TheFinalAssault Blog Alert Current News Sri Krishna का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान, ’71 की जंग में लिया पाकिस्तान से बदला (TFA Spl)
Alert Classified Current News Geopolitics India-Pakistan IOR Military History Reports War

Sri Krishna का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान, ’71 की जंग में लिया पाकिस्तान से बदला (TFA Spl)

File: Chief of Naval Staff during '71 war, Admiral SM Nanda taking salute.

वो साल था 1971 का… ईस्ट पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश को लेकर भारत और पाकिस्तान में जबरदस्त तनातनी चल रही थी. जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारतीय सेना ईस्ट पाकिस्तान पर आक्रमण करने की योजना बना रही थी. युद्ध की योजना बनाए जाने के दौरान थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों को ही अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी. थलसेना को अगर जमीन के रास्ते बांग्लादेश में दाखिल होना था तो वायुसेना को ईस्ट पाकिस्तान के महत्वपूर्ण एयर बेस पर हवाई हमले करने थे. भारतीय नौसेना को जिम्मेदारी मिली थी कि पाकिस्तान से ईस्ट पाकिस्तान को होने वाली सप्लाई को बाधित करना है यानी रोकना है. यानी युद्ध के दौरान ईस्ट पाकिस्तान में जो पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे उन्हें किसी भी तरह से हथियारों से लेकर राशन तक की सप्लाई समंदर के रास्ते से न हो सके. क्योंकि युद्ध के दौरान हवाई मार्ग पर भारतीय वायुसेना की निगहबानी थी और भारत की एयर-स्पेस से जाने वाला हवाई मार्ग बंद कर दिया गया था. 

नौसेना को चाहिए था राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान

लेकिन भारतीय नौसेना राष्ट्रीय सुरक्षा में बड़ा योगदान के लिए छटपटा रही थी. 1948 का युद्ध हो या फिर 1965 का, नौसेना को कोई बड़ी भूमिका नहीं दी गई थी. ऐसे में नौसेना को लगने लगा कि देश के सुरक्षा के लिए क्या वाकई इसकी जरूरत है. देशवासी उनके बारे में क्या सोच रखते होंगे. 1962 के युद्ध में चीन के हाथों सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा था. 1965 के युद्ध को भी उस दौरान एक निर्णायक विजय नहीं मानी जाती थी.

ऐसे में जब एक बार फिर भारत युद्ध के मुहाने पर खड़ा था तो बेहद ही सधे हुए कदमों और चट्टान की तरह फौलाद इरादों के साथ एक शख्स प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने आता है. उन दिनों पाकिस्तान से चल रही तनातनी के बीच इंदिरा गांधी अपने फौज का मनोबल बढ़ा रही थीं.  उस शख्स ने बेहद ही धीर और गंभीर अंदाज में पीएम से सवाल किया, अगर भारतीय नौसेना कराची पर हमला करे तो क्या इससे सरकार को राजनीतिक रूप से कोई आपत्ति हो सकती है ?

इंदिरा गांधी ने कुछ देर सोचा और कहा, “वेल एडमिरल, इफ देयर इज ए वॉर, देयर इज ए वॉर.”

इंदिरा गांधी से मिली इजाजत के बाद इंडियन नेवी ने वो कर दिखाया जो किसी भी देश की सोच से परे था. भारत का परम-मित्र यूएसएसआर यानी आज का रुस भी हैरान था कि भारतीय नौसेना ने ऐसा कारनामा आखिर कैसे कर दिखाया. कराची में जाकर नेवी ने विजय पताका फहराई और 10 दिनों तक एशिया का सबसे बड़ा बॉनफायर पाकिस्तान के सीने पर जलता रहा. ये बोन-फायर भारतीय नौसेना ने ही जलाया था जिसकी तपिश आज तक पाकिस्तान को जलाती रहती है. 

