रूस-यूक्रेन जंग से सीख लेते हुए इजरायल ने अपने टैंकों पर खास ‘वी’ साइन और ड्रोन अटैक से बचाने के लिए खास लोहे की ‘रूफ-केज’ से लैस किया है. लोहे का ये जाल टैंक के कपोला के ऊपर लगाया गया है. हाल ही में भारतीय सेना ने भी रूस की सेना से सीख लेते हुए अपने टैंकों पर भी ऐसे रूफ-केज लगाए हैं.
इजरायल डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) ने अपने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर अकाउंट) पर आर्मर्ड कॉल्मस का एक वीडियो साझा किया है. इस वीडियो में आईडीएफ के टैंक और इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईसीवी) गाज़ा पट्टी के दक्षिणी हिस्से में आक्रमण करने की तैयारी करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. वीडियो के बैकग्राउंड में आईडीएफ के दक्षिणी कमांडर की दमदार आवाज भी सुनाई पड़ रही है. वीडियो में कई दर्जन टैंक और आईसीवी और सिविलियन कारें दिखाई पड़ रही हैं (बहुत देश की सेनाओं में कमांडर सिविलियन कार इस्तेमाल करते हैं).
आईडीएफ की वीडियो-पोस्ट पर लिखा है, “हम हमास का नामो-निशान मिटाने के लिए लड़ेंगे. हम उन हजारों लोगों के लिए लड़ेंगे की जिनकी (7 अक्टूबर) को जान गई है. हम अपने देश की रक्षा की खातिर लड़ेंगे.” लेकिन एक मिनट चौदह सेकेंड के इस वीडियो में खास है आईडीएफ के टैंक जिनपर इंग्लिश अक्षर ‘वी’ लिखा है. ये निशान ठीक वैसा है जैसा यूक्रेन जंग में रूसी टैंक, आईसीवी और मिलिट्री ट्रक पर ‘वी’ या फिर ‘जेड’ लिखा होता था.
यूक्रेन पर आक्रमण के दौरान ये ‘जेड’ और ‘वी’ निशान काफी चर्चित हुए थे. क्योंकि शुरूआत में इनका मतलब समझ नहीं आया था. कुछ जानकारों ने इन वी और जेड साइन को हिटलर के नाज़ी चिन्ह से जोड़कर देखना शुरु कर दिया था. बाद में पता चला कि ये निशान दुश्मन के टैंकों और दूसरे सैन्य वाहनों से अलग दिखने के लिए लगाए गए थे.
इसके अलावा इजरायली टैंकों के कपोला पर लोहे की जालीदार शेड भी लगी है. ये शेड टैंक को ग्रेनेड से अटैक करने वाले क्वाडकॉप्टर (छोटे ड्रोन) या फिर डेस्ट्रेकटिव-ड्रोन (कामीकाजी) से बचाने के लिए लगाई गई है. ये शेड भी ठीक वैसी है जैसा रूसी सेना ने यूक्रेन युद्ध में अपने टैंकों पर लगाई है. इजरायली सेना के मैन बैटल टैंक (एमबीटी) स्वदेशी ‘मर्कावा’ हैं.
दरअसल, यूक्रेन के खिलाफ जंग के शुरूआती दिनों में रूस के टैंकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. रूस की सेना ने यूक्रेन की राजधानी कीव और आसपास के इलाकों को पारंपरिक आर्मर्ड वॉरफेयर के जरिए घेरने की कोशिश की थी. लेकिन यूक्रेन ने रूसी सेना के आर्मर्ड कॉल्मस पर ताबड़तोड़ ड्रोन से अटैक कर बड़ा नुकसान पहुंचाया था. आलम ये था कि यूक्रेनी ड्रोन को देखकर रूसी सैनिक अपने टैंक और ट्रक छोड़कर भाग खड़े होते थे. लेकिन जल्द ही रूसी सेना ने इन कामीकाज़ी ड्रोन का तोड़ निकाला और टैंक के कपोला पर लोहे की जालीदार शेड (छत) लगानी शुरु कर दी. इस तरह से ड्रोन अटैक का खतरा बेहद कम हो गया.
कपोला के जरिए ही टैंक कमांडर 360 डिग्री व्यू लेता है. ऐसे में वो ड्रोन अटैक का शिकार बन जाता है. लेकिन इस तरह की जालीदार शेड से कमांडर और टैंक दोनों का काफी बचाव हो जाता है. क्योंकि टैंक को तबाह करने के लिए ड्रोन या फिर मिसाइल कपोला पर ही दागी जाती है. टैंक की बाकी बॉडी आर्मर होती है जिसके चलते वहां वार करने से ज्यादा नुकसान नहीं होता है.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद टैंक की उपयोगिता पर लगातार सवाल खड़े हो रहे थे. लेकिन यूक्रेन जंग में टैंकों के जरिए ही रूसी सेना ने निर्णायक युद्ध लड़ा और यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करने के लिए टैंकों का इस्तेमाल किया. ठीक इसी तरह 7 अक्टूबर के हमलों के बाद इजरायली सेना ने भी हमास के खिलाफ ग्राउंड अटैक के लिए बड़ी संख्या में टैंक का इस्तेमाल किया है. हालांकि, हमास ने गाज़ा पट्टी में हमास के कुछ टैंक को आग के हवाले करने की कोशिश भी की है. बुधवार को हमास ने दावा किया था कि उत्तरी गाज़ा में इजरायल के दो टैंक और चार मिलिट्री गाड़ियों को बम के हमलों में नष्ट किया गया है.
वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी की झड़प के बाद भारतीय सेना ने भी चीन के खिलाफ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर टी-90 और टी-72 टैंक तैनात किए थे. हाल ही में भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी के करीब एक युद्धाभ्यास किया था. इस युद्धाभ्यास में भारतीय सेना के टैंक पर रूफ-केज दिखाई पड़ी थी. दरअसल, भारतीय सेना ने रूस-यूक्रेन जंग को एक स्टडी के तौर पर लिया है. भारतीय सेना की आर्मर्ड रेजीमेंट ने रूस-यूक्रेन जंग की सफलताओं और असफलताओं पर गहन विचार किया है. इस दौरान टैंक को ड्रोन अटैक से बचने के उपायों में जालीदार केज लगाने पर भी सहमति बनी थी.
(नीरज राजपूत देश के जाने-माने मल्टी-मीडिया वॉर-जर्नलिस्ट हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.)