट्री बेस को मजबूत करने में जुटा है, भारतीय सेना पैंगोंग-त्सो लेक के किनारे महात्मा बुद्ध की मूर्तियां लगा रही है. भारतीय सेना के मुताबिक, ‘वसुधैव कुटुंबकम‘ की नीति पर चलते हुए फॉरवर्ड एरिया में शांति स्थापना के लिए ये कदम उठाया गया है. जबकि झील से सटे चीन के मिलिट्री बेस की सैटेलाइट इमेज हाल ही में दुनिया के सामने आई हैं.
पूर्वी लद्दाख में बुद्ध की मूर्तियां ऐसे समय में लगाई जा रही हैं जब हाल ही में भारत और चीन बॉर्डर पर शांति कायम करने के लिए दोगुना प्रयास करने में जुटे हैं. दोनों देश माने रहे हैं कि लंबे समय तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव भारत और चीन के पक्ष में नहीं है.
भारतीय सेना की लेह (लद्दाख) स्थित 14वीं कोर (फायर एंड फ्यूरी) ने खुद एलएसी के फॉरवर्ड लोकेशन का एक वीडियो अपने एक्स अकाउंट (ट्विटर) पर साझा करते हुए महात्मा बुद्ध की मूर्तियों के बारे में जानकारी दी है. सेना के मुताबिक, महात्मा बुद्ध की एक मूर्ति पैंगोंग-त्सो (लेक) के पश्चिमी मुहाने पर लुकुंग में लगाई गई है. दूसरी मूर्ति चुशूल में लगाई गई है. ये दोनों ही मूर्तियां, बुद्ध की ‘भूमि-स्पर्श मुद्रा’ में लगाई गई हैं.
फायर एंड फ्यूरी के मुताबिक, इन मूर्तियों को वाइब्रेंट विलेज के तहत पूर्वी लद्दाख में लगाई गई हैं. इसके तहत सेना, स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर पूर्वी लद्दाख के उन गांवों के विकास कार्यों में जुटी है जो एलएसी के बेहद करीब हैं.
बुद्ध की मूर्तियों और विकास कार्यों का वीडियो साझा करते हुए सेना ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि “पूर्वी लद्दाख के अग्रिम क्षेत्रों में एकजुटता को बढ़ावा देने, आध्यात्मिक मूल्यों को संरक्षित करने और शाश्वत शांति के लिए विश्व एक परिवार है.”
माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सेना, महात्मा बुद्ध की दो और मूर्तियां लगाने की तैयारी कर रही है. इनमें से एक डेमचोक में लगाई जाएगी, जबकि दूसरी की लोकेशन अभी तय होना बाकी है.
गलवान घाटी की झड़प यानी पिछले चार सालों से पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच जबरदस्त तनाव चल रहा है. दोनों ही देशों ने एलएसी के करीब 50-50 हजार सैनिकों के साथ-साथ ही टैंक, तोप, मिसाइल इत्यादि की तैनाती कर रखी है. हालांकि, कुछ इलाकों में विवाद सुलझ गया है लेकिन डेप्सांग प्लेन और डेमचोक जैसे इलाकों में लिगेसी विवाद जारी हैं.
हाल ही में कजाकिस्तान (कजाख्सतान) के अस्ताना में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात कर लीगेसी विवाद को भी सुलझाने का आह्वान किया था (4 जुलाई). दोनों ही विदेश मंत्री इस बात पर भी सहमत हुए थे कि एलएसी विवाद को ज्यादा लंबा खींचना दोनों देशों के हित में नहीं है. ऐसे में दोनों देशों को विवाद सुलझाने के लिए दोगुना प्रयास करने की सख्त जरूरत है.
अस्ताना में शांति वार्ता के चंद दिनों बाद ही हालांकि, पैंगोंग त्सो से सटे चीन के सिरीजैप इलाके की सैटेलाइट इमेज सामने आई है. इन तस्वीरों में दिखाई पड़ रहा है कि हाल के दिनों में चीनी सेना ने अपने मिलिट्री बेस को बेहद मजबूत किया है.
इन सैटेलाइट इमेज के सामने आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार की चीन के खिलाफ नीति पर सवाल उठाया है. खड़गे ने आरोप लगाया कि पैंगोंग त्सो लेकर पर चीन अपनी तैनाती मजबूत कर रहा है.
भारत और चीन के बीच पैंगोंग त्सो करीब 140 किलोमीटर लंबी है. करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी झील माने जाने वाली पैंगोंग का एक तिहाई हिस्सा भारत में है और बाकी (दो तिहाई) चीन में. 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने सिरीजैप को भारत से छीन लिया था. तभी से सिरीजैप चीन के कब्जे में है.
गलवान घाटी की हिंसा के बाद से ही चीनी सेना पैंगोंग त्सो लेक के दोनों तरफ अपने इलाके में जबरदस्त इंफ्रास्टकचर निर्माण से लेकर सैनिकों की तैनाती को बढ़ाने में जुटा है. एलएसी के बेहद करीब चीन ने पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी छोर को जोड़ने के लिए दो पुलों का निर्माण भी किया है ताकि सैनिकों की आवाजाही तेजी से की जा सके.
हालांकि, भारत का भी दावा है कि एलएसी पर चीनी सेना की तरह ही मिरर-डिप्लॉयमेंट के साथ साथ इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत किया जा रहा है. यही वजह है कि गलवान घाटी की हिंसा के बाद से चीन ने इस सेक्टर में मिस-एडवेंचर नहीं किया है.
इस बीच भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने सोमवार को कार्यक्रम के दौरान कहा कि “दोनों देश बेहद करीबी पड़ोसी हैं. अगर हम अपने-अपने नजरिए से देखेंगे तो हिमालय की पूरी तस्वीर नहीं देख पाएंगे. अगर हम ऊंचा उठेंगे, तभी हम दूर तक दूर तक देख पाएंगे.”
राजदूत ने कहा कि “मेरा गहरा विश्वास है कि हमारे दोनों नेताओं (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग) के मार्गदर्शन में और दोनों देशों के लोगों के संयुक्त प्रयासों से, चीन-भारत संबंध निश्चित रूप से मजबूत और स्थिर रास्ते पर आगे बढ़ेंगे, और हमारे दोनों देशों के लोगों और दुनिया को और ज़्यादा फ़ायदा पहुँचाएंगे.”