अमेरिकी एनएसए जैक सुलीवन की दिल्ली यात्रा के महज तीन हफ्तों के भीतर ही भारतीय सेना यूएस आर्मी के खास ‘स्ट्राइकर’ को लेने के लिए तैयार हो चुकी है. जल्द ही पूर्वी लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अमेरिकी इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईसीवी) के ट्रायल शुरु होने जा रहे हैं. भारतीय सेना को करीब 530 आईसीवी की जरूरत है जिनके लिए यूएस अपने स्ट्राइकर देने के लिए तैयार है.
माना जा रहा है कि अगर स्ट्राइकर भारतीय सेना के ट्रायल में सफल रहा तो कुछ आईसीवी तो सीधे अमेरिका से खरीदे जा सकते है और बाकी का निर्माण मेक इन इंडिया के तहत देश में ही किया जाएगा. पिछले महीने ही अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) भारत के दौरे पर आए थे तो अपने समकक्ष अजीत डोवल से आईसीईटी करार पर बातचीत की थी.
आईसीईटी के तहत इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के तहत स्ट्राइकर और एमक्यू-9 प्रीडेटर ड्रोन के साझा निर्माण पर खास बातचीत हुई थी. यही वजह है कि स्ट्राइकर के ट्रायल शुरु होने जा रहे हैं.
भारतीय सेना की मैकेनाइजड इन्फेंट्री की 30 बटालियन हैं जो रूसी बीएमपी व्हीकल का इस्तेमाल करती है. लेकिन भारतीय सेना अब स्ट्राइकर का भी प्रयोग करने की इच्छुक है. स्ट्राइकर में जैवलीन मिसाइल लगी है, जिसके साझा निर्माण के लिए भी अमेरिका ने ऑफर किया है.
चीन से सटी एलएसी पर तैनात करने के लिए भारतीय सेना अमेरिका का खास ‘स्ट्राइकर’ व्हीकल लेने की तैयारी कर रही ये इसी साल फरवरी के महीने में साफ हो गया था. तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे के अमेरिका दौरे के दौरान यूएस आर्मी ने ‘स्ट्राइकर’ इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईसीवी) यूनिट के बारे में खास तौर से जानकारी दी थी.
भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ अकाउंट पर थलसेना प्रमुख के यूएस आर्मी की जेबीएलएम (वाशिंगटन स्टेट) स्थित 1 कोर के मुख्यालय की तस्वीरें साझा की थी जिसमें यूएस आर्मी के अधिकारी ‘स्ट्राइकर’ से जुड़ी ब्रीफिंग देते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. तस्वीरों के बैकग्राउंड में स्ट्राइकर भी दिखाई पड़ रहा है.
पिछले दो दशक से स्ट्राइकर’ यूएस आर्मी का अहम हिस्सा बन गया है. क्योंकि अमेरिका ने अपनी इंफेन्ट्री यानी पैदल सैनिकों की रेजीमेंट को लगभग खत्म कर पूरी तरह से स्ट्राइकर पर आधारित ब्रिगेड कॉम्बेट टीम (बीटीसी) में तब्दील कर दिया है. ये स्ट्राइक ब्रिगेड मैकेनाइज्ड इफेंन्ट्री की तर्ज पर खड़े किए गए हैं. तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत (2016-19) ने भी अमेरिका और चीन की तरह ही भारतीय सेना में इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप (आईबीजी) के गठन को एक प्रयोग के तौर पर शुरु किया था.
हालांकि, भारत भी पिछले कई दशक से रुस के बीएमपी व्हीकल इस्तेमाल कर रहा है लेकिन अब उनकी जगह आधुनिक आर्मर्ड पर्सनल कैरियर (एपीसी) की जरूरत आ पड़ी है. गलवान घाटी की झड़प (2020) के बाद से भारतीय सेना को पूर्वी लद्दाख में तेजी से मूव करने वाली एपीसी की जरूरत महसूस हुई है. क्योंकि चीन के पास ऊंचाई और बेहद ही दुर्गम इलाकों तक में पहुंचने वाली गाड़ियां (हम्वी) हैं. यही वजह है कि अमेरिका अपने स्ट्राइकर भारत को देना चाहता है.
स्ट्राइकर में 8-9 सैनिक सवार हो सकते हैं और एलएमजी (लाइट मशीन गन) के अलावा रॉकेट लॉन्चर से भी लैस है. इसकी बॉडी आर्मर्ड प्रोटेक्टेड (बख्तरबंद गाड़ी) है जिससे इसमें सवार सैनिक गोलियों और बम-बारूद से सुरक्षित रहते हैं. इसमें सवार सैनिक जैवलिन एटीजीएम यानी एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से भी लैस रहते हैं. साथ ही ड्रोन के खतरों से निपटने के लिए इसमें शॉर्ट रेंज एयर-डिफेंस सिस्टम (एसएचओआरएडी) भी लगाया गया है.
इस बीच भारतीय सेना की उधमपुर स्थित उत्तरी कमान ने स्वदेशी टाटा ग्रुप के ‘क्रिस्टल’ (एपीवी) को अपने जंगी बेड़े में शामिल कर पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तैनात भी कर लिया है. टाटा के अलावा स्वदेशी कल्याणी ग्रुप और एलएंडटी भी भारत मे ही निर्मित एपीवी के साथ तैयार हैं. ऐसे में कयास इस बात के भी लग रहे हैं कि फिर भारत क्यों स्ट्राइकर लेगा.
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