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Burkina Faso में अलकायदा का नरसंहार, 100 से ज्यादा की मौत

अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में अलकायदा के आतंकियों ने कत्ले आम मचा दिया है. मध्य बुर्किना फासो के एक गांव में आतंकियों ने 100 से ज्यादा गांव वालों और सैनिकों की हत्या कर दी है. बताया जा रहा है कि राजधानी औगाडौगू से 80 किलोमीटर दूर गांव के लोग सुरक्षा चौकियों और गांवों की रक्षा के लिए बनाई जा रही खाइयों की खुदाई के काम में सुरक्षा बलों की मदद कर रहे थे. इस दौरान अल-कायदा से जुड़े जमात नुसरत अल-इस्लाम अल-मुस्लिमीन (जेएनआईएम) समूह के आतंकवादियों ने धावा बोल दिया और अंधाधुंध फायरिंग कर दी.

बुर्किना फासो में एक साल बाद फिर घातक अटैक
बुर्किना फासो में तकरीबन  एक साल बाद बड़ा हमला हुआ है. बार्सालोघो कम्यून में ग्रामीण शनिवार को सुरक्षा बलों की मदद कर रहे थे. इसी दौरान अल-कायदा से जुड़े जेएनआईएम ग्रुप के लड़ाकों ने आक्रमण किया और गोलियां चला दीं. मौके पर कम से कम 100 लोगों की मौत हुई, जिसमें ज्यादा संख्या में गांव वाले और जवान हैं.
अल-कायदा ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए काया शहर के बार्सालोघो में ‘एक सैन्य चौकी पर पूर्ण नियंत्रण’ हासिल करने का दावा किया है.

लोगों के जीवन के लिए प्रतिबद्ध हैं: सरकार
बुर्किना फासो के सुरक्षा मंत्री महामदौ सना ने मृतकों की संख्या का खुलासा नहीं करते हुए कहा कि “हम क्षेत्र में इस तरह की बर्बरता को स्वीकार नहीं करेंगे. सभी प्रभावित लोगों को चिकित्सा और मानवीय सहायता दी जा रही है. हम लोगों के जीवन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं.”

दरअसल बुर्किना फासो का लगभग आधा हिस्सा सरकारी नियंत्रण से बाहर है क्योंकि बढ़ते जिहादी हमलों से देश तबाह हो गया है. अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े जिहादियों ने हजारों लोगों को मार डाला है और 20 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है.

अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संस्था आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट के अनुसार, इस साल देश में सशस्त्र समूहों के हमलों में कम से कम 4,500 लोग मारे गए हैं.

कहां हैं बुर्किना फासो

पश्चिमी अफ्रीकी देश है बुर्किना फासो जिससे सटे हैं घाना, माली, आईवरी कोस्ट और निगर. इस देश में पिछले दो साल से सेना का शासन है यानी मिलिट्री रूल है. इस मिलिट्री जुंटा का प्रमुख है कैप्टन इब्राहीम तारो-रे (या तोरे). अपने देश का राष्ट्राध्यक्ष होने के बावजूद  हमेशा कमांडो की यूनिफॉर्म में रहता है कैप्टन इब्राहीम. हाथों में टेक्टिकल ग्लव्स पहने रहता है. वर्ष 2022 में जब कैप्टन ने अपने एक साथी कमांडर को हटाकर देश की कमान संभाली तो ये कमांडो की तरह अपने चेहरे पर नकाब लगाकर रखता था. इब्राहीम दुनिया का सबसे कम उम्र का राष्ट्राध्यक्ष है. लेकिन हाल के दिनों में अपने सख्त विचारों और पूरे अफ्रीका के लिए रणनीति को लेकर ये अचानक सुर्खियों में आ गया.

रूस का करीबी है बुर्किना फासो

दरअसल, पिछले साल जुलाई में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में रशियन-अफ्रीका सम्मिट का आयोजन किया गया था. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस समिट को संबोधित किया था. इस सम्मेलन में अफ्रीका के कुल 19 देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया था. कई अफ्रीकी देशों के मंत्रियों ने भी शिरकत की थी. कैप्टन इब्राहीम भी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने रूस गया था. उसी दौरान रशियन-अफ्रीकी कॉनक्लेव को संबोधित करते हुए कैप्टन इब्राहीम ने पूरी दुनिया से सवाल किया कि जब अफ्रीका में सबसे ज्यादा मिनरल्स का भंडार है, गोल्ड, डायमंड और यूरेनियम तक पूरी दुनिया को सप्लाई करता है तो अफ्रीका सबसे गरीब कॉन्टिनेंट क्यों है.

पुतिन की मौजूदगी में दिए भाषण में कैप्टन इब्राहीम ने यूरोप और दूसरे पश्चिमी देशों के उपनिवेश और साम्राज्यवाद पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि अफ्रीका आज तक गुलाम क्यों है. अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पश्चिमी देशों की कठपुतलियां तक करार दे दिया. उन्होंने कहा की अफ्रीका के नेता भीख मांगने के लिए दुनियाभर का चक्कर क्यों काटते हैं. कैप्टन इब्राहीम ने कहा कि कोई भी दास या गुलाम जबतक अपनी आजादी के लिए नहीं लड़ता तब तक वो किसी तरह के विलासिता का हकदार नहीं हो सकता है.

रूस में दिए दमदार भाषण से कैप्टन इब्राहीम रातों रात अफ्रीका सहित पूरी दुनिया में हीरो की तरह देखा जानेलगा. रूस से लौटने पर बुर्किना फासो की जनता ने अपने चहेते हीरो को पलकों पर बिठा लिया. अपने देश लौटने पर उनका जमकर स्वागत हुआ.

अपने देश में मशहूर है कैप्टन

कैप्टन इब्राहीम के मशहूर होने का एक बड़ा कारण पिछले दो साल में उसने जो अपने देश की जनता के लिए किया है उसमें छिपा है. अपने देश की कमान संभालने के बाद सबसे पहले तो कैप्टन इब्राहिम ने अपने देश से फ्रांस की सेना को बाहर किया. दरअसल, बाकी पश्चिमी अफ्रीकी देशों के तरह 60 के दशक तक बुर्किना फासो भी फ्रांस की एक कालोनी थी। लेकिन आजादी के बाद भी राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद के चलते फ्रांसीसी सैनिक यहां तैनात रहते थे. इसके अलावा अपने देश के नागरिकों के लिए विकासशील नीतियों को लेकर आया और महिलाओं को सम्मान दिया. इसके चलते ही कैप्टन इब्राहीम के लोग शंकरा की उपाधि देने लगे. 80 के दशक में थॉमस शंकरा बुर्किना फासो का एक लोकप्रिय मिलिटरी शासक था.

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