भारत और रूस के संबंधों में एक नया आयाम जुड़ने जा रहा है. रूस ने घोषणा की है कि दोनों देश एक साथ सैनिकों की तैनाती पर विचार कर रहे हैं. इसके साथ ही अमेरिका की तर्ज पर दोनों देश लॉजिस्टिक सपोर्ट से जुड़ा करार करने पर भी विचार कर रहे हैं. खुद रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशिुस्टिन ने अपने देश के रक्षा मंत्रालय को इस ड्राफ्ट पर भारत से चर्चा करने का आदेश दिया है.
जानकारी के मुताबिक, रुस के नए ड्राफ्ट में मिलिट्री फोर्मेशन की साझा तैनाती से लेकर युद्धपोत और फाइटर जेट को तैनात करने के बारे में कहा गया है. ये तैनाती एक-दूसरे के देश में भी की जा सकती है.
वर्ष 2016 में भारत ने अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (एलईएमओ) पर करार किया था. इसके तहत दोनों देशों के युद्धपोत इत्यादि एक दूसरे के नेवल बेस और सैन्य ठिकानों पर जाकर रिफ्यूलिंग इत्यादि कर सकते हैं. ठीक ऐसे ही लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट भारत ने फ्रांस, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से किए हैं. रूस के साथ भी ऐसा ही करार के लंबे समय से लटका हुआ है. लेकिन अभी तक नहीं हुआ है. ऐसे में रूस के प्रधानमंत्री के आदेश के बाद इस पर चर्चा होना संभव है.
लेकिन रुस ने लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट के साथ ही मिलिट्री-डिप्लॉयमेंट को लेकर जो कहा है उससे दुनिया के कान खड़े होने लाजमी है. क्योंकि भारत ने आज तक किसी देश के साथ इस तरह का करार नहीं किया है. भारत की सशस्त्र-सेनाएं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) आज दुनिया के दो दर्जन से भी ज्यादा देशों के साथ युद्धाभ्यास और रक्षा सहयोग करती हैं लेकिन साझा सैनिकों की तैनाती नहीं हुई है.
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के बैनर तले जरुर शांति-मिशन में भारत के सैनिक दूसरे देशों के सैनिकों के साथ तैनात रहते हैं. लेकिन किसी भी देश के साथ इस तरह का कोई द्विपक्षीय समझौता नहीं है. हालांकि, रूस के सुझाव पर भारत की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
रूस ही ऐसा देश है जिसके साथ पहली बार भारत ने वर्ष 2017 में ट्राई-सर्विस मिलिट्री एक्सरसाइज इंद्रा की थी. रूस के सुदूर-पूर्व में व्लादिवोस्तोक में आयोजित इस एक्सरसाइज में दोनों देशों की थलसेना, वायुसेना और नौसेना, तीनों ने एक साथ वॉर-ड्रिल में हिस्सा लिया था. उस दौरान भारत ने रूस के ही टैंक, आर्मर्ड व्हीकल, हेलीकॉप्टर और युद्धपोत के जरिए साझा युद्धाभ्यास में हिस्सा लिया था. क्योंकि दोनों देशों के टैंक इत्यादि एक जैसे ही हैं. लंबे समय तक भारत ने रूस के ही बने टैंक, बीएमपी (आर्मर्ड व्हीकल्स), हेलीकॉप्टर और युद्धपोत का इस्तेमाल किया है.
व्लादिवोस्तोक में आयोजित युद्धाभ्यास से पहले तक सेना के तीनों अंग रूस से अलग-अलग युद्धाभ्यास करते थे. रूस के बाद ही भारत ने फिर अमेरिका से विशाखापट्टनम में ट्राई-सर्विस एक्सरसाइज की थी.
भारत के लिए रूस से लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट इसलिए जरूरी है क्योंकि आर्टिक-क्षेत्र में चीन तेजी से पांव पसार रहा है. इंडो-पैसिफिक के बाद भारत भी आर्टिक-क्षेत्र में अपना प्रभाव कायम करना चाहता है. ऐसे में भारत को रूस की मदद पड़ सकती है.
रुस ने भारत के साथ सैन्य तैनाती पर ऐसे समय में घोषणा की है जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसी हफ्ते उत्तर कोरिया के साथ बेहद खास सामरिक समझौता किया है. इस समझौते के तहत अगर दोनों देशों में से किसी पर कोई हमला होता है तो वो दोनों देशों पर माना जाएगा. ऐसी परिस्थितियों में दोनों देशों मिलकर मुकाबला करेंगे.
खास बात ये है कि अगले महीने (3-4 जुलाई) को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा नहीं ले रहे हैं. संसद के पहले सत्र के चलते पीएम मोदी कजाकिस्तान में आयोजित एससीओ बैठक में नहीं जाएंगे. एससीओ में भारत और कजाकिस्तान के अलावा रूस, चीन, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उजेबीकस्तान शामिल हैं.
माना जा रहा है कि पीएम मोदी इस साल के अंत में रूस में होने जा रही ब्रिक्स देशों की बैठक में शामिल हो सकते हैं.
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