द मैन हू बॉम्ड कराची

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास जो बेहद मजबूत इरादों वाले शख्स पहुंचे थे, वे थे एडमिरल एस. एम. नंदा. 1971 में एडमिरल एसएम नंदा नौसेना प्रमुख थे. पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने एडमिरल नंदा की अगुवाई में ऑपरेशन ट्राइडेंट लॉन्च किया था. भारतीय नौसेना की वीरता और पराक्रम की कहानी ऑपरेशन ट्राइडेंट. 4 दिसंबर को एडमिरल एसएम नंदा की अगुवाई में भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर जबरदस्त हमला किया. भारतीय नौसेना ने अपने हमले से कराची पोर्ट को पूरी तरह तबाह कर दिया. पाकिस्तान पर भारतीय नौसेना की ऐसी चोट पड़ी कि 10 दिनों तक पाकिस्तान उठ नहीं सका. लेकिन क्या ये वाकई इतना आसान था…बिल्कुल नहीं. 

श्री कृष्ण की नगरी पर हमले का लिया बदला

1971 के युद्ध से पहले तक दुनिया तो क्या भारत में ही कोई नौसेना को सीरियस नहीं लेता था. 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी नौसेना हमारे सबसे पवित्र स्थलों में से एक द्वारका पर हमला कर चली गई थी. गुजरात में भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पर पाकिस्तान जहाज बमबारी कर चले गए और भारत ने कोई जवाब नहीं दिया था. भारत ने ये कहकर हमले को टाल दिया कि बमबारी में नौसेना को कोई खास नुकसान नहीं हुआ है. जबकि हकीकत ये थी कि पाकिस्तान ने इस हमले को अपने देश में जाकर जीत के तौर पर लिया और भारत की जबरदस्त बेइज्जती की थी. इसका कारण ये था कि भारत जंग को बढ़ाना नहीं चाहता था. यानि थलसेना और वायुसेना तो पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहे थे लेकिन भारत की सरकार इस युद्ध को समंदर में नहीं लड़ना चाहती थी. ऐसे में इस निर्णय को लेकर नौसेना के कुछ ऑफिसर्स ने अपना विरोध जताया था. 

1971 युद्ध की प्लानिंग के दौरान भी इंडियन नेवी को बाहर रखने की कोशिश की गई थी. इसका कारण ये था कि उन दिनों पाकिस्तानी नेवी, भारतीय नौसेना से युद्धपोत और तकनीक के मामले में बीस (20) थी. ऐसे में नेवी के ही कुछ सीनियर कमांडर पाकिस्तानी नौसेना से लोहा लेने में हिचकिचा रहे थे. वॉर-रूम तक में चर्चा के दौरान ये मुद्दा उठ चुका था. लेकिन एडमिरल नंदा ठान चुके थे कि इस बार युद्ध में इंडियन नेवी को अपना खोया हुआ गौरव दिलाना है. 1965 के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने का वक्त आ गया है. यही वजह है कि उन्होंने वॉर-प्लान तैयार होने के बाद अपनी योजना सीधे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताई थी यानि इस बार नेवी भी आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है. इस बार नेवी सिर्फ थल-सेना और वायुसेना को युद्ध में मदद ही नहीं करेगी बल्कि समंदर के रास्ते आक्रमण भी करेगी. यानि पाकिस्तान पर जल, थल और आकाश तीनों से प्रहार करने का वक्त था. ऐसा प्रहार की पाकिस्तान की सात पुश्तें तक याद रखेंगी. 

आसान नहीं था कराची पर हमला

कराची पर हमला करना इतना आसान भी नहीं था. 71 के युद्ध से ठीक पहले पाकिस्तान ने फ्रांस से तीन सबमरीन खरीदी थी. पाकिस्तान के पास उस वक्त कुल 12 पनडुब्बियां थी. इतनी बड़ी पनडुब्बी की फ्लीट चुपचाप हमला करने के लिए ही इस्तेमाल की जाती हैं. इसके अलावा पाकिस्तानी नौसेना के बेड़े में डेस्ट्रोयर, फ्रीगेट, माइनस्वीपर और टारपीडो-बोट्स भी शामिल थी.  

