राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोवल ने किसी भी युद्ध को लड़ने के पीछे उस देश के लोगों की ‘इच्छाशक्ति’ को बेहद जरूरी बताया है. भारत के परिप्रेक्ष्य में बोलते हुए एनएसए ने कहा कि हमने इसकी ‘अनदेखी’ की है और इतिहास से भी ज्यादा सीख नहीं ली है.
रूस यूक्रेन और द्वितीय विश्वयुद्ध का उदाहरण देते हुए अजीत डोवल ने कहा कि “किसी भी देश के सैन्य उद्देश्यों का लक्ष्य, प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र के आत्मबल को तोड़ना होता है. ऐसे में युद्ध में दुश्मन की सेना को हराकर दुश्मन देश के आत्मबल को तोड़ा जा सकता है.”
एनएसए ने कहा कि “जब आप अपने प्रतिद्वंद्वी को युद्ध के मैदान में हराते हैं, तो वह आपकी शर्तों पर आपके साथ शांति स्थापित करने के लिए तैयार होता है.”
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल जी डी बख्शी (रिटायर) की पुस्तक ‘इंडियाज स्ट्रैटेजिक कल्चर-महाभारत एंड कौटिल्य वे ऑफ वॉर्स’ के विमोचन पर एनएसए डोवल ने युद्ध को लेकर कई अहम बातें साझा की हैं.
अपने संबोधन में अजीत डोवल ने कहा है कि हम युद्ध इसलिए नहीं लड़ते हैं क्योंकि प्रतिद्धंदी सैनिकों को मारने में हमें खुशी मिलती है. उन्होंने कहा कि सैन्य और राजनीतिक उद्देश्य हो सकते हैं. लेकिन इन सबसे से ज्यादा जरूरी है देश के लोगों की इच्छाशक्ति. (https://x.com/ANI/status/1849822444384813222)
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि देश की सुरक्षा और विकास के लिए एक मजबूत और संकल्पित ‘राष्ट्रीय इच्छाशक्ति’ आवश्यक है. यह केवल राजनीतिक या सैन्य शक्ति से ही नहीं, बल्कि समाज की समग्र भागीदारी से ही संभव होता है.
डोवल ने साफ कहा कि “हमने राष्ट्रीय इच्छाशक्ति (युद्ध लड़ने) की उपेक्षा की है या उसे इतना मजबूत नहीं किया जितना होना चाहिए था.” उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़-दो सौ साल में एक व्यक्ति ऐसा हुआ है जिसने इसे पहचाना था. डोवल ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने जब, ‘उठो भारत’ का संकल्प लिया था, तब उनका इशारा इसी राष्ट्रीय आत्मबल को पैदा करना था.
डोवल ने कहा कि “हमें अपनी ताकत को पहचानना होगा. हमें इतिहास से सीख लेने की जरूरत है, क्योंकि हम जिस पर अधिकार रखते थे, दुर्भाग्य से ऐतिहासिक कारणों से हमें नहीं मिला.”
डोवल ने कहा कि “हम इतिहास के सताए हुए हैं, फिर भी हमने कोई सबक नहीं सीखा.” (Fake नैरेटिव को काउंटर करें देशवासी: डोवल)