भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने क्या अब इजराइल की मोसाद की तर्ज पर काम करना शुरु कर दिया है. ये सवाल इसलिए क्योंकि पिछले एक साल से भारत के दुश्मन चाहे दुनिया के किसी भी कोने में छिपे हों, चुन-चुनकर मारे जा रहे हैं. उन सभी की मौत का राज क्या है किसी को कुछ पता नहीं चल पाया है. मारे जाने वालों की लिस्ट में खालिस्तान समर्थक अलगाववादी, कश्मीर में आतंक फैलाने वाले आतंकी संगठनों के आका और विदेशों में भारत विरोधी गतिविधियां करने वाले लोग शामिल हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में हुए सबसे बड़े आतंकी हमले यानि मुंबई के 26-11 हमले के बाद भी जब रॉ ने कुछ नहीं किया था, तो अब ऐसा क्या हुआ कि भारत की खुफिया एजेंसी ने अपने दुश्मनों को टारगेट करना शुरु कर दिया है. नेपाल हो या इंग्लैंड, या फिर कनाडा और अमेरिका और फिर चाहे पाकिस्तान, एक-एक कर सब ढेर हो रहे हैं।
16 जून को कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में एक गुरुद्वारे के बाहर हरदीप सिंह निज्जर नाम के एक शख्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई. शुरूआत में ये एक सामान्य लॉ एंड ऑर्डर की घटना लगी. लेकिन जब निज्जर का बैकग्राउंड चेक किया गया तो पता चला कि वो खालिस्तान टाइगर फोर्स का चीफ था. खबर तो यहां तक आई कि निज्जर आतंकियों को गन-ट्रेनिंग भी देता था. जैसा हम जानते हैं कि खालिस्तान एक अलगाववादी आंदोलन है जो पंजाब को धर्म के आधार पर अलग देश बनाने की मांग कर रहा है. 80 और 90 के दशक में खालिस्तान समर्थक आतंकवाद के चलते पंजाब की बेहद बुरी गत हो गई थी. सिक्योरिटी और इंटेलिजेंस एजेंसियों की कड़ी मशक्कत और राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद वहां शांति बहाली हुई है. लेकिन विदेशों में छिप खालिस्तान समर्थक एक बार फिर से पंजाब में आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इस बार भारत की खुफिया एजेंसियां ऐसा कतई नहीं होने देंगी।
निज्जर अकेला खालिस्तानी समर्थक नहीं है जो पिछले एक साल में ढेर किया गया है. निज्जर को 19 जून को लुढ़काया गया था. उससे ठीक तीन दिन पहले यानि 16 जून को इंग्लैंड के एक अस्पताल में दूसरे खालिस्तानी आतंकी अवतार सिंह खांडा की रहस्यमय मौत हो गई थी. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, खांडा को जहर देकर मारा गया है और कुछ नहीं बताया कि वो कैंसर से पीड़ित था. मरने की हकीकत कुछ भी हो लेकिन खांडा जब जिंदा था तो इंग्लैंड में रहकर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहता था. वो प्रतिबंधित संगठन खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का सरगना था. खुफिया एजेंसियों की फाइलों में वो एक बम-एक्सपर्ट के तौर पर कुख्यात था. लेकिन उसका सबसे बड़ा जुर्म ये था कि वो इसी साल मार्च के महीने में लंदन में भारतीय हाई कमीशन यानि उच्चायोग की बिल्डिंग पर लगे तिरंगे को उतारने की साजिश में शामिल था।
लेकिन सभी को सबसे बड़ा झटका उस वक्त लगा जब पाकिस्तान में घुसकर खालिस्तान कमांडो फोर्स के चीफ परमजीत सिंह पंजवार को सरेराह गोली से भून दिया गया. तब जाकर लोगों को पता चला कि हमारे देश की खुफिया एजेंसियों के डीप-एसेट दुश्मन देश में भी मौजूद है।
हैरानी इसलिए भी ज्यादा होती है क्योंकि जब देश में सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ था, मुंबई का 26-11 उस वक्त भी भारत ने कोई बड़ी जवाबी कारवाई नहीं की थी. उस वक्त साफ था कि मुंबई में टेरर अटैक की पूरी साजिश पाकिस्तान में रची गई थी. इसके बावजूद कोई बदला नहीं लिया गया. तो अब ऐसा क्या बदल गया है कि ‘क्रेक टीम’ एक के बाद एक आतंकियों को मौत के घाट उतार रही है।