भारतीय नौसेना को जहां एक साथ दो तरफा एक लंबी कोस्टलाइन और मुंबई, गोवा, कोच्ची और विशाखापट्टनम जैसे बड़े बंदरगाहों की सुरक्षा करनी थी, पाकिस्तान की समुद्री सीमा थोड़ी छोटी थी. उसे एक ही बड़े बंदरगाह की सुरक्षा करनी थी. वो था कराची पोर्ट. ईस्ट बांग्लादेश के बंदरगाह चटगांव, खुलना और कॉक्स बाजार इतने बड़े नहीं थे. ऐसे में एडमिरल नंदा ने ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस की रणनीति पर काम किया. भारतीय नौसेना ठान चुकी थी अब वक्त आ गया है कि ईस्ट पाकिस्तान को कंधे से पकड़कर पाकिस्तान से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा कर देना है. 

इसके लिए नेवी के ऑपरेशन्ल हेडक्वार्टर को एक प्लान तैयार करने का निर्देश दिया गया. ये प्लान बेहद आक्रामक था.

ओफेंस इज द बेस्ट डिफेंस

ये वॉर-प्लान बेहद आक्रामक था. इस योजना के मुताबिक,

  1. वेस्टर्न थिएटर यानी अरब सागर और मैनलैंड पाकिस्तान से सटे इलाकों में बेहद तेजी से ऐसे प्रहार करने है कि पाकिस्तान टूट जाए. जब तक पाकिस्तान पर पूरी तरह बादशाहत कायम न हो जाए, प्रहार जारी रहें. 
  1. पाकिस्तान के मुख्य गढ़ कराची पर जोरदार हमला करना है ताकि वहां तैनात पाकिस्तान फौज का दम टूट जाए.
  1. भारत की पनडुब्बियों को कराची बंदरगाह के आसपास तैनात किया जाए ताकि पाकिस्तान के जंगी जहाजों को निशाना बनाया जा सके.
  1. कराची के करीब पाकिस्तान के ऑयल टैंक फार्म पर बमबारी की जाए.
  1. मकरान कोस्ट पर गोलाबारी
  1. पाकिस्तान के कार्गो जहाज के खिलाफ अरब सागर में विगरस वॉरफेयर छेड़ा जाए.
  1. ईस्ट पाकिस्तान को पश्चिमी यानी मैनलैंड पाकिस्तान से पूरी तरह काट दिया जाए. 
  1. ईस्ट और वेस्ट पाकिस्तान के बीच लाइन्स ऑफ सी कम्युनिकेशन को बाधित किया जाए ताकि ईस्ट पाकिस्तान में तैनात सेना को एक्स्ट्रा रि-इन्फोर्समेंट, हथियार और रसद किसी कीमत पर न पहुंच पाए. 

वॉर-प्लान के मुताबिक, भारतीय वायुसेना को कराची के करीब पाकिस्तानी एयरबेस पर इंडियन नेवी के कराची बंदरगाह पर आक्रमण के दौरान ही एयर-अटैक करना था. इसके अलावा नौसेना को भी थलसेना और वायुसेना के ऑपरेशन्स में मदद करनी थी. 

विक्रांत की सुरक्षा बेहद जरूरी थी

पाकिस्तान पर आक्रमण से पहले भारतीय नौसेना को दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान रखना था. पहला ये कि कहीं पाकिस्तान पहले भारत के जंगी जहाज और बंदरगाहों पर हमला न कर दे. भारत के पास उस वक्त एक एयरक्राफ्ट कैरियर था आईएनएस विक्रांत. भारतीय नौसेना को हर हालत में उसकी सुरक्षा करनी थी. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना था कि उसे जंग में दुश्मन के खिलाफ ऑपरेशन्स में शामिल भी किया जाए. इसके लिए एडमिरल नंदा ने बड़ा दाव चलते हुए विक्रांत को वेस्टर्न नेवल कमान से विशाखापट्टनम स्थित ईस्टर्न नेवल कमान के ऑपरेशन्ल कंट्रोल में भेज दिया. इस कदम से एडमिरल नंदा को अपने ही मातहत कमांडर्स की खीझ का सामना करना पड़ा. 

दूसरा ये कि कराची बंदरगाह पर हमला करने के वक्त किसी दूसरे देश के मालवाहक जहाज को नुकसान न हो. अगर ऐसा हुआ तो दूसरे देश भी युद्ध में कूद सकते थे. ऐसे में भारत कोई दूसरा रिस्क नहीं ले सकता था. 

