चापलूसी की सारी हदें पार कर चुका है धूर्त पाकिस्तान. पाकिस्तान ने औपचारिक तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत-पाकिस्तान युद्ध रोकने के लिए नोबल शांति पुरस्कार देने के लिए नॉमिनेट कर दिया है.
वहीं सुर्खियों में रहने का नशा पाले ड्रामेबाज डोनाल्ड ट्रंप ने इस नॉमिनेशन पर कहा है कि मैंने दुनिया में शांति की कई कोशिशें की, जैसे भारत-पाक युद्ध रोकना, मिडिल ईस्ट में समझौते कराना, फिर भी उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा.
ट्रंप की गजब नौटंकी, गिनाया अपना काम, नोबल नॉमिनेशन पर इमोश्नल हुए
पाकिस्तान के औपचारिक नोबल नॉमिनेशन के बाद ट्रंप ने एक लंबी पोस्ट लिखी. ट्रंप ने लिखा, “मैंने कांगो और रवांडा के बीच समझौता करवाया, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोका, सर्बिया और कोसोवो के बीच शांति लाई, मिस्र और इथियोपिया के बीच टकराव रोका और मिडिल ईस्ट में अब्राहम समझौते किए, फिर भी मुझे नोबल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा. अगर सब कुछ सही चला, तो अब्राहम समझौते में और देश भी जुड़ेंगे और मिडिल ईस्ट पहली बार एकजुट हो पाएगा.
ट्रंप ने लिखा, चाहे मैं रूस-यूक्रेन या इजरायल-ईरान जैसे बड़े मुद्दों को भी सुलझा लूं, तब भी यह पुरस्कार नहीं मिलेगा. लोग जानते हैं कि मैंने क्या किया है और मेरे लिए वही सबसे ज्यादा मायने रखता है.”
ट्रंप हैं शांतिदूत, नोबल पुरस्कार के असली हकदार:पाकिस्तान
पाकिस्तान सरकार ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2026 के नोबल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया है. पाकिस्तान ने भारत के साथ सीजफायर कराने के लिए ट्रंप के हस्तक्षेप की सराहना की. पाकिस्तान ने जारी बयान में कहा कि “2025 में भारत और पाकिस्तान की जंग के दौरान ट्रंप के निर्णायक कूटनीतिक हस्तक्षेप और महत्वपूर्ण नेतृत्व की वजह से ट्रंप का नाम नोबल शांति पुरस्कार के लिए प्रस्तावित करने का फैसला किया गया. ट्रंप के प्रयासों की वजह से सीजफायर हो चुका जिससे युद्ध का एक बड़ा खतरा टल सका. वह इस पुरस्कार के असली हकदार हैं. ट्रंप के हस्तक्षेप की वजह से क्षेत्र में तनाव कम होने में मदद मिली. यह हस्तक्षेप शांतिदूत के रूप में ट्रंप की भूमिका का प्रमाण है.”
मुनीर के साथ लंच के बदले ट्रंप का नोबल के लिए नॉमिनेशन: व्हाइट हाउस
18 जून को व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के जहर उगलने वाले आर्मी चीफ असीम मुनीर के साथ ट्रंप ने लंच किया था. दरअसल ये लंच, पुरस्कार की डील के बदले में किया गया था. ये पूरी दुनिया जानती है कि डोनाल्ड ट्रंप एक बिजनेसमैन हैं और वो अपने किसी भी काम के लिए बदले में कुछ न कुछ जरूर लेते हैं.
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति वार्ता के बदले ट्रंप ने यूक्रेन के साथ मिनरल डील की. हमास से बंधकों को छुड़ाने की कोशिश के बदले गाजा पट्टी पर ट्रंप रिजॉर्ट बनाना चाहते हैं. सीरिया के मोर्चे पर तो ट्रंप ने उस अल शरा (मौजूदा राष्ट्रपति) से हाथ मिला लिया, जो अमेरिका की फाइलों में अल कायदा से संबंधित आतंकी है.
ऐसे में ये कैसे हो सकता है कि असीम मुनीर के साथ ट्रंप ऐसे ही लंच के लिए तैयार हो जाते. व्हाइट हाउस ने ट्रंप के साथ लंच के लिए पाकिस्तान के साथ डील की थी, कि नोबल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करो, और हमारे राष्ट्रपति के साथ लंच करो. लंच के बाद खुद व्हाइट हाउस की प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की थी.
पाकिस्तान निर्णय कर ले कि अमेरिका ने मदद की या सऊदी अरब ने?
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को भारत ध्वस्त कर रहा था तो उस दौरान पाकिस्तान के कहने पर सऊदी अरब के प्रिंस ने की थी विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात. ये दावा पाकिस्तान के डिप्टी पीएम इशाक डार ने किया है. पाकिस्तान के डिप्टी पीएम इशाक डार ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत ने जब नूर खान एयरबेस और शोरकोट एयरबेस पर हमला किया तो उन्होंने अमेरिका और सऊदी अरब की मदद ली थी.
झूठ की बुनियाद पर रचा गया नोबल पुरस्कार का नॉमिनेशन
पाकिस्तान के डिप्टी पीएम इशाक डार ने खुद स्वीकार किया है कि “पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब ऑपरेशन सिंदूर के तहत रावलपिंडी और पंजाब के दो एयरपोर्ट पर भारत ने जबर्दस्त अटैक किया तो पाकिस्तान को सीजफायर के लिए अनुरोध करना पड़ा था.”
वहीं भारत हमेशा से इस बात पर अडिग है कि मध्यस्थता के पीछे अमेरिका नहीं है. भारत-पाकिस्तान के बीच डायरेक्ट बातचीत के बाद सीजफायर किया गया है.
भारत ने साफ तौर पर हमेशा से कहा है कि “इस सैन्य कारवाई रोकने की बात सीधे भारत और पाकिस्तान के बीच, दोनों सेनाओं के माध्यम से हुई थी, और पाकिस्तान के ही आग्रह पर हुई थी. भारत ने न तो कभी मध्यस्थता स्वीकार की थी, न करता है, और न ही कभी करेगा.”
ऐसे में आतंकवाद पर पूरी दुनिया में घिरे पाकिस्तान को सिर्फ एक कमजोर नब्ज नजर आ रही है तो वो है राष्ट्रपति ट्रंप. जिनको ये लालसा है कि नोबल के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनके काम को सराहा जाए, उस काम को जो उन्होंने किया ही न हो.