देश एक बार फिर करगिल विजय दिवस मना रहा है. इस साल करगिल की चोटियों में पाकिस्तान पर मिली विजय की 24 वीं वर्षगांठ है यानि शिकस्त के 24 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन इस बार का जश्न उस शख्स की गैरमौजूदगी में मनाया जा रहा है जिसने पूरी करगिल की साजिश रची थी. जो करगिल का मास्टरमाइंड था. पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ का इस साल के शुरूआत में दुबई के एक अस्पताल में गुमनामी में इंतकाल हो गया।
लेकिन करगिल का सच क्या है ? मुशर्रफ ने आखिर करगिल पर कब्जे की साजिश क्यों रची थी ? करगिल युद्ध के बारे में अभी तक बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जा चुका है और आप जानते भी हैं. लेकिन आज आपको पता चलेगा कि आखिर मुशर्रफ को चूड़ियां पहनने वाली फौज का टोंट यानि तंज इतना क्यों चुभता था कि उसने भारत को सबक सिखाने का फैसला किया. क्यों अपनी सेना की मर्दानगी पर लगे दाग को मिटाने के लिए ही उसने करगिल की साजिश रची थी. लेकिन इस साजिश में भी उसे एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी।
करगिल युद्ध क्यों हुआ, कैसे सर्दियों में हमारी खाली चौकियों पर पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा किया, कैसे हमारे बहादुर सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे किए और करीब तीन महीने चली लड़ाई में वापस अपनी जमीन का एक-एक इंच वापस ले लिया, ये सब हम अच्छे से जानते हैं. लेकिन आज आपको पता चलेगा कि करगिल युद्ध से मात्र छह-सात महीने पर ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ को दो सीनियर मिलिटरी कमांडर्स को ‘बाईपास’ कर पाकिस्तानी सेना का चीफ यानि प्रमुख बनाया था।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख बनते ही मुशर्रफ ने दस साल पहले सिचायिन में मिली हार का बदला लेने की प्लानिंग शुरु कर दी. कम ही लोग जानते हैं कि 80 के दशक में परवेज मुशर्रफ पाकिस्तानी सेना की एसएसजी यानि स्पेशल सर्विस ग्रुप के ब्रिगेड कमांडर थे. उस वक्त जब सियाचिन को लेकर भारत और पाकिस्तान में लड़ाई हुई तो मुशर्रफ के नेतृत्व में एसएसजी के कमांडो को सियाचिन में भारतीय सैनिकों को निकालने के लिए वहां भेजा गया था. खुद मुशर्रफ ने सिचायिन पहुंचने वाले रास्तों का दौरा किया था।
ये बात है 1984 की, जब भारतीय सेना को जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सेना यूरोप में बड़ी संख्या में ‘आर्टिक-क्लॉथ’ खरीद रही है. इस तरह के कपड़े बेहद ही सर्दी वाली जगहों पर पहने जाते हैं. भारत की खुफिया एजेंसियों ने सेना को अलर्ट किया कि पाकिस्तानी सेना बंटवारे के बाद से खाली पड़े सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए तैयारी कर चुकी है. बस फिर क्या था भारतीय सेना की एक टुकड़ी पाकिस्तानी सेना के दल से पहले वहां पहुंच गई. खिसियाई पाकिस्तानी सेना ने वहां जोर-आजमाइश की कोशिश की, गोलियां भी चली, हमारे सैनिकों की शहादत भी हुई और पाकिस्तानी सेना को भी नुकसान हुआ, लेकिन भारतीय सेना टस से मस नहीं हुई. इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने बेहद गुपचुप तरीके से सियाचिन ग्लेशियर की एक बेहद ही ऊंची चोटी पर जाकर अपनी चौकी बना ली और उसका नाम दे किया कायदे-पोस्ट. ये नाम पाकिस्तान के संस्थापक, मोहम्मद अली जिन्ना जिन्हें कायद-ए-आजम कहा जाता था उनके नाम पर रखा गया था. 