कराची पर हमले करने के लिए भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े में रणजीत, गोदावरी और गंगा डेस्ट्रोयर थे तो नौ फ्रीगेट और एक गन-क्रूजर था, दो हेलीकॉप्टर टैंकर और सबमरीन-टेंडर. लेकिन एडमिरल नंदा ने दांव लगाया हाल ही में सोवियत संघ से लिए गई 08 मिसाइल बोट्स पर. ये ओसा-क्लास बोट्स इसलिए सोवियत संघ से ली गई थी क्योंकि 1965 के युद्ध के चलते ब्रिटेन ने भारत को मिलिट्री सप्लाई पर रोक लगा दी थी. रूसी भाषा में ओसा का अर्थ होता है ततैया. यानि जो दुश्मन पर ऐसा हमला करे कि ततैया के डंक की तरह लगे. 

वीर, विजेता और विनाश

भारतीय नौसेना इन मिसाइल बोट्स को विद्युत-क्लास के नाम से जानती थी. क्योंकि सोवितय संघ से ली गई पहली मिसाइल बोट को आईएनएस विद्युत नाम दिया गया था. इसके अलावा बाकी के नाम थे वीर, विजेता और विनाश. ये सभी मिसाइल बोट्स भारतीय नौसेना की 25 स्क्वाड्रन का हिस्सा थी जिसे किलर-स्क्वाड्रन के नाम से भी जाना जाता था. 

मिसाइल बोट्स का इस्तेमाल मुख्यत कोस्टलाइन की डिफेंस के लिए किया जाता है. लेकिन 1968 के सिक्स डे वॉर में इज्पिट की ओसा क्लास मिसाइल ने इजरायल के एक फ्रीगेट को मार गिराया था. मिसाइल बोट्स से कराची पर हमला करने के लिए इसलिए भी चुना गया था क्योंकि इन्हें बिना दुश्मन की निगाहों में आए बिना कराची तक पहुंचाया जा सकता था. भारतीय नौसेना ने कराची पर हमला करने के लिए अपने ऑपरेशन को नाम दिया ट्राइडेंट. 

ऑपरेशन ट्राइडेंट

कराची पर पहला हमला 4 दिसम्बर की रात को किया जाना था. इसके बाद 6-7 दिसम्बर की रात को ऑपरेशन पायथन और फिर 10-11 दिसम्बर को ऑपरेशन ट्रायफ्म. हालांकि, युद्ध के दौरान तीसरे ऑपरेशन की भारत को कभी जरूरत नहीं पड़ी और दो हमलों में ही कराची ही नहीं पूरे पाकिस्तान ने दम तोड़ दिया. 

2-3 दिसम्बर की रात को मुंबई से सभी जहाज अरब सागर के लिए आक्रमण करने के लिए कूच कर गए. हैरानी की बात ये थी कि ये सभी जंगी जहाज पाकिस्तान की हैंगोर पनडुब्बी के सर से ऊपर निकलकर अरब सागर में घेराबंदी करने के लिए जा रहे थे. पाकिस्तान की ये पनडुब्बी मुंबई पर हमला करने के इरादे से पहुंची थी लेकिन इससे पहले की पाकिस्तान आक्रमण करता, भारतीय नौसेना ने बाजी पलट दी. हालांकि, 3 दिसम्बर को पाकिस्तानी वायुसेना ने उत्तरी भारत के कई एयर बेस पर हमले कर दिए थे. लेकिन समंदर के रास्ते भारत इसका करारा जवाब देगा पाकिस्तान ने सपने में भी नहीं सोचा था. 

3 दिसम्बर को नौसेना के युद्धपोत कराची से 250 किलोमीटर दूर डेरा डाल कर बैठ गए. ये इसलिए किया गया क्योंकि उस वक्त पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों की रेंज 150-200 किलोमीटर थी. कराची पर हमले के लिए तीन (03) मिसाइल बोट्स की योजना बनाई गई. भारत की दो मिसाइल बोट, विद्युत और निर्घट को पहले से ही गुजरात के ओखा बंदरगाह पर पाकिस्तान के अटैक से निपटने के लिए तैनात थी. एक पेटया क्लास फ्रीगेट कछहल भी वहां तैनात था. ऐसे में दो मिसाइल बोट्स वीर और निपट के साथ साथ किलटन फ्रीगेट को भी सौराष्ट्र के तट के करीब तैनात कर दिया गया. 

