भारतीय रेल ने 1962 के युद्ध में चीनी सेना के दांत खट्टे करने वाली भारतीय सेना की ’13 कुमाऊं’ यूनिट (बटालियन) के सम्मान में अपने एक ट्रेन के इंजन को समर्पित किया है. भारतीय रेल ने इस इंजन को ‘रेज़ांगला ‘ नाम दिया है. क्योंकि पूर्वी लद्दाख के रेज़ांगला में ही 13 कुमाऊं के वीर सैनिकों ने अदम्य साहस, वीरता और बलिदान का परिचय दिया था.
रेजांगला और ‘कुमाऊं रेजीमेंट’ लिखे इस ट्रेन के इंजन का वीडियो भी सामने आया है. वीडियो में इंजन लोको-शेड से पहली बार बाहर आता दिखाई पड़ रहा है. इंजन पर 13 बटालियन, कुमाऊं रेजीमेंट और रेजांगला के साथ सेना का आदर्श वाक्य, ‘नाम, नमक और निशान’ भी लिखा हुआ है. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1840597692918972782)
1962 के युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन (यूनिट) के सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था. 13 कुमांयू की चार्ली (सी कंपनी) ने रेजांगला युद्ध के दौरान पूर्वी लद्दाख में चीनी हमले का डटकर सामना किया था. कंपनी के 124 अहीर जवानों ने आखिरी दम तक युद्ध किया और जब तक एक भी जवान जिंदा रहा, हार नहीं मानी. ये सभी जवान मूलत हरियाणा के निवासी थे.
चीन से रेजांगला की लड़ाई 18 नवंबर 1962 को 17,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई थी. मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में चीन से लड़ने वाली टुकड़ी में 124 सैनिकों में से तीन जवान ही जीवित बचे थे. चीन से लड़ते हुए बेहद गंभीर चोट होने के बावजूद हरियाणा के रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ से ताल्लुक रखने वाले सैनिकों ने हार नहीं मानी और मरते दम तक चीनी सैनिकों को जवाब दिया.
सर्दियां खत्म होने के बाद भारतीय सैनिक जब वीरगति को प्राप्त सैनिकों के पार्थिव शरीर को लेने वापस गई तो देखा कि मेजर शैतान सिंह भाटी सहित कई सैनिकों के हाथ में पिस्टल और गन थी. हथियार में कारतूस खत्म हो गए थे, लेकिन जांबाज अहीर सैनिकों ने हथियार नहीं छोड़े.
कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े वीरता मेडल, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. साथ ही आठ (08) जवानों को वीर चक्र और सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
1962 के युद्ध के बाद मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में इस लड़ाई पर लिखा गीत, ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’, सुनाया था. इस गाने को चीन युद्ध पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ में भी दर्शाया गया था, जिसे मशहूर गीतकार प्रदीप ने लिखा था.
साल 2012 में 1962 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ पर 13 कुमाऊं के अहीर सैनिकों की गाथा लोगों को सुनाई गई तो सेना में अहीर रेजीमेंट की मांग उठने लगी. साल 2022 में रेजांगला की लड़ाई की 60वीं वर्षगांठ के बाद रेजिमेंट बनाने की मांग और तेज हो गई. (अहीर रेजिमेंट को लेकर सियासत फिर गर्म !)
अहीर रेजीमेंट की मांग को देखते हुए हाल ही में सरकार ने पूर्वी लद्दाख के चुशूल सेक्टर में ‘अहीर धाम’ (स्मारक) की स्थापना की थी. ये स्मारक चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब बनाया गया है. ये स्मारक उसी रेज़ांगला के करीब हैं जहां मेजर शैतान सिंह और उनकी पलटन ने चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ाए थे. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1461218301015564289?s=46)