चीन की नौसेना आज नंबर के मामले में भारत तो दूर अमेरिका की नेवी को भी पीछे छोड़ चुकी है. यूएस नेवी के पास आज 300 जंगी जहाज है तो चीन की नौसेना के युद्धपोतों की संख्या 350 पार कर चुकी है. बस इसी से अमेरिका के कान खड़े हो गए हैं और वो अब इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन को काउंटर करने के लिए भारत का साथ लेना चाहता है. क्या भारत इसके लिए तैयार है ?
इन दिनों आस्ट्रेलिया में मालाबार एक्सरसाइज का आखिरी चरण चल रहा है. चीन ने इस मालाबार एक्सरसाइज की अपनी 300 सैटेलाइट के जरिए जासूसी की है. लेकिन चीन ये जासूसी क्यों कर रहा है इसके पीछे कई बड़े सामरिक कारण हैं।
पहला कारण ये है कि चीन अब अमेरिका की तरह एक सुपर-पावर बनने की दौड़ के लिए निकल चुका है. कोल्ड-वर्ल्ड खत्म होने के बाद अमेरिका एक अकेली महाशक्ति बची थी. लेकिन पुतिन के नेतृत्व में रूस ने एक बार फिर सुपर-पावर बनने की कोशिश की. लेकिन एक बड़ी अर्थव्यवस्था ना होने के चलते रशिया एक मिलिट्री पावर बनकर रह गया. इधर शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन रिवर्स-इंजीनियरिंग और एक बड़ी इकोनॉमी होने के चलते मिलिट्री पावर बनने की राह पर निकल गया है. ऐसे में चीन की आज दुनिया की सबसे बड़ी सेना है. उसकी सेना में आज 20-25 लाख सैनिक हैं. वहीं अपनी समुद्री-पावर को दिन-रात बढ़ाने में जुटा है।
चीन की नौसेना में आज 350 जंगी जहाज हैं. ये नंबर अमेरिका से भी ज्यादा है. चीन की पनडुब्बियां का बेड़ा भी आज अमेरिका की बराबर आ गया है. कुछ सामरिक जानकारों का मानना है कि चीन के पास आज अमेरिका से ज्यादा पनडुब्बियां हैं. अमेरिका के पास आज 70 पनडुब्बियां हैं, जिनमें से 11 न्यूक्लियर सबमरीन हैं. चीन के पास भी 70-80 पनडुब्बियां की फ्लीट है लेकिन उसमें महज 03 ही परमाणु पनडुब्बियां है।
अमेरिका के पास आज 11 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं जबकि चीन के पास कुल तीन ही विमानवाहक युद्धपोत हैं. लेकिन अमेरिका को इस बात का खतरा सता रहा है कि चीन हर साल 10-15 जंगी जहाजों का निर्माण कर अपनी नौसेना में शामिल कर रहा है. ऐसे में अगले कुछ सालों में ही चीन के समुद्री बेड़े में 400 से भी ज्यादा जंगी जहाज हो जाएंगे. लेकिन ये रफ्तार अमेरिका में थोड़ी धीमी है. बस इसी से अमेरिका सकते में है. क्योंकि अमेरिका के इंटीग्रेटेड लॉन्ग प्लान के तहत वर्ष 2045 तक यूएस नेवी में 350 युद्धपोत ही हो पाएंगे।
ऐसे में अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. ये वही अमेरिका है जो कोल्ड-वॉर के दौरान भारत को नजरअंदाज कर पाकिस्तान से दोस्ती की पींगे बढ़ाता था और 1998 में परमाणु परीक्षण के दौरान बड़े सेंक्शन यानि प्रतिबंध लगा दिए थे. लेकिन आज भारत और अमेरिका की दोस्ती हिन्द महासागर की गहराई से भी ज्यादा गहरी हो गई है. भारतीय नौसेना भी आज एक उभरती हुई नेवी है जिसमें 150 युद्धपोत और पनडुब्बियां है, दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. भारत की चीन से पुरानी दुश्मनी है. 1962 के युद्ध से लेकर गलवान घाटी की झड़प तक दोनों देशों के बीच हमेशा तलवारें खिची रहती हैं. ऐसे में अमेरिका इंडो पैसिफिक रीजन में भारत का साथ लेना चाहता है।