इसका पहला कारण ये है कि देश की सुरक्षा की बागडोर एनएसए अजीत डोवाल के हाथों में है. खुफिया एजेंसियों से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो इसी साल मार्च के महीने में लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के दफ्तर में तिरंगे को उतारे जाने की घटना के बाद से पानी सर के ऊपर से निकल गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल इस तरह की घटना को देखकर चुप बैठने वाले नहीं थे. ऐसे में विदेश में बैठकर भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ कोई ना कोई कारवाई तय थी।
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, एनआईए ने लंदन की घटना में एफआईआर दर्ज की और घटना की सीसीटीवी जारी कर खालिस्तान समर्थकों की पहचान की अपील की. एफआईआर में तीन मास्टरमाइंड का नाम भी दर्ज किया गया. एक मास्टरमाइंड था अवतार सिंह खंडा, जिसकी 16 जून को इंग्लैंड के अस्पताल में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी. उसकी मौत एफआईआर रजिस्टर होने के भीतर हो गई थी।
एनएसए अजीत डोवाल के साथ-साथ अब भारत एक शक्तिशाली देश बन चुका है. एक समय ऐसा था जब अमेरिका के राजदूत का फोन भी अगर भारत के प्रधानमंत्री को चला जाता था तो बड़े-बड़े निर्णयों को भी बदल दिया जाता था. भले ही वो निर्णय देश-हित और देश की रक्षा-सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी हो. अब देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है. ऐसी राजनीतिक-हस्ती जिसका डंका पूरी दुनिया में बजता है. अमेरिका के राष्ट्रपति जिन्हें व्हाइट हाउस में स्टेट-गेस्ट के तौर पर निमंत्रण देते हैं और जिनका ऑटोग्राफ लेने के लिए अमेरिका के सांसदों में होड़ मची होती है।
रॉ में काम कर चुके रिटायर्ड ऑफिसर बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि देश की खुफिया एजेंसियों के पास कोवर्ट-ऑपरेशन की क्षमता नहीं थी. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले विदेशों में इस तरह के ऑपरेशन्स करने की इजाजत नहीं मिलती थी. लेकिन आज भारत इंग्लैंड और कनाडा जैसे देशों से भी कहीं ज्यादा पावरफुल बन चुका है. ऐसे में सरकार की तरफ से देश की सुरक्षा और देश-हित में काम करने के लिए इंटेलिजेंस एजेंसियों को पूरी छूट दी गई है।
पिछले एक साल में विदेशों में भारत के कोवर्ट-ऑपरेशन देखेंगे तो पता चलेगा कि देश के जिन दुश्मनों को चुन-चुन कर मारा गया है उसमें सिर्फ खालिस्तान समर्थक ही नहीं थे. बल्कि कश्मीर में आतंक की फैक्ट्री चलाने वालों से लेकर प्लेन हाईजैकिंग और 80 के दशक में ब्लास्ट करने वाले आतंकी भी हिट-लिस्ट में शामिल थे. इन दुश्मनों को इंग्लैंड, कनाडा और अमेरिका में ही नहीं ढूंढ कर मौत के घाट उतारा गया बल्कि अफगानिस्तान, नेपाल और दुश्मन देश पाकिस्तान तक में ढूंढ निकाला गया।
इसमें सबसे पहला नाम था जहूर मिस्त्री का जिसे कराची में सरेराह सिर में गोली मारकर ढेर किया गया. ये जहूर मिस्त्री कोई और नहीं बल्कि 1999 में इंडियन एयरलाइंस के आईसी-814 प्लेन को हाईजैक करने में शामिल था. इसने अपने साथियों के साथ काठमांडू से दिल्ली आ रही फ्लाइट का न केवल अपहरण किया था बल्कि प्लेन में बैठे एक यात्री रूपेन कत्याल का गला काटकर हत्या भी कर दी थी ताकि भारत सरकार को डराया-धमकाया जा सके. जैसा हम जानते हैं कि जहूर मिस्त्री और उसके साथी प्लेन को अफगानिस्तान के कंधार ले गए थे और फिर भारत की जेल में बंद तीन आतंकियों की रिहाई के बदले ही प्लेन और यात्रियों को छोड़ा था. इस घटना से भारत के सिक्योरिटी सिस्टम में फॉल्ट-लाइन तो उजागर हुई ही साथ ही पूरी दुनिया में भारत की छवि एक कमजोर देश के तौर पर बन गई थी. आईसी-814 की हाईजैकिंग के दौरान एनएसए डोवाल इंटेलिजेंस ब्यूरो यानि आईबी में ज्वाइंट डायरेक्टर के पद पर तैनात थे और खुद तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के साथ रिहा किए गए तीनों आतंकियों के साथ कंधार गए थे।
