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किम जोंग के कब्जे में यूएस सोल्जर, कोरिया में फिर टेंशन

किम जोंग उन, नाम याद है ना. उत्तर कोरिया का सनकी तानाशाह जो अपनी बैलिस्टिक मिसाइल और परमाणु हथियारों का कभी टेस्ट तो कभी उनका प्रदर्शन कर दुनिया की नींद उड़ा देता है. पिछले पांच-छह साल से किम जोंग उन थोड़ा शांत था. लेकिन एक बार फिर कोरियाई प्रायद्वीप युद्ध के मुहाने पर खड़ा हुआ है. अब एक दूसरा युद्ध ये धरती नहीं झेल पाएगी. हम जानते ही हैं कि पिछले डेढ़ साल से रूस-यूक्रेन युद्ध चल ही रहा है।

कोरियाई प्रायद्वीप यानि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में पिछले एक हफ्ते में दो-तीन ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं जिससे तनाव बेहद बढ़ गया है. पहला तो ये कि पिछले 40 साल में पहली बार अमेरिका की एक परमाणु पनडुब्बी दक्षिण कोरिया के बंदरगाह पर पहुंची है. दूसरा ये कि अमेरिका का एक सैनिक उत्तर कोरिया भाग गया है. वो भी उत्तर और दक्षिण कोरिया के सबसे संवेदनशील बॉर्डर डीएमजेड से।

तीसरा ये कि किम जोंग उन के उत्तर कोरिया ने मिसाइल टेस्ट करना एक बार फिर से शुरू कर दिया है. 2018 में दोनों देशों डीएमजेड यानि डी-मिलिट्राइज जोन में कोरिया समिट का आयोजन किया था जिसके बाद से कोरियाई प्रायद्वीप में थोड़ी शांति आ गई थी. एक साल बाद फिर किम जोंग उन और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात हुई तो हालात थोड़ा और सुधर गए थे. लेकिन एक बार फिर से उत्तर कोरिया ने उकसावे की कारवाई शुरू कर दी है. पिछले कुछ समय में नॉर्थ कोरिया ने कम से कम 100 मिसाइलों का परीक्षण किया है. उत्तर कोरिया के लोगों के पास खाने के भले ही लाले पड़े हों लेकिन परमाणु हथियारों का जखीरा जरूर इकठ्ठा कर लिया है।

नॉर्थ कोरिया के लगातार बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट के बीच, अमेरिका की एक परमाणु पनडुब्बी दक्षिण कोरिया के बंदरगाह पहुंची है. पिछले 40 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है. यूएसएस केंटुकी नाम की ये एसएसबीएन सबमरीन न्यूक्लियर मिसाइल दाग सकती है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक यओल ने बुसान बंदरगाह पहुंची इस पनडुब्बी में खुद अंदर जाकर पूरा जायजा लिया.  अमेरिका ने ये पनडुब्बी दक्षिण कोरिया के परमाणु हथियारों की धमकी और प्रदर्शन का जवाब देने के लिए बुसान भेजी थी. लेकिन जब यून सुक येओल अमेरिका की इस ओहियो क्लास सबमरीन में थे उसी दौरान किम जोंग उन ने दो बैलिस्टिक मिसाइल समंदर में दागकर अपने आक्रामक इरादे एक बार फिर से जाहिर कर दिए।

अब सवाल ये खड़ा ये होता है कि आखिर अमेरिका ने साउथ कोरिया में अपने परमाणु पनडुब्बी को क्यों भेजा है. तो इसका जवाब ये है कि 50 के दशक में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच जो युद्ध हुआ था उसमें अमेरिका ने साउथ कोरिया का साथ दिया था. युद्ध के बाद हालांकि दोनों देशों में शांति समझौता हुआ था लेकिन उसके बावजूद भी नॉर्थ कोरिया ने कई बार दक्षिण कोरिया पर हमला करने का प्लान बनाया. यही वजह है कि अमेरिका साउथ कोरिया की सुरक्षा करता है. दोनों देशों के बीच गहरी दोस्ती है. अमेरिका की यूएस कोरिया फोर्स साउथ कोरिया में तैनात रहती है. इस फोर्स में करीब 30 हजार सैनिक हैं जो हर वक्त नॉर्थ कोरिया के आक्रमण से बचाने के लिए दक्षिण कोरिया में तैनात रहते हैं. ये कोरिया फोर्स अमेरिका की पैसेफिक कमांड यानि पैकॉम के अधीन है. यही वजह है कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच समय समय पर युद्धाभ्यास चलते रहते हैं. और जब भी उत्तर कोरिया की तरफ से कोई आक्रमक कारवाई होती है तो अमेरिका अपने एयरक्राफ्ट कैरियर और सबमरीन दक्षिण कोरिया भेज देता है. लेकिन इस बार अमेरिका ने अपनी सबसे खतरनाक परमाणु पनडुब्बी, यूएसएस केंटुकी बुसान भेज दी. ये नॉर्थ कोरिया को एक बड़ी चेतावनी है।