1987 में हॉनरेरी कैप्टन बाना सिंह और उनके साथियों ने पाकिस्तान की इस पोस्ट पर बेहद ही रोमांचक लड़ाई में कब्जा कर लिया था. इसके बाद से पूरा सिचायिन भारत के कब्जे में आ गया था. भारत के हाथों सियाचिन पूरी तरह से खो जाने पर पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तानी सेना पर जबरदस्त तंज मारते हुए कहा था कि पाकिस्तानी सेना सिर्फ अपने देश के नागरिकों से ही लड़ सकती है, भारतीय सेना का मुकाबला नहीं कर पाती है. उन्होनें पाकिस्तानी सेना के टॉप कमांडर्स को यहां तक कह दिया था कि आप चूड़िया डाल लो, यानि नई नवेली दुल्हन की तरह घर में चूड़ियां पहनकर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाओ. उस वक्त पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक का मिलिट्री-रूल चलता था. ऐसे वक्त में बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तानी सेना पर ये टोंट मारा था।
जाहिर है मुशर्रफ को भी ये तंज कांटे की तरह चुभता था. क्योंकि वो भी जिया उल हक की सेना में ब्रिगेडियर के पद पर तैनात था और उसका ऑपरेशन सियाचिन में फेल हुआ था, इसलिए वो भारत से हमेशा बदला लेने की प्लानिंग करता रहता था. ठीक 12 साल बाद जब मुशर्रफ को नवाज शरीफ ने अपनी सेना का चीफ बनाया तो उसकी बांछे खिल गई और उसने कारगिल की साजिश रचनी शुरु कर दी. उसे पता था कि सर्दियों के मौसम में भारतीय सेना अपनी चौकियों को खाली कर निचले इलाकों में आ जाती है. क्योंकि कारगिल-द्रास और बटालिक सेक्टर दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा इलाका है।
रूस का साइबेरिया ही एकमात्र ऐसा इलाका है जहां कारगिल-द्रास से ज्यादा ठंड पड़ती है. करगिल-द्रास का तापमान सर्दियों में माइनस (-) 55 तक गिर जाता है. जबरदस्त बर्फ पड़ती है और ये पूरा इलाका देश के बाकी हिस्सों से कट जाता था. क्योंकि श्रीनगर से करगिल जाने के लिए दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कों में से एक, जोजिला पास यानि दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है, जो सर्दियों के मौसम में तीन-चार महीने के लिए बंद हो जाता था. हालांकि, अब ये दर्रा मात्र एक-डेढ़ महीने के लिए ही बंद होता है और बीआरओ इसे जल्दी खोल देती है. साथ ही सड़क परिवहन मंत्रालय के नेतृत्व में अब यहां एक टनल बनने का काम भी शुरु होे गया है ताकि खतरनाक रास्ते से बचकर कारगिल-द्रास पहुंचा जा सके।
लेकिन इस रास्ते का सियाचिन और करगिल युद्ध से भी बड़ा कनेक्शन. वो क्या है, बताना बेहद जरूरी है. दरअसल, 1999 में सिचायिन पहुंचने का एकमात्र सड़क या रास्ता था एनएच-1ए यानि नेशनल हाईवे नंबर 1A, जो श्रीनगर को लेह से जोड़ता है. श्रीनगर से सोनमर्ग, कारगिल, द्रास होते हुए लेह सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है. फिर लेह से दुनिया के सबसे ऊँचे दर्रों और सड़क में से एक खारदूंगला होते हुए ही सियाचिन बेस कैंप पहुंचा जा सकता है. उस वक्त, कुल्लू-मनाली से जो लेह के लिए सड़क भी नहीं बनी थी. अब तो वो भी बन गई है और सेना के वाहनों की आवाजाही आराम से हो जाती है. इसके अलावा एक नया पदम-एक्सेस भी बनकर तैयार होने वाला है. यानि मेनलैंड इंडिया से लेह और सियाचिन पहुंचने के तीन रास्ते हैं. लेकिन 1999 में सिर्फ एक सड़क थी या फिर हवाई मार्ग था, दिल्ली, श्रीनगर और चंड़ीगढ़ से सीधे लेह एयरपोर्ट पर लैंड करना. लेकिन खराब मौसम के चलते वो आवाजाही भी काफी मुश्किल होती थी।
