इस्लामाबाद में आयोजित एससीओ समिट को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आतंकवाद के मुद्दे पर सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं धोया, बल्कि इशारों में चीन की भी क्लास लगा दी. जयशंकर ने कहा कि समूह के सदस्य देशों क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की अनदेखी कर मात्र व्यापार के क्षेत्र में सहयोग नहीं कर सकते.
विदेश मंत्री ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि चीन लगातार सीमा-विवाद को अलग कर भारत से आर्थिक और व्यापारिक सहयोग की अपेक्षा कर रहा है. लेकिन जयशंकर ने साफ कर दिया कि शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक ट्रेड और ट्रांजिट जैसी वैश्विक मान्यताओं को चेरी-पिक करते रहेंगे.
भारत, पाकिस्तान और रूस के साथ चीन भी एससीओ समूह का एक अहम सदस्य-देश है. पूर्वी लद्दाख में भारत का चीन के साथ पिछले चार सालों से सीमा विवाद चल रहा है. दोनों देशों की सेनाओं के बीच में तनातनी चल रही है और बड़ी संख्या में सैनिकों का जमावड़ा है.
चीन अपने फ्लैगशिप प्रोजेक्ट बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) को पूरी दुनिया में फैलाना चाहता है. हालांकि, भारत पहले ही चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में जुड़ने से मना कर चुका है. साथ ही पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर (पीओके) में पाकिस्तान-चीन इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) पर एतराज जता चुका है.
जयशंकर ने चीन के प्रीमियर (प्रधानमंत्री) ली कियांग की मौजूदगी में साफ तौर से कहा कि एससीओ समूह के सदस्य-देशों में सहयोग, आपसी विश्वास और बराबर की संप्रभुता पर आधारित होना चाहिए.
विदेश मंत्री ने कहा कि सदस्य-देश क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का संज्ञान लें और कॉपोरेशन आपसी साझेदारी पर आधारित होना चाहिए, न कि एकतरफा एजेंडा पर.
जयशंकर ने अपने संबोधन में पाकिस्तान को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि अगर सीमा-पार आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरवाद जैसी हरकतें होती रहेंगी तो उससे सदस्य-देशों के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी और एक-दूसरे के नागरिकों के बीच संबंधों में सुधार मुश्किल है. (आतंकवाद पर जयशंकर ने पाकिस्तान को धोया, शहबाज बैठे सुनते रहे)
एससीओ मंच से भी जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार का आह्वान करते हुए भारत सहित विकासशील देशों को जगह देने का पुरजोर समर्थन किया.