पाकिस्तान की गुपचुप मदद से उत्तर कोरिया कई साल पहले परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया था. बावजूद इसके दक्षिण कोरिया जो एक लोकतांत्रिक और शांति-प्रिय देश है, कभी न्युक्लियर पावर बनने की कोशिश नहीं की. लेकिन जब किम जोंग उन की हरकतें बढ़ने लगी हैं  और पानी सर से ऊपर होने लगा है तब इसी साल अप्रैल में साउथ कोरिया ने अप्रैल के साथ एक न्यूक्लियर कंसलटेटिव ग्रुप बनाया और पिरयोडिक  यानि समय समय पर परमाणु पनडुब्बियों जैसी स्ट्रेटेजिक-विजिट की घोषणा की थी. इसी क्रम में यूएसएस केंटुकी बुसान पहुंची है।

लेकिन दक्षिण कोरिया में जो अमेरिका की यूएस फोर्स कोरिया तैनात रहती है, इसी फोर्स का एक सैनिक कुछ दिन पहले भागकर उत्तर कोरिया पहुंच गया है. उसके बाद से ही इस सैनिक का कोई अता-पता नहीं है. जिससे एक बार फिर अमेरिका और नॉर्थ कोरिया में तलवारें खिंच गई है. लेकिन ये अमेरिकी सैनिक उत्तर कोरिया कैसे भाग खड़ा हुआ, ये भी एक बेहद ही नाटकीय घटना है।

दक्षिण कोरिया में तैनात ये अमेरिका सैनिक पिछले दो महीने से जेल काट रहा था. ट्रेविस किंग नाम के इस सैनिक को एक नाइट-क्लब में मारपीट और पुलिस पर हमले का आरोप था. दो महीने की जेल के बाद इस सैनिक को वापस अमेरिका भेजा जाना था लेकिन ये सियोल के इंचियोन एयरपोर्ट पर सुरक्षाकर्मियों को गच्चा देकर डीएमजेड  यानि डी-मिलिट्राइज जोन पहुंच गया. डीएमजेड जैसा हम जानते ही हैं कि दुनिया के सबसे खतरनाक बॉर्डर में से एक तो है लेकिन दक्षिण कोरिया ने इस जगह को वॉर-टूरिज्म में बदल दिया है. इसलिए उत्तर कोरिया में झांकने के लिए देश-विदेश के लाखों टूरिस्ट यहां पहुंचते हैं. ये जगह क्योंकि यूएन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत आती है इसलिए सियोल की ट्रैवल एजेंसियां परमिशन लेने और पर्यटकों से डॉलर में फीस लेकर यहां पर्यटकों को घुमाने लाती हैं. किसी और एपिसोड में मैं आपको डीएमजेड के बारे में विस्तार से बताउंगा क्योंकि मैं खुद तीन बार यहां से रिपोर्टिंग कर चुका हूं. लेकिन आज बात यहां पनप रहे तनाव के बारे में. डीएमजेड से दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल की दूरी महज 75 किलोमीटर है. यानि डीएमजेड से एक तोप का गोला भी दागा गया तो दुनिया के सबसे विकसित, एडवांस और अमीर शहर सियोल में तबाही लाई जा सकती है. यही वजह है कि दक्षिण कोरिया पड़ोसी देश नॉर्थ कोरिया से युद्ध करने से बचता है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया के लोग भी नॉर्थ कोरिया में रहने वाले लोगों को अपने परिवार जैसा मानते हैं. क्योंकि 1948 में बंटवारे से पहले दोनों देश एक ही थे।

हाल ही में एक कोरियाई वेब-सीरिज आई थी क्रैश-लैंडिंग ऑन यू जिसमें डीएमजेड पर तैनात एक नॉर्थ कोरिया के मिलिटरी ऑफिसर की सियोल के एक बिजनेस-टायकून की बेहद ही खूबसूरत बेटी से लव-स्टोरी को दर्शाया गया है. इस वेब-सीरिज को पूरी दुनिया में सरहाया गया है कि कैसे नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच भले ही राजनीतिक विवाद हो लेकिन दोनों देशों के आम लोग एक दूसरे को कितना चाहते हैं, एक साथ मिलना चाहते हैं लेकिन राजनीतिक और मिलिट्री बंदिशों में बंधे हैं. लेकिन दक्षिण कोरिया की दरियादिली को किम जोंग उन उसकी कमजोरी समझता है और उकसावे की कार्यवाही करता रहता है।

तो ये अमेरिकी सोल्जर ट्रेविस किंग भी यहां एक टूर-ग्रुप का हिस्सा था. लेकिन जैसे ही वो डीएमजेड यानि डी-मिलिट्राइज जोन पहुंचा, उसने उत्तर कोरिया की सीमा की तरफ तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया. इससे पहले कि कि दक्षिण कोरिया के सैनिक कुछ समझ पाते, वो उत्तर कोरिया की सीमा में पहुंच चुका था. उसके बाद से ही इस सैनिक का कोई अता-पता नहीं है. अमेरिका लगातार नॉर्थ कोरिया से इस सैनिक के बारे में संपर्क करने की कोशिश कर रहा है लेकिन किम जोंग उन की तरफ से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. अगर किम जोंग उन ने अमेरिका के सैनिक को नहीं लौटाया तो इसके गंभीर परिणाम उत्तर कोरिया को भुगतने पड़ सकते हैं. क्योंकि अमेरिका की यूएस कोरिया फोर्स तो है ही साथ ही यूएसएस केंटुकी अभी भी बुसान में ही तैनात है।

(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस-जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ (प्रभात प्रकाशन) प्रकाशित हुई है. लेखक तीन बार नॉर्थ-साउथ कोरिया के बॉर्डर, डीएमजेड से रिपोर्टिंग कर चुके हैं.)

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