बगराम एयरबेस को लेकर अमेरिका-तालिबान में हुई तनातनी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के काबुल दौरे के बाद भारत की यात्रा पर आएंगे अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी. मुत्ताकी का ये दौरा अगले सप्ताह होने जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की तालिबान प्रतिबंध समिति ने मुत्ताकी की यात्रा प्रतिबंध में छूट मंजूर कर दी है.
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद ये काबुल से भारत की पहली मंत्रिस्तरीय यात्रा होगी. मुत्ताकी की इस यात्रा को एक बड़ी कूटनीति कदम के तौर पर देखा जा रहा है.
दिल्ली-काबुल में बढ़ रहा संपर्क, ऑपरेशन सिंदूर के बाद जयशंकर-मुत्ताकी में हुई थी पहली बार बात
दुनियाभर में मची उथल पुथल के बीच अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री के नई दिल्ली दौरे पर पूरी दुनिया की नजर है, खासतौर पर पाकिस्तान और अमेरिका की. क्योंकि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच अफगानिस्तान को लेकर कुछ खिचड़ी पक रही है.
बताया जा रहा है कि यूएनएससी की मंजूरी के बाद आमिर खान मुत्ताकी तालिबान से भारत आ रहे हैं. साल 2021 में जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आई थी, तो भारत ने अपने राजनयिक को काबुल से वापस बुला लिया था. लेकिन पिछले तकरीबन 2 वर्षों से भारत-अफगानिस्तान के बीच फिर से संपर्क शुरु हुआ है. और लगातार भारत राहत सामग्री के साथ साथ काबुल में तैयार किए जाने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर में भी मदद कर रहा है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 मई (ऑपरेशन सिंदूर के बाद) को मुत्ताकी से फोन पर बात की थी. तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार भारतीय विदेश मंत्री ने तालिबान के विदेश मंत्री से बात की थी. हालांकि इससे पहले जनवरी में मुत्ताकी और विदेश सचिव विक्रम मिसरी की दुबई में मुलाकात हुई थी. वहीं ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने काबुल का दौरा किया था.
पहलगाम नरसंहार की तालिबान ने की थी निंदा, पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा का किया था राजफाश
भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. लेकिन भारत, दुनिया में मची उथल पुथल के बीच लगातार तालिबान से संपर्क बनाए हुए है. भारत हमेशा ये कहता रहा है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
22 अप्रैल को जब पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों की हत्या की थी, तो तालिबान सरकार ने इस हमले की निंदा की थी.
जब भारत ने आतंकी हमले का बदला लिया, और 06-10 मई तक ऑपरेशन सिंदूर के जरिए जैश-लश्कर के 09 ठिकानों को तबाह किया तो पाकिस्तान ने ये प्रोपेगेंडा फैलाना शुरु किया था, कि भारत की एयरस्ट्राइक से अफगानिस्तान के नागरिकों को नुकसान पहुंचा है. उस वक्त अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने बयान जारी करके पाकिस्तान का मुंह बंद करा दिया था. तालिबान ने कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर से अफगानिस्तान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. दरअसल पाकिस्तान, तालिबान को जम्मू और कश्मीर की घटनाओं से जोड़ने की कोशिश कर रहा है.
जयशंकर- मुत्ताकी के बीच पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा पर हुई थी बात
तालिबान ने पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादियों द्वारा किए गए पहलगाम हमले की निंदा की थी, जिसके बाद एस जयशंकर और तालिबानी मंत्री ने एक दूसरे से संपर्क किया. बातचीत के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा था, “अफगान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी के साथ अच्छी बातचीत हुई. पहलगाम आतंकवादी हमले की उनकी निंदा की मैं बहुत सराहना करता हूं. अफगान जनता के साथ हमारी पारंपरिक मित्रता और विकास की हमारी प्रतिबद्धता को दोहराया. आगे सहयोग बढ़ाने के उपायों पर चर्चा की.”
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान को लेकर फैलाए जा रहे दुष्प्रचार पर भी चर्चा की थी. जयशंकर ने बताया कि “मुत्ताकी के ‘पाकिस्तान मीडिया में झूठी और निराधार रिपोर्टों के माध्यम से भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने के हालिया प्रयासों को दृढ़ता से खारिज करने’ का स्वागत किया.”
अफगान अपने असली दोस्तों और दुश्मनों को जानता है: भारत
पाकिस्तान ने प्रोपेगेंडा फैलाते हुए दावा किया था कि ऑपरेशन सिंदूर में की गई एयरस्ट्राइक में अफगानिस्तान के क्षेत्र को नुकसान पहुंचा. लेकिन तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान के दावों को खारिज कर दिया था. अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इनायत खोवाराजम ने साफ किया था कि भारत की एयरस्ट्राइक में अफगानिस्तान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी पाकिस्तान के दावों को बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि “अफगान अपने असली दोस्तों और दुश्मनों के बारे में जानते हैं. अफगान जनता को ये बताने की जरूरत नहीं कि किस देश ने पिछले डेढ़ साल में कई अफगान नागरिकों को अफगानिस्तान में आधारभूत ढांचे को टारगेट किया है.”
भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता भले ही न दी हो लेकिन, पड़ोसी देश अफगानिस्तान को भारत हमेशा से मदद करता रहा है. चाहे वो अनाज हो या फिर दवाइयां. भारत ने अफगानिस्तान में कई परियोजनाओं पर 3 अरब डॉलर से अधिक निवेश किया हुआ है, जिसमें सड़कें, बिजली, बांध और हॉस्पिटल शामिल है. भारत ने अफगान सैन्य अधिकारियों को ट्रेनिंग दी है, छात्रों को स्कॉलरशिप देता है. साथ ही अफगानिस्तान की संसद भवन का निर्माण भी भारत की मदद से हुआ है. हाल ही में जब भूकंप से अफगानिस्तान में तबाही मची थी, उस वक्त भी भारत ने राहत-बचाव सामग्री पहुंचाई थी. इस दौरान 1 सितंबर को विदेश मंत्री जयशंकर ने मुत्ताकी से फोन पर दोबारा बात की थी.
तालिबान-भारत में प्रगाढ़ हो रहे रिश्ते, पाकिस्तान-तालिबान के खराब हो रहे रिश्तों को सुधारने के लिए चौधरी बन रहा चीन
भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों को मजबूत करने के पीछे एनएसए अजीत डोवल का भी बहुत हाथ है. पिछले साल से अलग-अलग स्तर पर तालिबान प्रशासन के साथ विदेश मंत्रालय के अधिकारी मुलाकात कर चुके हैं. पिछले साल एस जयशंकर के करीबी राजनयिक जे पी सिंह ने तालिबान के मंत्रियों से मुलाकात की थी तो इस साल जनवरी में दुबई में तालिबान के साथ भारत की एक उच्च-स्तरीय बैठक हुई थी. बैठक विदेश सचिव विक्रम मिस्री की अध्यक्षता में हुई थी. तालिबान के साथ बैठक में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और एक अफगान प्रतिनिधिमंडल शामिल हुआ था. दोनों नेताओं ने चाबहार बंदरगाह सहित कई मुद्दों पर बातचीत की गई थी.
वहीं पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में भारी तनाव है. भारत और तालिबान के बीच जनवरी 2025 में मुलाकात के कुछ दिनों पहले पाकिस्तान ने पूर्वी अफगानिस्तान में हवाई हमले किए थे. पाकिस्तानी अटैक को लेकर तालिबान सरकार ने बताया था कि पाकिस्तान की एयरस्ट्राइक में बेगुनाह शरणार्थी मारे गए थे. दोनों देशों में तनाव इतना बढ़ गया था कि पाकिस्तान की कुछ चौकियों पर तालिबान का कब्जा कर लिया वहीं पाकिस्तान ने हजारों अफगानी शरणार्थियों को बाहर निकाल दिया है, जिसका अफगानिस्तान विरोध करता है. दोनों देशों में सीमा विवाद इस कदर बिगड़ चुका है कि सीमा पर बनीं चौकियों में कई बार गोलीबारी की जा चुकी है.
लेकिन हाल ही में भारत के दौरे पर जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी आए थे, तो उन्होंने काबुल का दौरा किया था. काबुल में वांग यी ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री को भी बुलाया था. काबुल में हुए त्रिपक्षीय सम्मेलन में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के काबुल तक विस्तार और आर्थिक सहयोग को लेकर चर्चा की गई थी.
दरअसल चीन अफगानिस्तान में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. तो भारत भी क्षेत्रीय हितों की रक्षा के लिए तालिबान सरकार के संपर्क में है.
बेल्ट एंड रोड (सीपैक) का विरोध करता है भारत, काबुल की बैठक पर पैनी नजर
भारत लगातार सीपैक का कड़ा विरोध करता रहा है. यह कॉरिडोर पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) से होकर गुजरता है और यह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है. चूंकि पाकिस्तान की इस प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी है, जिसके कारण आतंकवाद को भी बढ़ावा मिलेगा, जो भारत के नजरिए से क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा है. वहीं भारत के भी अफगानिस्तान में कई तरह के प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी है, ऐसे में चीन के अफगानिस्तान में दखल के बाद भारत के प्रोजेक्ट को भी नुकसान पहुंच सकता है.
माना जा रहा है कि मुत्ताकी की नई दिल्ली की यात्रा से भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों को एक नई और प्रगाढ़ दिशा मिलेगी, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए अहम होगी.