यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए मंगलवार से सऊदी अरब में रूस और अमेरिका के प्रतिनिधि अहम बैठक में हिस्सा लेने जा रहे हैं. रूस की तरफ से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और अमेरिका की तरफ से विदेश सचिव मार्को रूबियो इस वार्ता में हिस्सा ले रहे हैं. खास बात ये है कि मीटिंग में आमंत्रित न करने को लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने अपनी नाराजगी जाहिर की है.
मीटिंग में न बुलाए जाने पर जेलेंस्की ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से फोन पर बात की है. साथ ही सोमवार को जेलेंस्की अपनी पत्नी के साथ पड़ोसी देश यूएई पहुंच गए. हालांकि, जेलेंस्की के यूएई पहुंचने का उद्देश्य साफ नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि रूस से युद्ध-बंदियों की अदला-बदली पर बात हो सकती है. क्योंकि पूर्व में यूएई की पहल पर दोनों देशों (रूस और यूक्रेन) ने युद्धबंदियों की अदला-बदली की है.
अमेरिका के प्रतिनिधियों में रूबियो और वाल्ज शामिल
सऊदी अरब की राजधानी रियाद में होने वाली मीटिंग में पूरी दुनिया की निगाहें लगी हैं. क्योंकि यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद (फरवरी 2022), दोनो सुपर पावर की ये कोई पहली वार्ता है. अमेरिका की तरफ से विदेश सचिव मार्को रूबियों के अलावा नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) माइक वाल्ज और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मिडिल-ईस्ट में विशेष दूत स्टीव विटकोफ बैठक में हिस्सा ले रहे हैं.
माना जा रहा है कि मीटिंग में सऊदी अरब के एनएसए भी हिस्सा लेंगे और रूस तथा अमेरिका के बीच मध्यस्थ की भूमिका में रहेंगे.
लावरोव के साथ पुतिन के सहयोगी भी शामिल
रूस की तरफ से विदेश मंत्री लावरोव के अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोगी यूरी उषाकोव रियाद में मौजूद रहेंगे. क्रेमलिन (रूस के राष्ट्रपति ऑफिस) के मुताबिक, अमेरिका से बैठक का उद्देश्य, यूक्रेन को लेकर बातचीत है. इसके अलावा रूस और अमेरिका के बीच सामान्य संबंध स्थापित करना है.
यूक्रेन जंग के अलावा इन मुद्दों पर होगी चर्चा
डोनाल्ड ट्रंप और पुतिन के बीच जल्द मुलाकात भी रियाद में हो रही मीटिंग का खास उद्देश्य है. क्योंकि ट्रंप ने पुतिन से जल्द मिलने की इच्छा जताई है. खबर है कि रूस के विक्ट्री डे (9 मई) समारोह में ट्रंप का मॉस्को दौरा हो सकता है. ऐसे में उससे पहले दोनों देशों के बीच सामान्य संबंध बेहद जरूरी हैं.
हाल ही में जब पुतिन और ट्रंप ने फोन पर डेढ़ घंटे लंबी बातचीत की थी तो उसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि पिछले तीन सालों में (बाइडेन प्रशासन), दोनों देशों के बीच जो राजनयिक संबंध पूरी तरह खत्म हो गए हैं उन्हें फिर से बहाल किया जाए.