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महिंद्रा के WhAP का ट्रायल, सेना में शामिल होने के लिए तैयार

आत्मनिर्भरता की ओर लगातार बढ़ रही है भारतीय सेना. भारतीय सेना इन दिनों एक नई स्वदेशी बख्तरबंद गाड़ी का ट्रायल ले रही है. ये बख्तरबंद गाड़ी महिंद्रा डिफेंस ने डीआरडीओ के साथ मिलकर तैयार की है. कंपनी के चैयरमैन आनंद महिंद्रा ने खुद सोशल मीडिया एक्स पर बख्तरबंद कॉम्बैट व्हीकल के वीडियो शेयर करके लिखा है. “ये गर्व की बात है.”

महिंद्रा की व्हैप (डब्लूएचएपी) का चल रहा है ट्रायल  
आनंद महिंद्रा ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा है, “मुझे इस बात का गर्व है कि महिंद्रा डिफेंस डीआरडीओ के साथ मिलकर विश्वस्तरीय प्रोडक्ट बनाता है. उनका विकास करता है. ये व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म का केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर (सीबीआरएन) वेरिएंट है. यह कई तरह के एंफीबियस ऑपरेशन में भाग ले सकता है.”

आनंद महिंद्रा ने वी़डियो भी शेयर किया और लिखा, “आप नीचे दिए गए वीडियो में पानी के अंदर इसके चलने की क्षमता देख सकते हैं. यह हिमालय की ऊंचाइयों पर भी बेहतर प्रदर्शन करता है. हम विभिन्न संस्करणों में 8×8 पहिए वाले बख्तरबंद वाहनों के सेना में शामिल होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.”

हर विषम परिस्थितियों में दौड़ सकती है नई बख्तरबंद गाड़ी
व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म के वी़डियो से साफ है कि ये नई बख्तरबंद गाड़ी सेना की ताकत को बढ़ा देगी. महिंद्रा डिफेंस के साथ डीआरडीओ ने जो व्हैप बनाया है वो एक कॉम्पैक्ट डिजाइन वाला है. सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये चाहे हिमालय की ऊंची पहाड़ी हो या पानी वाली जगह दोनों ही जगह काम कर सकता है. इसमें 600 हॉर्स पावर का डीजल इंजन लगा है जिसकी वजह से बेहद ऊंचाई वाली जगहों पर भी सफल ऑपरेशन करने में सक्षम है. इसका ट्रांसमिशन ऑटोमैटिक है. सड़क पर यह अधिकतम 95 किलोमीटर प्रति घंटे से चल सकती है. 

व्हैप में रिमोट से चलने वाली मशीन गन लगी है जिसे गाड़ी में बैठा सैनिक बिना बाहर निकले रिमोट से दुश्मनों पर चला सकता है. गाड़ी के अंदर ही ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन लगा है. साथ ही एडवांस्ड लैंड नेविगेशन सिस्टम लगा है.  ये व्हैप जवानों को हर तरह के केमिकल, बायोलॉजिकल और न्यूक्लियर हमले से बचा सकता है. (https://x.com/anandmahindra/status/1823615165855625334)

भारतीय सेना को चाहिए 530 एपीसी, यूएस ने दिया स्ट्राइकर का ऑफर

पिछले कई दशक से भारतीय सेना, रुस के बीएमपी व्हीकल इस्तेमाल कर रही है. अब उनकी जगह हालांकि, आधुनिक आर्मर्ड पर्सनल कैरियर (एपीसी) की जरूरत आ पड़ी है. गलवान घाटी की झड़प (2020) के बाद से भारतीय सेना को पूर्वी लद्दाख में तेजी से मूव करने वाली एपीसी की जरूरत महसूस हुई है. क्योंकि चीन के पास ऊंचाई और बेहद ही दुर्गम इलाकों तक में पहुंचने वाली गाड़ियां (हम्वी) हैं. भारतीय सेना को करीब 530 एपीसी की जरूरत है.

भारतीय सेना की मैकेनाइजड इन्फेंट्री की फिलहाल 30 बटालियन हैं जो रूसी बीएमपी व्हीकल का इस्तेमाल करती है. लेकिन भारतीय सेना अब अमेरिकी स्ट्राइकर (एपीसी) का भी प्रयोग करने की इच्छुक है. स्ट्राइकर में जैवलीन मिसाइल लगी है, जिसके साझा निर्माण के लिए भी अमेरिका ने ऑफर किया है. 

स्ट्राइकर में 8-9 सैनिक सवार हो सकते हैं और एलएमजी (लाइट मशीन गन) के अलावा रॉकेट लॉन्चर से भी लैस है. इसकी बॉडी आर्मर्ड प्रोटेक्टेड (बख्तरबंद गाड़ी) है जिससे इसमें सवार सैनिक गोलियों और बम-बारूद से सुरक्षित रहते हैं. इसमें सवार सैनिक जैवलिन एटीजीएम यानी एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से भी लैस रहते हैं. साथ ही ड्रोन के खतरों से निपटने के लिए इसमें शॉर्ट रेंज एयर-डिफेंस सिस्टम (एसएचओआरएडी) भी लगाया गया है. 

भारतीय सेना यूएस आर्मी के खास ‘स्ट्राइकर’ को लेने के लिए तैयार हो चुकी है. जल्द ही पूर्वी लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अमेरिकी इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईसीवी) के ट्रायल शुरु होने जा रहे हैं. जिनके लिए यूएस अपने स्ट्राइकर देने के लिए तैयार है.

माना जा रहा है कि अगर स्ट्राइकर भारतीय सेना के ट्रायल में सफल रहा तो कुछ आईसीवी तो सीधे अमेरिका से खरीदे जा सकते है और बाकी का निर्माण मेक इन इंडिया के तहत देश में ही किया जाएगा. इसी साल जून के महीने में अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) भारत के दौरे पर आए थे तो अपने समकक्ष अजीत डोवल से आईसीईटी करार पर बातचीत की थी. 

आईसीईटी के तहत इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के तहत स्ट्राइकर और एमक्यू-9 प्रीडेटर ड्रोन के साझा निर्माण पर खास बातचीत हुई थी. यही वजह है कि स्ट्राइकर के ट्रायल शुरु होने जा रहे हैं. 

क्रिस्टल हो चुके हैं लद्दाख में तैनात

इस बीच भारतीय सेना की उधमपुर स्थित उत्तरी कमान ने स्वदेशी टाटा ग्रुप के ‘क्रिस्टल’ (एपीवी) को अपने जंगी बेड़े में शामिल कर पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तैनात भी कर लिया है. टाटा के अलावा स्वदेशी कल्याणी ग्रुप और एलएंडटी भी भारत मे ही निर्मित एपीवी के साथ तैयार हैं.

यानी भारतीय सेना, स्ट्राइकर के साथ-साथ क्रिस्टल और प्राईवेट कंपनियों के एपीवी के साथ साथ अमेरिकी स्ट्राइकर भी अपने जंगी बेड़े में शामिल करना चाहती है. 

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