रुस-यूक्रेन युद्ध, मिडिल-ईस्ट में जंग और दुनियाभर में फैले तनाव के बीच अधिकतर देश अपना-अपना रक्षा बजट बढ़ाने में जुटे हैं. भारत भी अमेरिका, रुस और चीन के साथ दुनिया के उन टॉप देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है जो सबसे ज्यादा रक्षा खर्च करते हैं. वर्ष 2022 के मुकाबले 2023 में भारत ने अपने मिलिट्री-खर्च में 4.2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है.
ग्लोबल थिंक-टैंक सिपरी (स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2023 में दुनियाभर में हथियारों और दूसरे सैन्य साजो सामान पर कुल 2443 बिलियन डॉलर यानी 200 लाख करोड़. ये ग्लोबल रक्षा खर्च वर्ष 2022 के मुकाबले 6.8 प्रतिशत ज्यादा है. सिपरी के मुताबिक, पिछले नौ सालों से ये आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी के सभी पांचों क्षेत्र यानी अमेरिका, यूरोप, मिडिल-ईस्ट, एशिया-ओसियाना और अफ्रीका में ये खर्चा बढ़ा है. हालांकि, सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी यूरोप, एशिया, ओसियाना और मिडिल-ईस्ट में देखने को आई है.
सिपरी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा हथियारों पर खर्च करता है. उसका सालाना रक्षा खर्च 916 बिलियन डॉलर (76 लाख करोड़) है जो दुनिया के कुल खर्च का करीब 37 प्रतिशत है. दूसरे नंबर पर चीन है जिसका कुल मिलिट्री खर्च 296 बिलियन डॉलर है यानी 24 लाख करोड़ (ग्लोबल खर्च का करीब 12 प्रतिशत), जो 2022 के मुकाबले 6 प्रतिशत ज्यादा है.
रुस-यूक्रेन युद्ध
दुनिया में तीसरे नंबर पर मिलिट्री पर खर्च करने वाला देश है रशिया. रुस का सालाना रक्षा खर्च है 109 बिलियन डॉलर यानी 9 लाख करोड़ जो 2022 के मुकाबले 24 प्रतिशत ज्यादा है. साफ है कि यूक्रेन युद्ध के चलते रुस अपना रक्षा खर्च काफी ज्यादा बढ़ा रहा है. वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद रुस के रक्षा बजट में 57 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. रुस का रक्षा बजट अपनी जीडीपी का करीब 5.9 प्रतिशत है और सरकार के कुल खर्च का 16 प्रतिशत है.
पिछले दो सालों से रुस को जबरदस्त टक्कर दे रहे यूक्रेन का रक्षा खर्च हालांकि दुनिया में आठवें स्थान पर है लेकिन उसे अमेरिका सहित दूसरे पश्चिमी देशों से जमकर सैन्य और वित्तीय मदद मिल रही है. सिपरी के मुताबिक, अमेरिका से मिलने वाली मदद का ही नतीजा है कि आज यूक्रेन ने रुस के कुल रक्षा खर्च के करीब 91 प्रतिशत तक बराबरी कर ली है. रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन की कुल मिलिट्री-स्पेंडिंग है 64.8 बिलियन डॉलर (5.37 लाख करोड़) जो वर्ष 2022 के मुकाबले 51 प्रतिशत ज्यादा है. यूक्रेन की सेना पर सरकार के कुल खर्चे का 58 प्रतिशत भार पड़ता है.
सिपरी के मुताबिक, हालांकि, यूक्रेन का कुल रक्षा खर्च रुस के मुकाबले 59 प्रतिशत है. लेकिन पिछले साल यूक्रेन को 35 बिलियन डॉलर (2.90 लाख करोड़) के तौर पर बाहरी देशों से रक्षा खर्च मिला था. अकेले अमेरिका ने ही इसमें 25.4 बिलियन डॉलर का योगदान दिया था. यही वजह है कि पिछले साल यूक्रेन का रक्षा खर्च रशिया के खर्च के मुकाबले 91 प्रतिशत तक पहुंच गया था.
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते ही अमेरिका की संसद (कांग्रेस) ने यूक्रेन के लिए 61 बिलियन डॉलर के तौर पर मदद देने का बिल पास किया है. ऐसे में यूक्रेन को एटीएसीएम मिसाइलों के साथ अमेरिका के बेहतरीन हथियार मिलने जा रहे हैं.
मिडिल-ईस्ट में जंग
सिपरी के मुताबिक, मिडिल ईस्ट में रक्षा खर्च पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा पहुंच गया है. सऊदी अरब के बाद मिडिल ईस्ट में इजरायल सबसे ज्यादा अपने हथियार और आधुनिकीकरण पर खर्च करता है. इजरायल का कुल रक्षा खर्च 27.5 बिलियन डॉलर (2.28 लाख करोड़) है जो 2022 के मुकाबले 22 प्रतिशत ज्यादा है. सिपरी के मुताबिक, साफ है कि अक्टूबर 2023 में इजरायल पर आतंकी संगठन हमास के हमले और इजरायल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) के बड़े पैमाने पर गाजा में आक्रमण के बाद ये खर्च काफी बढ़ा है.
मिडिल-ईस्ट में रक्षा खर्च में ईरान का चौथा स्थान है. ईरान का रक्षा खर्च है 10.3 बिलियन डॉलर यानी 85.4 हजार करोड़. ईरान के इस्लामिक रिवोल्येशनली गार्ड कोर (आईआरजीसी) का खर्च 2019 के मुकाबले 2023 में 27 प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत हो गया है.
भारत का रक्षा खर्च क्यों ?
सिपरी के मुताबिक, 83.6 बिलियन डॉलर यानी 6.93 लाख करोड़ के रक्षा खर्च के साथ भारत दुनिया में मिलिट्री-स्पेंडिंग में चौथे स्थान पर है. अमेरिका, चीन और रुस ही भारत से सैन्य खर्चों में आगे हैं. पांचवें स्थान पर सऊदी अरब है. भारत दुनिया के कुल रक्षा खर्च का 3.4 प्रतिशत इस्तेमाल करता है. हालांकि, पाकिस्तान के साथ भारत का फरवरी 2021 से युद्ध-विराम समझौता चल रहा है जिसके कारण लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर शांति कायम है और जम्मू कश्मीर में भी आतंकवाद से मुक्ति मिलकर हालात सामान्य की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन चीन के साथ पिछले चार से तनाव जारी है. गलवान घाटी की झड़प (जून 2020) के बाद से ही भारत का पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तनाव चल रहा है. इसका असर पूरी 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर दिखाई पड़ रहा है. ऐसे में भारत अपनी सेनाओं के आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भर बनने पर जबरदस्त जोर दे रहा है. ताकि चीन की किसी भी चालबाजी का डटकर मुकाबला किया जा सके.