रूसी भाषा ने दी हमले में मदद

खास बात ये है कि पाकिस्तानी नौसेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई को चकमा देने के लिए भारतीय नौसेना की मिसाइल बोट्स में तैनात कैप्टन और बाकी क्रू रूसी भाषा में कम्युनिकेशन कर रहा था. ये इसलिए ताकी पाकिस्तान को जरा भी भनक न लगे कि ये भारत की बोट्स हैं. भारतीय नौसेना का नेवल क्रू इसलिए रूसी भाषा में बातचीत कर पा रहा था क्योंकि वे सभी हाल ही में रूस में ट्रेनिंग लेकर आए थे. मिसाइल बोट्स को सोवियत संघ से लेने के दौरान उन पर तैनात होने वाले क्रू को रूस में ट्रेनिंग दी गई थी. 

मिसाइल बोट्स को टग कर ले जाया गया कराची

4-5 दिसम्बर की दरमियानी रात मिसाइल बोट निपट, निर्घट और वीर ने कराची पर जोरदार हमला किया. क्योंकि इन मिसाइल बोट्स की एंड्यूरेंस थोड़ी कम थी और ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती थी, ऐसे में रात के अंधेरे में मिसाइल बोट्स को टग कर (खींच कर) कराची पहुंचाया गया. इसका फायदा ये भी था कि समंदर में इन बोट्स की आवाज को पाकिस्तानी पनडुब्बियां नहीं कैच कर पाई. इस दौरान हालांकि किलटन और कछहल इन बोट्स को एस्कॉर्ट कर रही थी. साथ ही पाकिस्तानी फाइटर जेट्स नाइट ऑपरेशन्स करने में सक्षम नहीं थे. 

मुहाफिज को डुबोया

रात के अंधेरे में भारत के मिसाइल बोट्स ने पाकिस्तानी नौसेना के डेस्ट्रोयर खैबर और माइनस्वीपर मुहाफिज को मिसाइल दागकर समंदर में डुबो दिया. कराची बंदरगाह पर खड़े पाकिस्तान के ऑयल टैंकर को भी आग के हवाले कर दिया गया. इस दौरान लाईबेरिया का एक जहाज एमवी वीनस चैलेंजर भी हमले का शिकार हो गया. माना जाता है कि इस जहाज में अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए गोला-बारूद भेजा था. 

गाज़ी हुआ हिटविकेट

पश्चिमी मोर्चा पर भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान पर शुरुआती बढ़त बना ली थी तो बंगाल की खाड़ी में पाकिस्तानी नौसेना ने खुद हिट-विकेट कर लिया था. पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाज़ी भारत के एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत की तलाश में दर-दर भटक रही थी. इस दौरान भारत की इंटेलिजेंस ने कुछ ऐसे मिस-इंफोर्मेशन फ्लोट कर दी जिससे पाकिस्तान को लगने लगा कि विक्रांत पूर्वी कमान के मुख्यालय विशाखापट्टनम में मौजूद है. जबकि विक्रांत सहित पूर्वी कमान का पूरा जंगी बेड़ा युद्ध शुरू होने से पहले अंडमान निकोबार पहुंचा दिया गया था. 

विशाखापट्टनम पहुंचने के बाद गाज़ी को मासूयी हाथ लगी. ऐसे में गाज़ी ने विशाखापट्टनम बंदरगाह के आसपास समंदर में माइन्स यानी बारूदी सुरंग बिछाना शुरु कर दिया ताकि भारत के युद्धपोतों को निशाना बनाया जा सके. भारतीय नौसेना ने गाज़ी को काउंटर करने के लिए आईएनएस राजपूत युद्धपोत को समंदर में भेजा. राजपूत ने सोनार-डिस्टर्बेंस के आधार पर दो डेप्थ-चार्ज यानि एंटी-सबमरीन डेटोनेटर को लॉन्च किया. इसी दौरान गाज़ी में एक रहस्यमय विस्फोट हुआ और गाज़ी की कब्र हमेशा-हमेशा के लिए बंगाल की खाड़ी में बन गई. गाज़ी में सवार कमांडिंग ऑफिसर समेत सभी 92 पाकिस्तानी नौसैनिकों की मौत हो गई. लेकिन भारत ने गाज़ी की कब्र की जानकारी युद्ध खत्म होने तक छिपाए रखी. 

