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तिब्बती विद्रोह की वर्षगांठ पर चीन का विरोध

Tibet Uprising anniversary poster

तिब्बती विद्रोह की 65वीं वर्षगांठ पर भारत सहित दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में चीन की साम्राज्यवादी और दमनकारी नीतियों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन होने जा रहा है. तिब्बती मूल के नागरिक अमेरिका में चीन के दूतावास इत्यादि के बाहर अपना विरोध जताएंगे. तिब्बत विद्रोह की वर्षगांठ ऐसे समय में आई है जब चीन के भीतर खुद तिब्बती नागरिक शी जिनपिंग सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं.

हर साल 10 मार्च को तिब्बत विद्रोह की वर्षगांठ मनाई जाती है. 1959 में इसी दिन तिब्बत की राजधानी ल्हासा में तिब्बती मूल के लोगों ने चीन की सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था. चीनी सेना द्वारा बर्बरता-पूर्वक विद्रोह को दबाने की कोशिश की गई थी. इसी दौरान तिब्बतियों के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा ल्हासा छोड़कर भारत भाग आए थे. इस साल तिब्बत विद्रोह के 65 साल पूरे हो रहे हैं. 

रविवार को राजधानी दिल्ली के मजनू टीले इलाके और धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) सहित दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में चीन की दमनकारी और साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन और गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा. अमेरिका सहित कई देशों में चीन के दूतावास के सामने तिब्बती नागरिक अपना विरोध जताएंगे. जानकारी के मुताबिक, अमेरिका के बोस्टन शहर में भी तिब्बती नागरिक के मार्च निकालेंगे.

विरोध प्रदर्शन के जरिए तिब्बती नागरिक अपने स्वत्रंत देश (तिब्बत) को याद कर रहे हैं और चीन की साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करेंगे. इसके साथ ही दुनिया को चीन से तिब्बत को वापस उसके नागरिकों को दिलाने का आह्वान करेंगे. फ्री-तिब्बत के साथ जगह-जगह लोग दुनिया को बताएंगे कि तिब्बत चीन का हिस्सा नहीं है. साथ ही चीन के शासन में तिब्बतियों के मानवाधिकार उल्लंघनों को भी उजागर करेंगे. 

ये वर्षगांठ ऐसे समय में आई है जब दलाई लामा अब 80 साल के हो चुके हैं और उनके उत्तराधिकारी को लेकर चीन टांग अड़ा रहा है. चीन तिब्बत के पारंपरिक तरीके से चुने गए उत्तराधिकारी को मानने के लिए तैयार नहीं है और अपनी कठपुतली नियुक्त करना चाहती है. जानकारों की मानें तो तिब्बतियों का उत्तराधिकारी चुनना सिर्फ एक धार्मिक महत्व का कारण नहीं बल्कि राजनीतिक भी है. 

तिब्बत विद्रोह की 65वीं वर्षगांठ से पहले चीन के कब्जे वाले तिब्बत क्षेत्र में एक दूसरा आंदोलन शुरु हो गया है. ये आंदोलन डिगे काउंटी के वोंगपो तोक शहर में चीन की शी जिनपिंग सरकार द्वारा बांध बनाने के नाम पर तिब्बत के ऐतिहासिक और धार्मिक मठ को तोड़ने को लेकर शुरु हुआ है.

दरअसल, पिछले महीने करीब 1000 तिब्बती मूल के नागरिकों ने पूर्वी तिब्बत के डिगे प्रशासन के मुख्यालय के सामने एक प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन के दौरान चीनी अधिकारियों ने हिंसात्मक तरीके से सभी प्रदर्शनकारियों को वहां से खदेड़ दिया और करीब 100 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. काले कपड़े पहने चीनी अधिकारियों द्वारा जबरदस्ती प्रदर्शनकारियों से बदसलूकी का एक वीडियो भी सामने आया था. इनमें वोंटो मोनेस्ट्री (मठ) के धार्मिक गुरु भी शामिल थे जिन्हें अज्ञात जेल में बंद किया गया है.

जानकारी के मुताबिक, चीनी प्रशासन ने गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों में से 40 को इस शर्त पर छोड़ा गया है कि वे फिर से आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे और ना ही धरना कर रहे लोगों की तस्वीरें या वीडियो किसी से शेयर करेंगे. इसके बाद से ही चीनी प्रशासन सोशल मीडिया और तिब्बती मूल के लोगों पर कड़ी नजर रखे हुए है.

कई साल बाद चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ तिब्बत मूल के लोगों का कोेई आंदोलन सामने आया है. इसका बडा़ कारण चीन की शी जिनपिंग सरकाप द्वारा कड़ी सुरक्षा और तिब्बत में जबरदस्त निगरानी रखना है. वर्ष 2021 में एक तिब्बती युवक की संदिग्ध मौत के मामले में जरुर एक आंदोलन हुआ था लेकिन वो महज एक हफ्ते में ही समाप्त करा दिया गया था. लेकिन वोंटो मठ से जुड़ा हुआ मौजूदा आंदोलन जल्द समाप्त होता नहीं दिखाई पड़ रहा है. क्योंकि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इस आंदोलन को समर्थन मिल रहा है (तिब्बत में Xi के डैम के खिलाफ विद्रोह (TFA Exclusive).

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