संसद के मानसून सत्र का छठे दिन ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हुई. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बाद विपक्ष के सवालों और सीजफायर के ट्रंप के दावे को लेकर विदेश मंत्री ने प्वाइंट टू प्वाइंट तर्क रखा, और साबित किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच अमेरिकी मध्यस्थता का कोई सवाल ही नहीं, सीजफायर सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान के डीजीएमओ की गुहार के बाद ही हुआ है. इसमें ट्रंप या अमेरिका की कोई भूमिका नहीं हैं.
विपक्षी नेताओं ने ट्रंप के सीजफायर कराने वाले दावे पर पलटवार करते हुए जयशंकर ने कहा, कि पहलगाम नरसंहार के बाद 22 अप्रैल को बातचीत के बाद से 17 जून के बीच पीएम मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच फोन पर कोई बातचीत नहीं हुई.
पाकिस्तानी डीजीएमओ ने लगाई थी सीजफायर की गुहार: जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदन को बताया कि “नौ मई की सुबह अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की फोन कॉल को लेकर जानकारी दी. अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने कहा कि पाकिस्तानी बड़ा हमला कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे साफ कह दिया कि भारत मुंहतोड़ जवाब देगा.”
जयशंकर ने किसी भी तरह की मध्यस्थता से इनकार करते हुए कहा कि “सीजफायर की पहल पाकिस्तान की ओर से हुई थी. हमने साफ कह दिया था कि पाकिस्तान अगर युद्ध रोकना चाहता है तो उसके डीजीएमओ हमारे डीजीएमओ से बात करें.”
जयशंकर ने कहा, ’22 अप्रैल (पहलगाम आतंकी हमला) से 17 जून (संघर्ष विराम की घोषणा की तारीख) के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कोई बात नहीं हुई.
सीजफायर पर हंगामा को शाह ने हड़काया, कहा, क्या किसी और देश पर है भरोसा
एस जयशंकर के सीजफायर वाले बयान पर विपक्ष ने हंगामा शुरु किया तो गृह मंत्री अमित शाह खड़े हुए. अमित शाह ने विपक्ष को डांटते हुए कहा, “भारत का विदेश मंत्री यहां बोल रहा है, इनको विदेश मंत्री पर भरोसा नहीं है. किसी और देश पर भरोसा है. इसीलिए ये (विपक्ष) वहां बैठे हैं, अगले 20 साल तक वहीं बैठने वाले हैं.”
भारत परमाणु ब्लैकमेलिंग नहीं सहेगा, फ्रांस, जर्मनी, ईयू ने एक स्टैंड लिया, ये हमारी डिप्लोमेसी: एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सदन में कहा, “संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी हमले की निंदा की. पाकिस्तान ने टीआरएफ का बचाव किया. सात मई की सुबह मैसेज दिया गया और पाकिस्तान को सबक सिखाया गया. हमने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया. हमने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया. अपने नागरिकों की रक्षा करना भारत का अधिकार है और भारत अब परमाणु ब्लैकमेलिंग नहीं सहेगा. भारत और पाकिस्तान के बीच कोई मध्यस्थ नहीं था.सीजफायर की पहल पाकिस्तान की ओर से हुई. पाकिस्तान ने सीज फायर की गुहार लगाई.”
“क्वॉड देशों ने घटना की निंदा की, अमेरिका से तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण हुआ, ये हमारी डिप्लोमेसी है. फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय यूनियन ने एक स्टैंड लिया, ये हमारी डिप्लोमेसी है.”
यूएन के 193 देशों में सिर्फ 3 ने ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया: जयशंकर
पहलगाम नरसंहार के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की मीटिंग से लेकर पाकिस्तानी दूतावास के सदस्यों को पर्सन ऑफ नॉन ग्रेटा घोषित किए जाने तक, सरकार के कदम गिनाए.