हालांकि, हर देश को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है लेकिन ये भी सच्चाई है कि आज भारत को भी चीन के खिलाफ अमेरिका का साथ चाहिए ही चाहिए. क्योंकि पिछले चार-पांच सालों में चीन ने इतने समुद्री जहाजों का निर्माण किया है जितना भारत, जर्मनी, स्पेन और इंग्लैंड ने मिलकर तैयार नहीं किए हैं. समंदर में चीन के खिलाफ भारत और अमेरिका के हाथ मिलाने का नतीजा है मालाबार एक्सरसाइज।
हालांकि, दोनों ही देश 1992 से ये मालाबार एक्सरसाइज करते आ रहे हैं, लेकिन चीन को मिर्ची लगनी तब शुरु हुई जब आस्ट्रेलिया और जापान ने वर्ष 2007 में इस युद्धाभ्यास में हिस्सा लेना शुरु किया. चीन को लगने लगा कि ये युद्धाभ्यास चीन के धुर-विरोधी देशों की नौसेनाओं का युद्धाभ्यास है. चीन-अमेरिका और जापान की दुश्मनी पर मैं अगले यानि तीसरे एपिसोड में विस्तार से बात करूंगा।
चीन के आंख तररेने का नतीजा ये हुआ कि जापान और आस्ट्रेलिया ने 2007 में हिस्सा लेने के बाद हाथ खींच लिया. दोनों ही देश भारत के लिए चीन से पंगा नहीं लेना चाहते थे. लेकिन 2014 तक आते-आते बाजी पलट गई. जापान ने एक बार फिर से मालाबार एक्सरसाइज में हिस्सा लेना शुरु कर दिया. इस बीच चीन और आस्ट्रेलिया के संबंधों में भी खटास आ गई. आस्ट्रेलिया को समझ आ गया कि चीन से दोस्ती भारी पड़ सकती है. क्योंकि चीन ने आस्ट्रेलिया के खनिज-भंडारों से लेकर संसद तक में पिछले दरवाजे से पैठ बना ली थी. अमेरिका की पहल पर आस्ट्रेलिया ने चीन से संबंधों को तिलांजलि दी और पहले क्वाड संगठन में शामिल हो गया. क्वाड में अमेरिका और आस्ट्रेलिया के अलावा भारत और जापान भी शामिल हैं. चीन अब पूरी तरह तिलमिला उठा. क्वाड का नतीजा ये हुआ कि 2020 से आस्ट्रेलिया ने मालाबार एक्सरसाइज में हिस्सा लेना शुरु कर दिया. यही वजह है कि क्वाड संगठन को चीन ने एशियाई नाटो का नाम देना शुरु कर दिया है।
इस साल मालाबार एक्सरसाइज आस्ट्रेलिया में हो रही है जिसमें चारों देशों की नौसेनाओं के मिसाइल डेस्ट्रोयर, स्टील्थ फ्रिगेट, सबमरीन, फाइटर जेट, टोही विमान और स्पेशल फोर्सेज हिस्सा ले रही हैं. जबकि पिछले साल यानि वर्ष 2022 में ये एक्सरसाइज ईस्ट चायना सी में हुई थी. 2021 में फिलीपींस सी और बंगाल की खाड़ी में हुई थी जबकि 2020 में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में हुई थी. ऐसे में चीन को सीधा संदेश है कि शी जिनपिंग को अपनी हद में रहना होगा।
चीन की घेराबंदी के लिए क्वाड और मालाबार एक्सरसाइज बेहद ही अचूक इलाज है. क्योंकि चीन साउथ चायना सी में किसी भी तरह के नियम और कायदे कानून को नहीं मानता है. पड़ोस के छोटे एशियान देशों को चीन यहां घुसने तक नहीं देता है. यहां के आईलैंड पर गैर-कानूनी तरीके से कब्जा करने की फिराक में रहता है. ताइवान पर कब्जा करने की लंबी तैयारी में भी चीन जुटा हुआ है. ऐसे में चीन की विस्तारवादी नीतियों को रोकने के लिए मालाबार एक्सरसाइज की जाती है. क्योंकि इस रीजन में अगर कोई देश है जो चीन को रोकने में कामयाब है तो वो भारत ही है. भारत की आज ना केवल दूसरी सबसे बड़ी सेना है जो पूर्वी लद्दाख में चीन की घुसपैठ पर लगाम लगाती है किसी भी मिस-एडवेंचर की स्थिति में सबक भी सिखा देती है. इंडियन ओसियन रीजन में भी आज भारत नेट-सिक्योरिटी प्रोवाइडर की भूमिका में है।