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अपने बिछाए जाल में फंसे ट्रूडो, दोस्तों ने झाड़ा पल्ला

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अब अपने बिछाए जाल में फंसते जा रहे हैं. पहले खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह हत्या में भारत के खिलाफ पुख्ता आरोपों की बात कही, फिर अपनी मीडिया में ‘फाइव आईज अलायंस’ से मिली इंटेलिजेंस की स्टोरी प्लांट कराई. कहलवाया कि भारत के डिपलोमेट के खिलाफ कम्युनिकेशन और ‘ह्यूमन-इन्ट’ हैं यानि खुफिया जानकारी है. लेकिन अब यूएस की खुफिया एजेंसियों ने भी भी ट्रूडो को झूठा करार दे दिया है।

कनाडा के सीबीएस नेटवर्क ने दो दिन पहले एक खबर दी थी कि फाइव-आई अलायंस ने कनाडा को भारतीय राजनयिक के खिलाफ सबूत जुटाने में मदद की है. खबर को इस तरह पेश किया गया कि एक बार तो ऐसा लगा कि फाइव-आईज अलायंस ने ओटावा में भारत के उच्चायोग में तैनात डिपलोमेट की जासूसी की थी, उनका फोन टैप किया था या जहां वे तैनात थे वहां बग लगाकर उनकी बातचीत सुनी गई. यहां तक की कनाडा में तैनात अमेरिकी राजदूत डेविड कोहेन ने भी इस बात की हामी भरी की फाइव-आईज अलायंस ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा को जानकारी मुहैया कराई है।

लेकिन अब फाइव-आईज अलायंस ने साफ इंकार कर दिया है कि फाइव आईज अलायंस देशों की खुफिया एजेंसियों ने कनाडा को किसी तरह के ‘इंटेलिजेंस एवीडेंस’ मुहैया कराए हैं. अलांयस से जुड़े इंटेलिजेंस ऑफिसर्स ने साफ कर दिया है कि कनाडा को सिर्फ ‘कॉन्टेक्स्ट’ दिया गया था कि किन परिस्थितियों में खालिस्तानी आतंकी की हत्या की गई थी. फाइव आईज  ने न्यूयॉर्क टाइम्स  को दी जानकारी में कहा है कि भारतीय डिपलोमेट के खिलाफ जासूसी कनाडा ने की थी. यानि कनाडा फाइव-आईज अलायंस की आड में गैर-कानूनी काम किया है. गैर-कानूनी इसलिए क्योंकि कोई भी देश एंबेसी, दूतावास, हाई कमीशन के अंदर जासूसी नहीं कर सकता है. ये दो देशों के आपसी संबंधों का उल्लंघन है।

दरअसल, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने एक खास गठजोड़ बना रखा है. इन पांचों देश ने एक दूसरे से इंटेलिजेंस-शेयरिंग से जुड़ा एक समझौता कर रखा है. ऐसे में एक दूसरे से खुफिया जानकारी साझा करते हैं. इस खुफिया जानकारी को साझा करने के लिए इन देशों की इंटेलिजेंस एजेंसियां एक दूसरे से लगातार संपर्क में रहती हैं. जैसे अमेरिका की सीआईए, एनएसए यानि नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी, एफबीआई और इंग्लैंड की एमआई-6 और जीसीएचक्यू. ठीक उसी तरह कनाडा की आरसीएमपी यानि रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस और सीएसआईएस जिसे कैनेडियन सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विस के नाम से जाना जाता है. ठीक उसी तरह आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की खुफिया एजेंसियां इस एलायंस का हिस्सा हैं।

लेकिन ये अब साफ हो गया है कि अमेरिका या फिर इंग्लैंड ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जुड़ी कोई इंटेलिजेंस कनाडा से साझा नहीं की है. यहां तक की व्हाइट हाउस यानि अमेरिका राष्ट्रपति के ऑफिस ने भी इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है. क्योंकि कनाडा भले ही अमेरिका का मित्र-देशों हो लेकिन अमेरिका भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी संबंध बनाना चाहते हैं. क्योंकि भारत आज एक उभरती हुई महाशक्ति है. इंडो-पैसिफिक रीजन में कोई देश है जो चीन के आक्रामक व्यवहार को रोक सकता है तो वो भारत ही है. दुनिया में पीएम मोदी एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जो रूस के राष्ट्रपति पुतिन के मुंह पर बोल सकते हैं कि ये युग युद्ध का नहीं है।

ऐसे में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन तक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत को कनाडा की जांच में सहयोग करने की बात जरूर करते हैं लेकिन सीधे कसूरवार नहीं ठहरा रहे हैं. अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवायजडर जैक सुलीवन तक भी बहुत कुछ कहने में हिचकिचा रहे हैं. ऐसे में साफ है कि कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत के खिलाफ जो आरोप लगाए थे वो ओपन सोर्स इंटेलिजेंस और गूगल सर्च के आधार पर ही लगाए थे. ट्रूडो और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोडी थॉमस के पास कोई पुख्ता इंटेलिजेंस एविडेंस नहीं है. अगर कुछ है तो सिर्फ ‘रूमइन्ट’ यानि रियूमर-इंटेलिजेंस।

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