बालाकोट एयर-स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान से हुई डॉग-फाइट के दौरान भारत के फाइटर पायलट विंग कमांडर (अब ग्रुप कैप्टन) अभिनंदन अपने मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान से एलओसी पार कर पाकिस्तान की सीमा में पहुंच गए थे. लेकिन इस तरह की गलतियों को सुधारने के लिए सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने एक खास मिलिट्री डिजिटल मैप तैयार किया है जो आसमान में पायलट को नेविगेशन में मदद करेगा.
एचएएल ने इनदिनों राजधानी दिल्ली में दो दिवसीय (7-8 दिसंबर) ‘एवियॉनिक्स एक्सपो’ का आयोजन किया है. इस एक्सपो में ऐसे स्वदेशी नेविगेशन और कम्युनिकेशन सिस्टम को प्रदर्शित किया गया है जो युद्ध का रुख मोड़ने में अहम साबित हो सकते हैं. एक ऐसा ही नेविगेशन सिस्टम है ‘डिजीटल मैप जेनरेटर’ (डीएमजी). एचएएल की कोरवा (अमेठी) यूनिट ने इस डीएमजी-मैप को डिजाइन किया है. ये आसमान में किसी भी फाइटर पायलट के लिए उसके कॉकपिट की स्क्रीन पर मिलिट्री-मैप की तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा.
एचएएल के डिजाइन-विंग के सीनियर मैनेजर, कुमार पुष्पेंद्र ने टीएफए से खास बातचीत में बताया कि ये डिजिटल-मैप ना केवल सीमाओं की जानकारी देगा बल्कि इसमें दुश्मन के अहम सैन्य ठिकाने और एयर-डिफेंस सिस्टम का डाटा भी सम्मिलित किया गया है. ऐसे में जैसे ही एयरक्राफ्ट दुश्मन की मिसाइल की जद में आएगा, पायलट को एक अलर्ट जारी हो जाएगा. ऐसे में बिना दुश्मन की मिसाइल के रडार में आए बगैर फाइटर पायलट दुश्मन की सीमा में घुसकर तबाही मचा सकता है.
एचएएल के मुताबिक, इस डिजिटल मैप मे फिलहाल चीन सहित पूरे साउथ-ईस्ट एशिया का डाटा शामिल है. इस मैप का दायरा 3600 स्क्वायर किलोमीटर है यानी 60X60 किलोमीटर के रेडियस में पायलट आसानी से नेविगेट कर सकता है. ये स्वदेशी मैप सीमावर्ती इलाकों में पायलट के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है. क्योंकि उस दौरान एयर-स्पेस के उल्लंघन जैसी घटनाओं से बचा जा सकता है.
दरअसल, अभी तक फाइटर पायलट को मैन्युल मिलिट्री-मैप को अपने जी-सूट (डांगरी) में रखना पड़ता है. उड़ान के दौरान उसे मैन्युल-मैप का सहारा लेना पड़ता है. लेकिन दुश्मन के साथ डॉग-फाइट (एरियल लड़ाई) के दौरान कभी कभी मैप देखने में खतरा पैदा हो जाता है. कभी कभी एरियल-इंगेजमेंट के दौरान पायलट मैप को देखना ही भूल जाता है और दुश्मन की सीमा में दाखिल हो जाता है. अगर आधुनिक फाइटर जेट में डिजिटल-मैप थे भी तो वे अमेरिका या फिर इजरायल जैसे देशों के थे. ऐसे में भारत को अपनी सैन्य जरूरतों के हिसाब से फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए डिजिटल-मैप की दरकार थी, जो एचएएल ने अब पूरी कर दी है.
वर्ष 2019 में बालाकोट एयर-स्ट्राइक के बाद जब भारत और पाकिस्तान की वायुसेनाओं में एलओसी की एयरस्पेस में डॉग-फाइट हुई थी तो विंग कमांडर अभिनंदन ने ये गलती कर दी थी और वे पाकिस्तान (पीओके) की सीमा में दाखिल हो गए थे. बाद में जब स्थानीय लोगों और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंधक बना लिया था तो उनके कब्जे से एक मैन्युल-मैप भी बरामद हुआ था. लेकिन अब ऐसी गलती की संभावना थोड़ी कम हो जाएगी. क्योंकि भारतीय वायुसेना इन डिजिटल मिलिट्री मैप (डीएमजी) को अपने सभी लड़ाकू विमानों में लगाने जा रही है.
कुमार पुष्पेंद्र के मुताबिक, सबसे पहले इन डिजिटल मैप्स को सुखोई-एमकेआई और जगुआर फाइटर जेट में लगाया जा रहा है. हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने सुखोई फाइटर जेट को अपग्रेड करने की अनुमति दी है. माना जा रहा है कि एलसीए-तेजस और जितने भी नए फाइटर जेट अब एचएएल तैयार करेगा उन्हें डीएमजी से लैस किया जाएगा.
एचएएल के मुताबिक, इन डिजिटल मैप का एक फायदा और है. इस 2-डी और 3-डी डीएमजी-मैप में टैरेन यानी जगह और स्थानों के साथ-साथ ये भी बताया गया है कि कहां-कहां पर्वतीय इलाके हैं. ऐसे में अगर लड़ाकू विमान किसी ऊँची पर्वत-श्रृंखला के करीब पहुंचेगा तो कॉकपिट में एक अर्ली-वार्निंग जारी कर दिया जाएगा. इस परिस्थिति में पायलट अलर्ट हो जाएगा और एयरक्राफ्ट को नीचे नहीं लेकर जाएगा. ऐसे में इस मैप के जरिए हिली-एरिया में क्रैश होने का खतरा भी काफी कम हो जाएगा. गौरतलब है कि कुछ साल पहले भारतीय वायुसेना का एक सुखोई फाइटर जेट अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा के करीब एक ऊंची पहाड़ी से टकराकर क्रैश हो गया था.
एवियॉनिक्स एक्सपो के उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि “भारत के सामने लगातार नए खतरे पैदा हो रहे हैं, जिससे निपटने के लिए सशस्त्र सेनाओं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) को अत्याधुनिक तकनीक से लैस होने की सख्त जरूरत है.” सीडीएस ने कहा कि हमें विश्व में हो रहे राजनीतिक बदलावों के साथ-साथ तकनीकी क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के बीच रहना होगा. ऐसे में आधुनिक सेनाएं युद्ध को लड़ने के लिए तो तैयार होनी ही चाहिए, भविष्य के खतरों से निपटने के लिए भी कमर कसनी चाहिए.