पूर्वी पाकिस्तान में नेवल ऑपेरशन

पीएनएस गाज़ी के खात्मे के साथ ही पाकिस्तान की बंगाल की खाड़ी में आक्रमण करने की योजना धरी की धरी रह गई. क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश में पाकिस्तानी नौसेना के पास युद्धपोत की कोई बड़ी फ्लीट नहीं थे. पाकिस्तानी नौसेना के पास यहां मात्र कुछ गन-बोट्स थी. जबकि भारतीय नौसेना का एक जंगी बेड़ा था जिसमें आईएनएस विक्रांत एयरक्राफ्ट कैरियर के अलावा गुलदार, घड़ियाल और मगर जैसे बड़े युद्धपोत थे. इसके साथ-साथ एक पनडुब्बी आईएनएस खंडेरी भी थी. 

गाज़ी के डूबने के बाद 5 और 6 दिसम्बर को भारतीय नौसेना ने बांग्लादेश के चटगांव, खुलना और मंगला बंदरगाहों पर जमकर गोलाबारी की. वहां 

तैनात सभी पाकिस्तानी बोट्स और मर्चेंट शिप को डूबो दिया गया. चटगांव में पाकिस्तान के सभी ऑयल-ठिकानों को आग के हवाले कर दिया गया. विक्रांत पर तैनात फाइटर जेट ने कॉक्स-बाजार बंदरगाह पर जमकर बमबारी की. विक्रांत ने चटगांव में पाकिस्तानी एयरफील्ड का तबाह कर दिया. इस दौरान भारतीय वायुसेना पूर्वी पाकिस्तान के भीतर पाकिस्तानी एयर बेस पर अटैक कर रही थी. वायुसेना ने पाकिस्तान के डेस्ट्रोयर सिलहट को तबाह कर दिया. 

पाकिस्तान का राजशाही भाग खड़ा हुआ मलेशिया

हमले में पाकिस्तानी युद्धपोत पीएनएस राजशाही को भी नुकसान पहुंचा लेकिन वो किसी तरह भागकर मलेशिया भाग गया. युद्ध खत्म होेने पर पाकिस्तान की पूर्वी कमान का ये एकमात्र वॉरशिप था जो साबूत बचा था.  

पाकिस्तान नौसेना की पूर्वी कमान को एक बड़ा झटका युद्ध से पहले भी लग चुका था. वहां तैनात सभी बांग्लादेशी नेवल ऑफिसर और नौसैनिकों ने हमेशा-हमेशा के लिए पाकिस्तानी नौसेना को तिलांजलि देकर अपनी सेवाएं समाप्त कर दी थी. 

भारतीय नौसेना ने पूर्वी पाकिस्तान से सटे समंदर और नदियों तक में अपना कब्जा कर लिया था. पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों और सैनिकों को समंदर या फिर नदी के रास्ते भाग निकलने के सभी मार्ग बंद कर दिए गए थे. ऐसे में उनके सामने सरेंडर के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था. 

