कुछ दिन पहले ही मुझे कश्मीर आने का निमंत्रण आया था. मैंने हंसते हुए कहा कि वाकई मैं खुद आना चाहता हूं काफी दिन हो गए हैं. मेरी आखिरी कश्मीर यात्रा 2021 में हुई थी. उससे पहले तक मैं असंख्य बार जम्मू कश्मीर जा चुका था. धारा 370 हटने के बाद से पृथ्वी के (भारत के खासतौर से) ‘जन्नत’ में हजारों-लाखों की तादाद में पर्यटक पहुंच रहे हैं. जबकि मैं उस वक्त कश्मीर जाता था जब वहां टूरिस्ट नहीं टेररिस्ट का बोलबाला था. ऐसे में ‘आर्टिकल 370’ फिल्म का प्रीमियर देखने का अवसर प्राप्त हुआ तो कश्मीर की यादें फिर से ताजा हो गई.
‘उरी–द सर्जिकल स्ट्राइक’ के बाद एक्ट्रेस यामी गौतम की आदित्य धर (निर्माता-निर्देशक) के साथ ये दूसरी फिल्म मैंने देखी है. हालांकि उस फिल्म के बाद दोनों परिणय सूत्र में बंध गए थे. उरी फिल्म में भले ही विक्की कौशल लीड रोल में थे लेकिन बाजी यामी ने अपने छोटे लेकिन दमदार किरदार से मारी थी. ठीक वैसा ही आर्टिकल 370 में दूसरी लीड एक्ट्रेस प्रिया मणि ने मारी है. उरी फिल्म के बाद यामी गौतम अपने एक्टिंग कैरियर में आगे निकल चुकी हैं. उरी में भी यामी एक अंडरकवर इंटेलिजेंस एजेंट बनी थी और आर्टिकल 370 में भी उन्होंने यही रोल चुना है. लेकिन एक सरकारी अधिकारी के किरदार में प्रिया मणि भी इस फिल्म में कहीं से भी यामी से 19 नहीं लगी हैं. ये इसलिए भी क्योंकि फिल्म की कहानी धारा 370 (अनुच्छेद) के इर्द गिर्द घूमती हैं.
कश्मीर घाटी में काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन के बारे में तो बहुत कुछ सुना और लिखा जा चुका है लेकिन धारा 370 के हटने के पीछे की कहानी पहली बार सामने आई है. जब मोदी सरकार ने गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का फैसला किया था तो पूरा फोकस ये था कि किस तरह राज्य में हालात काबू में रखे जाएं. किसी भी तरह से कश्मीर घाटी में हिंसा, पत्थरबाजी, अलगाववाद और आतंकवाद को हावी न होने दिया जाए. पाकिस्तान किसी भी तरह से इस राजनीतिक घटनाक्रम का फायदा उठाकर अंतरराष्ट्रीयकरण न कर पाए. ऐसे में आर्टिकल 370 फिल्म के जरिए उस राजनीतिक और कानूनी द्धंद को बेहद ही बखूबी से फिल्म के निर्देशक ने पर्दे पर उतारा है. यही वजह है कि प्रिया मणि एक सधे हुए ब्यूरोक्रेट की भूमिका में काफी जमी हैं. गृह मंत्री अमित शाह की कॉपी करना एक्टर को थोड़ा मुश्किल जरूर लग रहा था. क्योंकि रियल लाइफ में अमित शाह इतना पावरफुल किरदार है कि वो पर्दे पर खुद बे खुद जानदार लगने लगता है.
रामायण के किरदार अरुण गोविल को एक लंबे अरसे बाद सुनहरे पर्दे पर देखना दर्शकों को जरूर भाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किरदार में तो वो सोने पे सुहागा जैसा है. हालांकि, फिल्म में पीएम के किरदार में अरुण गोविल को काफी कम डायलॉग मिले हैं. लेकिन जितने भी डायलॉग उन्होंने बोले उसपर प्रीमियर देखने आए लोग भी तालियां बजाने से पीछे नहीं रहे.
फिल्म में कश्मीर घाटी में काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन में सीआरपीएफ को केंद्रीय भूमिका में दिखाया गया है. भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) का बेहद ही कम या न के बराबर रोल है. ये बात सही है कि इस वक्त सीआरपीएफ के 50 हजार जवान पूरी कश्मीर घाटी में फैले हुए हैं और आंतरिक सुरक्षा के लिए लीड एजेंसी हैं. फिर भी आरआर और भारतीय सेना को फिल्म से पूरी तरह गायब कर देना उन दर्शकों को खिन्न कर सकता है जो कश्मीर घाटी में सीआई-सीटी ऑप्स यानी काउंटर इनसर्जेंसी एंड काउंटर टेररिस्ट ऑपरेशन को ग्राउंड जीरो से बेहद करीब से देख चुके हैं. इंटेलिजेंस एजेंसियों के काम करने के तरीके को भी फिल्म में अच्छे तरीके से उतारने की कोशिश की गई है जो हकीकत में काफी कम दिखाई या सुनाए पड़ते हैं. पहली बार किसी हिंदी फिल्म में देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, एनआईए की वर्किंग को भी दिखाया गया है. ये बात सही है कि धारा 370 हटने के बाद नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने कश्मीर में टेरर फाइनेंसिंग पर जबरदस्त काम किया है.
फिल्म में रियल घटनाओं को जोड़कर एक सूत्र में बांधने की कोशिश की गई है. ऐसे में कहानी के अनुसार निर्माता-निर्देशक ने थोड़ी लिबर्टी ली है अपनी लेकिन फिर भी किरदारों को रियल करेक्टर के करीब ही रखने की कोशिश की गई है. फिल्म थोड़ी लंबी जरूर है जो इस तरह की फिल्मों का एक नेगेटिव पॉइंट है.
मैं आर्टिकल 370 फिल्म को थ्री स्टार इसलिए दे रहा हूं क्योंकि मैं कश्मीर की उन घटनाओं के साथ रहा हूं जो इसमें दिखाए गई हैं. अन्यथा आम लोगों के लिए ये फिल्म 4 स्टार से कम नहीं होगी ऐसा मेरा यकीन है. क्योंकि ऐसे जटिल मुद्दों पर फिल्म बनाना आसान नहीं होता. आर्टिकल 370 के जरिए देशवासियों को कश्मीर के उस दौर के जानकारी हासिल होगी जब वो जगह पर्यटकों के लिए मुफीद नहीं थी. साथ ही सरकार के काम करने के तरीकों का बैकग्राउंड ज्ञान भी अर्जित हो सकेगा.
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