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पहलगाम नरसंहार: RSS प्रमुख ने याद दिलाया राजा का कर्तव्य

‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ नाम की पुस्तक के विमोचन के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पाकिस्तान का बिना नाम लिए पीएम नरेंद्र मोदी और सरकार को बड़ा मैसेज दिया है. संघ प्रमुख ने भारत को अहिंसा का देश बताते हुए राजा को जनता के प्रति कर्तव्य याद दिलाया है.

मोहन भागवत ने कहा कि “भारत अपनी परंपरा के अनुसार कभी भी किसी पड़ोसी देश को नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन यदि कोई देश या समूह गलत रास्ता अपनाता है और अत्याचार करता है तो राजा (सरकार) का कर्तव्य है कि वह अपनी प्रजा की रक्षा करे.”

रावण का संहार, हिंसा नहीं, अत्याचारियों का दमन, होता है धर्म का पालन: मोहन भागवत

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, “भगवान ने रावण का संहार किया, वह हिंसा नहीं थी. अत्याचारियों को रोकना धर्म है. रावण का वध उसके कल्याण के लिए हुआ था. ये हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा थी. मोहन भागवत ने कहा, जब कोई अत्याचार की सारी सीमाएं पार कर लेता है और उसके सुधार का कोई उपाय नहीं बचता, तो उसका दमन करना भी एक प्रकार की अहिंसा ही है, धर्म का पालन. इसलिए राजा का कर्तव्य है कि वह जनता की रक्षा करे और दोषियों को दंड दे.” 

गुंडागर्दी से मार न खाना हमारा धर्म है:मोहन भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, कि “अहिंसा हमारा मूल स्वभाव है. हमारा अहिंसा लोगों को बदलने के लिए है, लेकिन कुछ ऐसे बिगड़े हैं कि वो उपद्रव करेंगे, मानेंगे ही नहीं. अहिंसा हमारा धर्म है तो गुंडागर्दी से मार न खाना भी हमारा धर्म है. रावण को उसके सुधार के लिए भगवान ने वध किया. जिनका सुधार नहीं हो सकता है उनका वहां भेज देते हैं जहां उनका कल्याण हो. हम पड़ोसी को छोटा नहीं दिखाते हैं. प्रजा का कल्याण राजा का काम है वो अपना कर्म करेगा, वही उसका धर्म है, वो करेगा.”

विश्व को तीसरा रास्ता देगा भारत: मोहन भागवत

हिंदू और भारतीय संस्कृति पर बात करते हुए संघ प्रमुख ने कहा, “भारतीय संस्कृति में विचार-विमर्श का एक समृद्ध इतिहास रहा है, जहां प्रस्ताव और उत्तर दोनों पक्षों को सुनकर समाधान निकाला जाता था. इस पर गहन चर्चा और संवाद आवश्यक है. शास्त्रार्थ से ही सही मार्ग निकलता है. हिंदू समाज को अपने धर्म की गहराई को जानने और उसे समय के अनुरूप ढालने की जरूरत है. दुनिया ने दो रास्ते देख लिए हैं, अब तीसरा रास्ता भारत देगा. भारत से दुनिया को न केवल एक नया वैचारिक मार्ग मिलेगा, बल्कि एक ऐसा संतुलित और मानवतावादी दृष्टिकोण भी मिलेगा, जिसकी आज वैश्विक स्तर पर आवश्यकता है.”

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