ऐसे में मुशर्रफ और पाकिस्तानी सेना ने इस नेशनल हाईवे को सियाचिन से पूरी तरह से काटने का षड्यंत्र रच डाला. पाकिस्तानी सेना ने अपनी इस साजिश को नाम दिया था ऑपरेशन-बद्र का. इस ऑपरेशन के तहत कारगिल के करीब 14 हजार वर्ग किलोमीटर के इलाके पर पूरी तरह से कब्जा करना था. दो परमाणु शक्ति देशों को लड़ाना था. इसके तहत द्रास से लेकर कारगिल और बटालिक तक 120 किलोमीटर तक भारत की सभी चौकियों पर कब्जा करना था और फिर कारगिल-द्रास से गुजरने वाले नेशनल हाईवे नंबर 1ए को बाकी देश से काट देना था. उससे एक तीर से दो निशाने साधने थे मुशर्रफ को. करगिल पर कब्जा और सियाचिन को जाने वाली हथियारों और रसद की सप्लाई को रोक देना. एक बार कारगिल पर कब्जा तो दूसरा निशाना सियाचिन था. क्योंकि एनएच-1ए के कटने का मतलब था कि सियाचिन में तैनात सैनिकों को एक्स्ट्रा रिइंफोर्समेंट भी भेजना मुश्किल हो जाता।
लेकिन सर्दियां खत्म होते ही जैसे ही भारतीय सेना को कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी सेना के दुस्साहस की जानकारी मिली, भारत के बहादुर सैनिकों ने अपने देश की आन-शान-बान के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. पाकिस्तानी को अपनी जमीन से खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने अपने मिशन का नाम दिया ऑपरेशन विजय. भारतीय वायुसेना जो थलसेना की मदद कर रही थी उसने अपने मिशन का नाम दिया ऑपरेशन सफेद सागर।
भारत के शूरवीरों ने कारगिल-द्रास की उंची-उंची चोटियों पर चढ़कर पाकिस्तानी सेना को वहां से भगाकर ही दम लिया. भारत के वीरों सैनिकों को मदद दी बोफोर्स तोप ने जिसने पाकिस्तानी बंकरों को चुन चुनकर तबाह किया. कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज पांडे, कैप्टन अनुज नायर, लेफ्टिनेंट विजयंत थापर, योगेंद्र यादव, राइफलमैन संजय कुमार, लेफ्टिनेंट कर्नल वाई के जोशी, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, कैप्टन हनीफ, कैप्टन सौरभ कालिया, स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा, मेजर सोनम वांगचुक और उनके जैसे भारतीय सेना के जांबाज सैनिकों ने एक बार फिर से पूरी दुनिया को दिखा दिया कि हाई-ऑल्टिट्यूड वॉरफेयर यानि पहाड़ों में लड़े जाने वाले युद्ध में भारत का कोई सानी नहीं है. यही वजह कि मिलिट्री हिस्ट्री में कारगिल की जंग को बेहद महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
कारगिल की जंग में भारतीय सेना के कुल 527 सैनिकों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन मनोज पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया. ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव और राइफलमैन संजय कुमार को भी अदम्य साहस और वीरता के लिए देश के सबसे बड़े पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया।
कारगिल भारत का पहला टीवी-युद्ध था जो न्यूज चैनल्स पर दिखाया गया था. देशवासियों ने अपने घरों में बैठकर युद्ध को लाइव देखा था. इसके अलावा जब वीरगति को प्राप्त सैनिकों के पार्थिव-शरीर उनके पैतृक घर पहुंचे तो देश के हर नागरिक का खून खौल उठा और भारतीय सेना के पीछे खड़ा हो गया. देशवासियों के प्रेम और जज्बात का ही नतीजा था कि भारतीय सेना ने एक बार फिर 1971 और सिचायिन की लड़ाई की तरह पाकिस्तान को जबरदस्त पटखनी दी।
(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस-जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ (प्रभात प्रकाशन) प्रकाशित हुई है.)