जयशंकर ने कहा, “दूतावासों को ब्रीफिंग देने के साथ ही मीडिया में भी यह जानकारी दी गई कि भारत को अपने नागरिकों की रक्षा का अधिकार है. पाकिस्तान सुरक्षा काउंसिल का सदस्य है, हम नहीं हैं. हमने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान के बारे में बताया. हमारी रेड लाइन पार कर गई, तब हमें सख्त कदम उठाने पड़े. हमने दुनिया के सामने पाकिस्तान का असली चेहरा बेनकाब किया. सिक्योरिटी काउंसिल में पाकिस्तान समेत केवल तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया. यूएन के 193 में से तीन सदस्यों ने ही इस ऑपरेशन का विरोध किया.”
सीमा पार आतंकवाद की चुनौती कायम, हर डेलिगेशन को मिला विदेशों में सम्मान: जयशंकर
विदेश मंत्री ने कहा कि “सीमा पार आतंकवाद की चुनौती अब भी कायम हैं, जिसके लिए न्यू नॉर्मल हमारी पोजिशन है. उन्होंने न्यू नॉर्मल के पांच स्तंभ भी बताए.”
अरविंद सावंत का नाम लेकर जयशंकर कहा कि “आपकी जानकारी गलत है. हर डेलिगेशन को पूरा सम्मान मिला. सातों डेलिगेशन ने देश को गौरवान्वित किया. हर सदस्य ने आतंक पर जीरो टॉलरेंस की भारतीय नीति को मजबूती से दुनिया के सामने रखा. आतंक पर किसी तरह का कोई विभाजन नहीं होना चाहिए और सदन से जीरो टॉलरेंस का संदेश जाना चाहिए.”
आपको बता दें, कि विपक्ष के सांसद अरविंद सावंत ने आरोप लगाया था कि सर्वदलीय डेलिगेशन को सम्मान नहीं मिला था.
मैं चीन गया था, लेकिन सीक्रेट समझौता करने नहीं: एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर के चीन दौरे को लेकर भी विपक्ष ने सवाल उठाए तो करारा जवाब मिला. जयशंकर ने कहा कि “हां, मैं चीन गया था. चीन गया था सीमा पर तनाव कम करने पर चर्चा, ट्रेड और अन्य विषयों पर अपना स्टैंड क्लियर करने गया था. हम सीक्रेट समझौते करने नहीं गए थे.”
जयशंकर ने कहा कि “डोकलाम में जब हमारी सामने चीन के साथ आमने-सामने थी, विपक्ष के नेता अपने घर पर चीन के राजदूत से ब्रीफिंग ले रहे थे.”
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कटाक्ष करते हुए कहा कि “विपक्ष के नेता ने इतिहास की क्लास मिस कर दी होगी. टू फ्रंट 1948 में शुरू हुआ था, पीओके के लिए. 1963 में शुरू हुआ था चीन-पाकिस्तान की ओर से.”
पाकिस्तान-चीन की पार्टनरशिप 60 साल पुरानी:जयशंकर
“1966 में चीन की पहली सैन्य सप्लाई पाकिस्तान पहुंची थी. 1986 में परमाणु सहयोग दोनों का चरम पर था, जब राजीव गांधी पाकिस्तान गए थे. उन्होंने पाकिस्तान और चीन के बीच समझौतों का इतिहास गिनाते हुए कहा कि पाकिस्तान-चीन सहयोग का इतिहास 60 साल का है.”
विपक्ष के हंगामे के बीच जयशंकर ने अपना जवाब जारी रखते हुए कहा कि “जो लोग एफएटीएफ के सात बिलियन डॉलर के पैकेज पर हाय-तौबा मचा रहे हैं, उनके समय में 15 बिलियन डॉलर का पैकेज उसे मिला था.”
अमित शाह ने दी विपक्ष को वॉर्निंग
विपक्ष की ओर से टोका-टाकी पर नाराजगी जाहिर करते हुए अमित शाह ने कहा कि “आपको प्रोटेक्शन देना चाहिए. कल बताऊंगा कि कितनी असत्य बातें कही गईं. बैठे-बैठे इतनी बातें कही जा रही हैं, हम भी अपने सदस्यों को समझा नहीं पाएंगे.”