गाजा़ पट्टी में इजरायल के ताबड़तोड़ हमलों के बीच हमास का एक प्रतिनिधिमंडल इनदिनों मास्को की यात्रा पर है. हमास का ये प्रतिनिधिमंडल ऐसे समय में मास्को के दौरे पर है जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इजरायल और अमेरिका को साफ तौर से चेतावनी दी है कि अगर जंग को नहीं रोका गया तो इसकी आग मिडिल-ईस्ट क्षेत्र के बाहर भी फैल सकती है.
रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने इस बात की पुष्टि की है कि फिलिस्तीन के (हमास) आंदोलन के पोलितब्यूरो सदस्य अबू मरज़ूख मास्को में मौजूद हैं. हालांकि, क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर) के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने साफ तौर से कहा कि “ये प्रतिनिधिमंडल रूस के विदेश मंत्रालय से मिलने के लिए मास्को पहुंचा है. पुतिन से इस प्रतिनिधिमंडल का कोई संपर्क नहीं है.”
पिछले 18 महीने से रूस का भले ही यूक्रेन से जंग चल रहा हो लेकिन मास्को इजरायल-हमास जंग को लेकर पूरी तरह से सजग है. रूस संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में युद्ध-विराम को लेकर प्रस्ताव भी ला चुका है. हालांकि, इस प्रस्ताव पर अमेरिका ने वीटो कर दिया था. युद्ध शुरु होने के तुरंत बाद पुतिन ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर बात की थी. इसके अलावा उन्होनें मिस्र, ईरान और जॉर्डन जैसे अरब देशों के राष्ट्राध्यक्षों से भी बातचीत की थी.
हमास के प्रतिनिधिमंडल के मास्को में पहुंचने का मकसद अभी साफ नहीं है. लेकिन इतना जरूर है कि हमास इजरायल के खिलाफ जंग में रूस की मदद चाहता है. यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि 7 अक्टूबर को इजरायल में हुए हमास के हमले में 16 रूसी नागरिक भी मारे गए थे. इसके अलावा 08 नागरिक लापता हैं और एक के हमास द्वारा बंधक बनाए जाने की रिपोर्ट भी सामने आई है. ऐसे में ये माना जा सकता है कि रूसी नागरिक को हमास के कब्जे से रिहा कराने के लिए भी फिलिस्तीन का प्रतिनिधिमंडल मास्को की यात्रा पर हो.
लेकिन हर कोई हैरान है कि इजरायल-हमास युद्ध में रूस, फिलिस्तीन का साथ दे रहा है. चीन की तरह ही रूस भी गाज़ा पट्टी में इजरायल की जवाबी कारवाई का विरोध कर रहा है. गुरूवार को पुतिन ने ईरान के सुर में सुर मिलाते हुए यहां तक कहा कि अगर इजरायल ने युद्ध नहीं रोका तो “इसकी आग मिडिल-ईस्ट तो क्या बाहर तक फैल सकती है.”
रूस के इजरायल से अच्छे संबंध रहे हैं. यूक्रेन जंग के दौरान इजरायल ने रूस के खिलाफ कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था. साथ ही इजरायल ने यूक्रेन को कोई हथियार भी सप्लाई नहीं किए थे. ऐसे में रूस का फिलिस्तीन को समर्थन देना इजरायल से संबंध खराब करने जैसा साबित हो सकता है. मिडिल-ईस्ट में जंग शुरू होने के साथ ही रूस लगातार ‘टू-स्टेट’ का समर्थन कर रहा है यानि इजरायल और फिलिस्तीन दो अलग-अलग राष्ट्र.
जानकारों का मानना है कि इजरायल-हमास जंग में रूस मध्यस्थता की कोशिश कर सकता है. ऐसे में एक तो दुनिया का ध्यान यूक्रेन युद्ध से हट सकता है. दूसरा ये कि रूस जियोपॉलिटिकल समीकरण में अपने खोई साख को एक बार फिर से प्राप्त कर सकता है.
दरअसल, यूक्रेन जंग के दौरान (जिसे रूस ‘स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन’ कहता है) रूस के ईरान से करीबी स्थापित हो गए थे. ईरान ने अपने बेहद ही खतरनाक ‘शहीद’ ड्रोन रूस को मुुहैया कराए हैं. इन ड्रोन के चलते रूस ने यूक्रेन जंग में काफी बढ़त बना ली है. साथ ही जिस तरह अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने यूक्रेन का साथ देकर रूस का विरोध किया है उससे पुतिन आगबबूला हैं. ऐसे में वे इजरायल का विरोध अमेरिका के चलते ज्यादा कर रहे हैं. क्योंकि ‘कोल्ड वॉर’ खत्म होने के बाद जिस तरह अमेरिका ने पूरी दुनिया पर यूनीपोलर वर्चस्व कायम किया है उसका रूस विरोध कर रहा है. चीन भी इसी श्रेणी में शामिल है जो अमेरिका की बादशाहत को सीधे चुनौती दे रहा है. ऐसे में जब अमेरिका पश्चिमी एशिया में इजरायल का नि-शर्त समर्थन कर रहा है तो चीन और रूस सरीखे देश वाशिंगटन को चुनौती देने में जुटे हैं. ईरान की इजरायल और अमेरिका, दोनों से, पुरानी रंजिश रही है. साफ है रूस, चीन और ईरान ने एक अलग समीकरण तैयार कर लिया है जो ‘वेस्ट’ का धुर-विरोधी है.