कैप्टन मूला ने वीरगति के साथ पेश की सैन्य मिसाल

बंगाल की खाड़ी मेें जब भारतीय नौसेना पाकिस्तान को मूली की तरह काट रही थी तब अरब सागर में पाकिस्तानी नौसेना ने एक बड़ा उलटफेर किया. 9 दिसंबर को पाकिस्तानी पनडुब्बी हंगोर ने सौराष्ट्र तट के द्वीव में तैनात आईएनएस खुखरी युद्धपोत पर हमला कर डुबो दिया. खुखरी पर तैनात सभी 18 नेवल ऑफिसर और 176 नौसैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. खुखरी के कैप्टन एम एन मूला ने हमले के बावजूद अपने जहाज को नहीं छोड़ा और शिप के ब्रिज पर कैप्टन की चेयर पर आखिरी तक जमे रहे. हंगोर ने द्वीव में तैनात भारत के एक दूसरे युद्धपोत आईएनएस कृपाण पर भी दो बार हमला करने की कोशिश की लेकिन कृपाण चकमा देने में कामयाब रहा. खुखरी के खोने के अलावा पाकिस्तानी वायुसेना ओखा पोर्ट पर एरियल अटैक कर रही थी. ऐसे में भारतीय नौसेना ने कराची पर दूसरे हमले की योजना बनाई ताकि पाकिस्तान को अपनी जकड़ में लेकर हड्डियों को तोड़ दिया जाए. 

एशिया का सबसे बड़ा खूनी बॉनफायर

8 और 9 दिसम्बर की रात को भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन पायथन लॉन्च कर एक बार फिर कराची पर अंतिम प्रहार किया. इस बार हमला मिसाइल बोट आईएनएस विनाश के जरिए किया गया जिसे फ्रीगेट त्रिशूल एस्कॉर्ट कर रहा था. भारत के इस हमले में पनामा का एक जहाज गल्फ-स्टार, पाकिस्तान का ऑयल टैंकर ढाका और ब्रिटिश शिप एसएस हर्मेटन को तबाह कर दिया गया. कीमारी ऑयल डिपो को आग के हवाले कर दिया गया. 

अगले दिन यानी 10 दिसम्बर को भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट कराची के एयर बेस पर हमला करने पहुंचे तो देखा कि पूरा बंदरगाह धूं-धूं कर जल रहा था. आग की लपटें 60 मील दूर से दिखाई पड़ रही थी. इसी दौरान वायुसेना के एक पायलट ने कहा कि ये एशिया की सबसे बड़ी खूनी बॉनफायर है. कराची की ये आग सात दिन सात रातों तक जलती रही. पूरा कराची शहर धुएं के गुबार से भर गया और तीन दिनों तक शहर के लोगों को सूरज की किरण के दर्शन नहीं हुए. 

कराची पर हुए दूसरे हमले से पाकिस्तानी नौैसेना पूरी तरह घबरा गई और अपने सभी युद्धपोतों को कराची की सुरक्षा के लिए वापस बुला लिया. इससे पाकिस्तानी नौसेैनिकों के मोराल पर जबरदस्त असर पड़ा. इसका नतीजा ये हुआ कि पूरा अरब सागर भारतीय नौसेना की वेस्टर्न-फ्लीट के अधिकार-क्षेत्र में आ गया. पाकिस्तानी कार्गो शिप को बंधक बना लिया गया. विदेशी मर्चेंट शिप फारस की खाड़ी से अरब सागर आने के लिए अब भारतीय नौसेना से इजाजत लेने लगे. 

पाकिस्तानी नेवल कमांडर ने किया सरेंडर

भारतीय नौसेना को कराची पर तीसरे हमले की जरूरत नहीं पड़ी. क्योंकि पाकिस्तान की एक-तिहाई नौसेना बर्बाद हो चुकी थी. पाकिस्तान की पूर्वी कमान के कमांडिंग इन चीफ रियर एडमिरल मोहम्मद शरीफ ने भारतीय नौसेना के कमांडिंग इन चीफ वाइस एडमिरल नीलकांता कृष्णन के सामने सरेंडर कर दिया. पाकिस्तान के जनरल नियाजी और 93 हजार पाकिस्तानी नौसेना की तरह ही मोहम्मद शरीफ ने भी अपनी पिस्टल एडमिरल कृष्णन के सामने सरेंडर कर दी जो आज भी भारत के आईएमए म्यूजियम में रखी है.

