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अग्निवीर योजना में बदलाव की मांग शुरु, गठबंधन सरकार की बनेगी मजबूरी

एनडीए गठबंधन सरकार बनने की कवायद के साथ ही जेडीयू ने सेना की अग्निवीर योजना में जरुरी बदलाव की मांग की है. नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाईटेड) के प्रवक्ता के सी त्यागी ने अग्निपथ (अग्निवीर) योजना की समीक्षा की मांग की है. त्यागी का बयान शपथग्रहण समारोह से पहले आया है. यानी प्रधानमंत्री (कार्यवाहक) नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए डगर इतनी आसान रहने वाली नहीं है. 

के सी त्यागी के मुताबिक, चुनाव में अग्निवीर स्कीम एक बड़ा मुद्दा रहा है और जनता इसका विरोध कर रही है. ऐसे में अग्निपथ योजना में बदलाव की जरूरत है. टीएफए ने बुधवार को खुलासा किया था कि तरह चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को अग्निवीर स्कीम ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है. 

चुनाव नतीजों में पोस्टल-बैलेट में बीजेपी वाले एनडीए और कांग्रेस की इंडी-अलयांस में कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. दूसरा ये कि सेना के ‘कैचमेंट’ एरिया में ही बीजेपी को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. 

4 जून को जैसे ही वोटों की गिनती शुरु हुई, चौंकाने वाले नतीजे सामने आने शुरु हो गए. मतगणना के पहले एक घंटे में बीजेपी की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीए) और कांग्रेस के इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लुजिब (आईएनडीआई यानि इंडी) अलायंस की सीटों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. पहले आधे घंटे में एनडीए की सीटें थी 122 तो इंडी-अलयांस की थी 100. जैसा की पोल-पंडित चुनाव के दौरान और एग्जिट-पोल अनुमान लगा रहे थे, नतीजे बिल्कुल उसके उलट थे.

दरअसल, बॉर्डर और दूरदराज के इलाकों में तैनात सैनिकों के लिए चुनाव आयोग ने पोस्टल-बैलेट की सुविधा दे रखी है. ये पोस्टल बैलेट मतदान की तारीख से पहले ही पड़ जाते हैं. इसलिए मतगणना के दौरान सबसे पहले पोस्टल-बैलेट की ही गिनती होती है. उसके बाद ईवीएम के नतीजे सामने आते हैं. सेना के अलावा पोस्टल बैलेट में केंद्रीय अर्धसैनिक बल (सीआरपीएफ, बीएसएफ इत्यादि) भी शामिल होते हैं. क्योंकि पैरा-मिलिट्री फोर्स की भी चुनाव मतदान से लेकर ईवीएम की सुरक्षा और मतगणना की दौरान ड्यूटी रहती है. ऐसे में अर्धसैनिक बल के जवान भी पोस्टल-बैलेट का काफी इस्तेमाल करते हैं. 

लेकिन सवाल ये है कि सैनिकों ने बीजेपी और एनडीए के विरोध में वोट क्यों दिया. दरअसल, कांग्रेस के राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित एआईआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार को चुनाव अभियान के दौरान अग्निपथ (अग्निवीर) स्कीम को लेकर जमकर घेरा. विपक्ष ने ये नैरेटिव फैला दिया कि सेना में अग्निवीरों को दोयम दर्जे का सैनिक माना जाता है. कुछ-कुछ ऐसा जैसा कि भारतीय समाज में निचली जातियों को माना जाता है. राहुल गांधी ने अपनी चुनावी रैलियों में गांव के युवाओं तक को शामिल करना शुरु कर उनसे सीधे संवाद शुरु कर अग्निवीर पर सवाल-जवाब करना शुरु कर दिया. 

ओवैसी ने तो यहां तक कह दिया कि बीजेपी अगर तीसरी बार सरकार में आई तो अर्द्धसैनिक बलों में भी अग्निपथ स्कीम को लागू किया जाएगा. राहुल गांधी ने ऐलान किया कि अगर उनकी सरकार आई तो अग्निपथ प्लान को कूड़ेदान में डाल दिया जाएगा. 

अब अगर जिन राज्यों में बीजेपी को सीटों का नुकसान हुआ है तो पाएंगे कि ये वही कैचमेंट एरिया है जहां से भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिकों की भर्ती होती है. ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र. अकेले उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 2019 के मुकाबले करीब 30 सीटों का नुकसान हुआ है. महाराष्ट्र में बीजेपी को 2019 के मुकाबले 14 सीटों का नुकसान हुआ है. ठीक वैसे ही राजस्थान में बीजेपी को कम से कम 10 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. हरियाणा में भी बीजेपी की सीटें 2019 के मुकाबले आधी हो गई हैं.

कांग्रेस और विपक्ष के मुकाबले प्रधानमंत्री (अब कार्यवाहक) मोदी ने अपने चुनाव अभियान में एक बार भी अग्निपथ स्कीम का जिक्र नहीं किया, जबकि ये प्लान उनके ही दिमाग की उपज थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चुनाव’ में मात्र एक बार राजस्थान में अग्निवीर योजना का जिक्र किया. वो भी राजनाथ सिंह ने ये कहते हुए जिक्र किया कि अगर जरूरत पड़ी तो अग्निपथ योजना में बदलाव किए जा सकते हैं. साफ है कि अग्निपथ स्कीम को लेकर बीजेपी बैकफुट पर थी. चुनाव के दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) ने अग्निवीरों के रेजीमेंटल सेंटर में जाकर जरुर बातचीत की और उनकी योग्यताओं को सराहा. लेकिन राजनीति के अखाड़े में सीडीएस के विचार कहीं दब कर रह गए. 

दरअसल, चुनावों से पहले ही पूर्व थलसेना प्रमुख एमएम नरवणे ने अपनी पुस्तक के जरिए अग्निवीर योजना को लेकर सवाल खड़े करने शुरु कर दिए थे. ऐसे में विपक्ष योजना को मुद्दा बनाने में कामयाब रहा. 

वर्ष 2022 में सरकार अग्निपथ योजना को इसलिए लेकर आई थी ताकि सेना को यंग रखा जा सके. अग्निपथ योजना के जरिए सरकार चाहती थी कि सेना को एक कॉम्बेट-रेडी फोर्स बनाई जा सके. इससे सेना की ‘टेल’ तो छोटी होती ही साथ ही कॉम्बैट सोल्जर्स का एक बड़ा पूल तैयार किया जा सकता था. ऐसा इसलिए कि युद्ध के समय में पूर्व अग्निवीरों को सेना में तुरंत भर्ती किया जा सके. ठीक वैसे ही जैसा कि इजरायल जैसे देश करते हैं जहां सभी युवाओं को मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है. साफ था कि शांति काल में एक छोटी सेना लेकिन युद्ध के वक्त अनुशासित सैनिकों की कमी न हो और थोड़ी ट्रेनिंग के साथ ही जंग के मैदान में भेज दिया जाए. 

लेकिन भारत जैसे देश में जहां दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या है (140 करोड़) और बेरोजगारी भी उसी अनुपात में है, वहां सेना को रोजगार का एक बड़ा जरिया भी माना जाता है. ऐसे में ग्रामीण भारत से आने वाले युवाओं में सरकार के अग्निपथ स्कीम को लेकर थोड़ा गुस्सा जरुर था जो चुनाव नतीजों में सामने आया. पोस्टल-बैलेट के नतीजों से ये भी सामने आया कि मौजूदा सैनिक भी अग्निवीर योजना से नाखुश हैं.   

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सल्ंस

ाल 

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