एलएसी पर हुए डिसएंगेजमेंट के बाद रूस के कज़ान शहर में चल रही ब्रिक्स समिट से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बुधवार को अहम मुलाकात करने जा रहे हैं. खुद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इस बैठक के बारे में पुष्टि की है.
साढ़े चार साल बाद भारत और चीन के संबंध पटरी पर आते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. रूस के कज़ान में चल रही ब्रिक्स समिट (22-24 अक्टूबर) से ऐन पहले दोनों देश पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर डिसएंगेजमेंट के लिए तैयार हो गए हैं. ऐसे में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 52 महीनों से बंद भारत और चीन की सेनाओं की पैट्रोलिंग फिर से शुरु हो रही है.
सोमवार को भारत और चीन के बीच पैट्रोलिंग से जुड़े समझौते को लेकर खुद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने जानकारी साझा की थी. मिसरी के मुताबिक, “पिछले कुछ हफ्तों के दौरान भारत और चीन के डिप्लोमेटिक और मिलिट्री वार्ताकार विभिन्न मंचों पर एक-दूसरे के साथ निकट संपर्क में हैं. इन चर्चाओं के परिणामस्वरूप, भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पैट्रोलिंग व्यवस्था पर सहमति बनी है, जिससे 2020 में इन क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले विवादों का समाधान होगा.” विदेश सचिव के मुताबिक, “इस पर अगला कदम जल्द लिया जाएगा.”
पिछले चार सालों से एलएसी पर गलवान घाटी, फिंगर एरिया, हॉट-स्प्रिंग, गोगरा और कैलाश हिल रेंज जैसे चार-पांच विवादित इलाकों पर डिसएंगेजमेंट पर पहले ही हो चुका था. लेकिन डेप्संग और डेमचोक जैसे ‘लीगेसी’ विवादित इलाकों पर पिछले एक दशक से पैट्रोलिंग बंद थी. सोमवार को हुए समझौते के बाद माना जा रहा है कि यहां भी सैनिक डिसएंगेज हो गए हैं और पैट्रोलिंग शुरु हो जाएगी.
राजधानी दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी बताया कि दोनों देशों की सेनाएं ‘2020 वाली स्थिति’ पर वापस आने के लिए तैयार हो गई हैं. (चीन ने भी माना 04 विवादित इलाकों में हुआ Disengagement)
पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भारत और चीन के बीच 65 पैट्रोलिंग पॉइंट हैं, जो काराकोरम पास (दर्रे) से होते हुए दौलत बेग ओल्डी, डेप्संग प्लेन, गलवान घाटी और फिंगर एरिया (पैंगोंग लेक) से होते हुए चुशूल और डेमचोक तक जाते हैं. क्योंकि दोनों देशों के बीच एलएसी पर कोई तारबंदी नहीं है (जैसा पाकिस्तान से सटी नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पर है), ऐसे में दोनों देशों की सेनाओं का अपना-अपना परसेप्शन है. इसके कारण पैट्रोलिंग के दौरान भारत और चीन कै सैनिक एक दूसरे की सीमा में दाखिल हो जाते हैं और फेस-ऑफ या फिर झड़प का कारण बन जाता है.
जून 2020 में भी चीनी सेना ने गलवान घाटी में ऐसा करने की कोशिश की थी, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाओं में खूनी झड़प हुई थी. इस लड़ाई में भारत के एक कर्नल रैंक के कमांडिंग ऑफिसर सहित कुल 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था, हालांकि, हताहत हुए सैनिकों का आंकड़ा चीन ने कभी सार्वजनिक नहीं किया है. भारत के खिलाफ लड़ते हुए चीन ने अपने चार सैनिकों को मरणोपरांत वीरता मेडल से जरूर नवाजा था.
अप्रैल 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही थी, चीन की पीएलए सेना ने गुपचुप तरीके से युद्धाभ्यास के नाम पर पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिकों का जमावड़ा कर लिया था. ऐसे में भारत ने भी रातो-रात 50 हजार सैनिक, टैंक, तोप, मिलिट्री व्हीकल, फाइटर जेट और मिसाइलों का बेड़ा तैनात कर दिया था.
अप्रैल 2020 से ही दोनों देशों के 50-50 हजार सैनिक एलएसी पर ‘आई बॉल टू आई बॉल’ मौजूद है और जबरदस्त तनाव बना हुआ है.
मंगलवार को थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भी कहा था कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुए डिसएंगेजमेंट के बाद बेहद जरुरी है कि दोनों देशों के बीच आपसी ‘विश्वास’ पैदा हो. विश्वास इस बात का कि बॉर्डर पर तैयार किए गए बफर जोन में सैनिक ना पहुंचे, जो पैट्रोलिंग के जरिए ही पता लगाया जा सकता है. (Disengagement के साथ आपसी विश्वास जरूरी: थलसेना प्रमुख)