16 दिसंबर यानी जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हुआ तब तक पाकिस्तानी नौसेना अपने 2 डेस्ट्रोयर, 1 पनडुब्बी, 1 माइनस्वीपर, 07 गन बोट्स और 03 पैट्रोल-क्राफ्ट और 18 कार्गो जहाज गंवा चुकी थी. पाकिस्तान के 13 कमर्शियल जहाज को भारतीय नौसेना ने बंधक बना लिया था. पाकिस्तान के 1900 नौसैनिक जान गंवा चुके थे और 1400 से ज्यादा को भारतीय नौसेना ने युद्धबंदी बना लिया था. 

भारतीय सेना यानी थलसेना और वायुसेना ने जहां पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटने में अहम भूमिका निभाई तो भारतीय नौसेना ने अपने जौहर से इस युद्ध में निर्णायक विजय हासिल करने में मदद की. भारतीय नौसेना के अदम्य साहस और असाधारण वीरता और अप्रतिम शौर्य के लिए 08 महावीर चक्र, 46 वीर चक्र और 05 शौर्य चक्र से नवाजा गया. तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल नंदा को सरकार ने पद्म-विभूषण से नवाजा.

अमेरिका के सेवंथ फ्लीट का दवाब

1971 युद्ध के दौरान एक घटना का विवरण देना बेहद जरूरी है. और वो है अमेरिका की सेवंथ (07) फ्लीट जब पाकिस्तान की मदद के लिए बंगाल की खाड़ी पहुंच गई थी. क्योंकि 1971 में भारत और अमेरिका के संबंध आज की तरह नहीं थे. अमेरिका हर मोर्चे पर पाकिस्तान का साथ देता था. ब्रिटेन के दो एयरक्राफ्ट कैरियर भी उस दौरान हिन्द महासागर में पहुंच गए थे. लेकिन उस वक्त मिलिट्री-डिप्लोमसी ने बेहद अहम भूमिका निभाई. अमेरिका के सेवंथ फ्लीट को काउंटर करने के लिए रूस का एक मिसाइल डेस्ट्रोयर, एक माइनस्वीपर सहित सोवियत पैसिफिक फ्लीट के अन्य जहाज मलक्का-स्ट्रेट पहुंच गए. रूस के इस कदम के बाद ही अमेरिकी नौसेना ने अपने पांव बंगाल की खाड़ी से पीछे खींच लिए थे. 

एडमिरल नंदा ने अपनी आत्मकथा, द मैन हू बॉम्ड कराची में लिखा है कि जब सेवंथ फ्लीट बंगाल की खाड़ी में पहुंची तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि वे अमेरिका के खतरे को कैसे देखते हैं. एडमिरल नंदा ने साफ कहा कि मैडम, क्या आपको लगता है कि अमेरिका वाकई भारत से युद्ध चाहता है. एडमिरल नंदा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि उन्होंने मिसेज गांधी से साफ कहा कि अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के इरादे से अपने एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी भेजा है. लेकिन हम मजबूती से खड़े रहेंगे. एडमिरल नंदा ने अपने युद्धपोतों को आदेश दिया कि अगर समंदर में अमेरिका के किसी जहाज से सामना हो जाए तो उनसे जान-पहचान करना और अमेरिकी कैप्टन को ड्रिंक के लिए अपने शिप पर आमंत्रित करना. 

सोवियत एडमिरल ऑफ द फ्लीट ने की थी प्रशंसा

एडमिरल नंदा ने अपनी आत्मकथा में ये भी लिखा है कि युद्ध खत्म होने के बाद एक बार उनकी मुलाकात सोवियत संघ के नौसेना प्रमुख एडमिरल गोर्शकोव से हुई. इस दौरान एडमिरल गोर्शकोव ने कराची पर हमले के लिए मिसाइल बोट्स के इस्तेमाल पर हैरानी जताई. क्योंकि सोवियत संघ ने इन बोट्स को हमले के इरादे से नहीं बल्कि बंदरगाह और कोस्टल-डिफेंस के लिए निर्माण किया था. एडमिरल गोर्शकोव ये सुनकर भौचक्के रह गए कि कराची तक इन मिसाइल बोट्स को टग-बोट्स के जरिए खींच कर ले जाया गया था. एडमिरल गोर्शकोव ने 71 के युद्ध में निर्णायक जीत के लिए भारतीय नौसेना को ढेरों शुभकामनाएं दी. 

Exit mobile version