ठीक ऐसे ही 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट को बम से उड़ाने वाले एक आतंकी रिपुदमन सिंह मलिक को पिछले साल जुलाई में कनाडा में मौत के घाट उतार दिया गया. रिपुदमन की उम्र उस वक्त 75 साल थी और खालिस्तानी संगठन बब्बर खालसा से जुड़ा था।
ऐसे ही इसी साल फरवरी में पाकिस्तान के रावलपिंडी में हिजबुल मुजाहिद्दीन के ऑपरेशन्ल कमांडर बशीर अहमद पीर को बाइक सवार हमलावरों ने मौत के घाट उतार दिया. बशीर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा का रहने वाला था और आतंकी संगठन हिजबुल यानि एचएम के आतंकियों के लिए पाकिस्तान में मिलिट्री ट्रेनिंग दिलाने का काम करता था. इसके अलावा आतंकियों को एलओसी पार कराने की जिम्मेदारी भी बशीर के पास थी. ठीक वैसे ही जम्मू-कश्मीर के एक दूसरे आतंकी संगठन अल बद्र के कमांडर सैयद खालिद रजा को भी फरवरी के महीने में कराची में दिन-दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पिछले साल नवंबर में ही पाकिस्तान में ही एक दूसरे खालिस्तानी आतंकी हरविंदर सिंह संधू की ड्रग्स की ओवरडोज से मौत हो गई थी. वर्ष 2021 में पंजाब पुलिस के मुख्यालय पर रॉकेट लॉन्चर से हुए हमले में संधू उर्फ रिंदा का नाम आया था. हमले के वक्त रिंदा मुख्य हमलावर के साथ वीडियो कॉल पर था. इनके अलावा हिट-लिस्ट लंबी है जिन्हे अफगानिस्तान और नेपाल तक में मारा गया है।
लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि खुफिया एजेंसियों ये काम कैसे करती हैं. क्या रॉ एजेंट विदेश में जाकर देश के दुश्मनों को Neutralise करते हैं. इस बारे में मैंने खुद रॉ के पूर्व अधिकारियों से बात की है तो उन्होनें साफ कर दिया है कि भारत अपने कमांडो विदेशों में भेजकर ये काम नहीं करता है और ना ही कोई ऐसी क्रेक-टीम बनाई गई है, जैसा हॉलीवुड और जेम्स बॉन्ड की फिल्मों में हम देखते हैं. फिर कैसे किया जाता है. रॉ के अधिकारी ज्यादा तो कुछ नहीं बताते हैं लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि विदेशों में ऐसा काम करने वाले लोग मिल जाते हैं. फिर ऐसा करने के कुछ भी कारण हो सकता है या फिर उन्हें कोई प्रलोभन भी दिया जा सकता है. लेकिन सच्चाई ये है कि अब भारत के दुश्मन विदेशों में भी शरण तो दूर छिप नहीं पाएंगे. यही वजह है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी आजकल सकते में है और रॉ का नाम अचानक से एक बेहद ही खतरनाक इंटेलिजेंस एजेंसी के तौर पर उभरकर सामने आई है. ठीक इजराइल की मोसाद की तरह जो अपने दुश्मनों को टारगेट करने के लिए सालो-साल तक इंतजार जरूर करती है लेकिन छोड़ती नहीं है।
क्या भारत कभी इस तरह की टारगेट किलिंग को लेकर कोई जवाब देगा. इसका जवाब है बिल्कुल नहीं. क्योंकि इंटेलिजेंस एजेंसियां का जो काम होता है इसको लेकर ना तो कोई आधिकारिक जवाब मिलता है और ना ही कभी कोई इसके बारे में खुलकर बात करता है. हां, 25-30 साल बाद कभी कोई रिकॉर्ड सार्वजनिक होता है या आईबी-71 जैसे मूवी बनती है तब जाकर ऐसे ऑपरेशन की हकीकत सामने आती है।
आज ये जरूर बताना चाहता हूं कि कुछ दिन पहले खबर आई थी कि खालिस्तान का एक बड़ा समर्थक और सिख ऑफ जस्टिस नाम के प्रतिबंधित संगठन को चलाने वाले गुरपतवंत सिंह पन्नू के अमेरिका में एक रोड-एक्सीडेंट के मारे जाने की खबर आई थी. हालांकि बाद में ये खबर गलत साबित हुई. हालांकि, सोशल मीडिया पर इस एक्सीडेंट की तस्वीरें भी वायरल हुई थी. ऐसे में ये माना जा सकता है कि या तो खबर गलत थी या ऐसा तो नहीं था कि पन्नू रोड एक्सीडेंट में बच गया।
(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस-जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ (प्रभात प्रकाशन) प्रकाशित हुई है.)