देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों के परिवारवालों के लिए लिखी मेरी एक पोस्ट आखिर क्यों वायरल हो गई है. क्यों लाखों की तादाद में लोगों ने उस पोस्ट को लाइक किया और कमेंट किया. मेरी इस पोस्ट पर वीरगति को प्राप्त बहादुर सैनिकों के परिवारों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी. लोगों ने न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान न्यौछावर करने वाले सैनिकों के परिवारों के प्रति संजीदगी और संवेदनशील रवैया अपनाने की सलाह दी है।
जम्मू-कश्मीर के कोकरनाग में सोमवार से एक बड़ा टेरेरिस्ट एनकाउंटर चल रहा है. इस एनकाउंटर में भारतीय सेना की एंटी-टेरेरिस्ट फोर्स, राष्ट्रीय राइफल्स की 19 आरआर यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर (सीओ), कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धनचुक और जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूँ भट्ट की आतंकियों से लड़ते हुए जान चली गई. जैसाकि सेना की एक एसओपी यानि स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर होता है, वीरगति को प्राप्त सैनिकों के परिवारवालों को इस गमगीन खबर की जानकारी देनी होती है. क्योंकि सैनिक देश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं…ऐसे इलाके जहां सेना की मौजूदगी भी नहीं होती है. ऐसे में सेना, सैनिक के पैतृक जिले के कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन को ये जानकारी देती है और वहां से ये जानकारी परिवारवालों को दी जाती है. कभी कभी सेना सीधे सैनिकों के परिवार को भी दे देती है।
सोशल मीडिया के आने से पहले ये जानकारी भले ही थोड़ी देर से मिलती थी परिवारवालों को बेहद संजीदगी से दी जाती थी. लेकिन पहले 24 बाय 7 चैनलों के आने से और फिर सोशल मीडिया के आने से बलिदान देने वाले सैनिकों के परिवार को जानकारी सेना और प्रशासन से पहले मीडिया और सोशल मीडिया से मिल जाती है।
भारतीय सेना लगातार न्यूज चैनलों और अखबारों को इस तरह की जानकारी तब तक देने के लिए रोकती है जब तक की परिवार से सीधे सेना या जिला प्रशासन ने साझा की हो. क्योंकि इस तरह साझा करने में एक संजीदगी और परिवार को ढांढस बढ़ाने वाला कोई न कोई साथ होता है. सेना सिर्फ मानवीय आधार पर ऐसा करने से मीडिया को रोकती है. मीडिया ने कुछ हद तक ये बात मान ली है. कई बार मुझे भी अपने सोर्स के हवाले से सेना मुख्यालय या फिर आधिकारिक जानकारी से पहले ही इंफॉर्मेशन मिल जाती है. इसके बावजूद मैंने कभी उस जानकारी को न तो अपने न्यूज चैनल या फिर सोशल मीडिया अकाउंट पर साझी की. न्यूज चैनल में काम करते हुए तो कई बार तो मुझे अपने न्यूज-रूम मैनेजर और साथियों की नाराजगी का सहभागी भी बना पड़ा।
हाल के दिनों में देखने में आया है कि सोशल मीडिया पर एक्टिव पूर्व फौजी बलिदान देने वाले सैनिकों के व्यक्तिगत जानकारी साझा कर रहे हैं. ये कैसे संभव हो पाया. दरअसल, सेना में एनडीए और आईएमए बैच के अलग-अलग व्हाट्सअप ग्रुप बने हुए हैं. इनमें सेम बैच वाले अधिकारी और पूर्व अधिकारी दोनों शामिल होते हैं. ऐसे में आर्मी हेडक्वार्टर या फिर फोर्मेशन मुख्यालय से पहले ही जानकारी साझा कर दी जाती है. वहां से ये जानकारी वेटरन्स के सोशल मीडिया अकाउंट पर आ जाती है. जैसा कि अनंतनाग एनकाउंटर में देखने को मिला।
बस इसी को लेकर मैंने मीडिया और सोशल मीडिया पर लिखा था कि हर कोई बिग न्यूज का इंतजार करता है. क्योंकि कोकरनाग एनकाउंटर में वीरगति को प्राप्त हुए मेजर आशीष के परिवार वालों को मैंने खुद कहते सुना कि उन्हें अपने भाई की शहादत की खबर मीडिया से लगी. ये मीडिया–मेनस्ट्रीम मीडिया भी हो सकती है या फिर सोशल मीडिया भी, कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. मैंने इस तरह की खबरों को मीडिया और सोशल मीडिया पर लीक करने वालों के लिए ‘वल्चर’ (गिद्ध) शब्द का इस्तेमाल किया था. क्योंकि एक गिद्ध ही होता है जो अपनी भूख मिटाने के लिए किसी तड़पते हुए इंसान या फिर जानवर के मरने का इंतजार करता है।
(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में उनकी रूस-यूक्रेन युद्ध पर ‘ऑपरेशन Z लाइव’ नाम की पुस्तक प्रकाशित हुई है. कश्मीर में आतंकवाद को नीरज राजपूत ने एक लंबे समय तक बेहद करीब से कवर किया है.)