एलएसी पर डिसएंगेजमेंट समझौता होते ही चीन ने भारतीय पत्रकारों पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं. चीन सरकार के निमंत्रण पर इनदिनों भारतीय पत्रकारों का एक समूह बीजिंग दौरे पर गया है. ये वही चीन है जो अपने देश में पत्रकारों पर बंदिशे लगाकर रखता है. इसकी बानगी इसी हफ्ते चीन के झुहाई शहर में देखने को मिली जहां बीबीसी के पत्रकार को एक घटना की कवरेज के दौरान जोर-जबरदस्ती की गई.
12 नवंबर को झुहाई शहर में एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के बाहर एक कार सवार सिरफिरे ने दर्जनों लोगों को कुचल दिया था. इस घटना में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और दर्जनों लोग घायल हुए थे.
झुहाई की घटना की कवरेज के लिए बीबीसी का एक पत्रकार पहुंचा तो लाइव प्रसारण के दौरान ही कुछ लोगों ने कवरेज में व्यवधान डालना शुरू कर दिया. बताया जा रहा है कि ये लोग चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सदस्य थे और घटना की कवरेज नहीं चाहते थे. वे नहीं चाहते थे कि घटना के बारे में चीन के बाहर दुनिया को कोई जानकारी लगे.
बीबीसी के पत्रकार की हैकलिंग का एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें चार-पांच लोगों ने पत्रकार को घेर रखा है. इसके तुरंत बाद ही चीन की पुलिस वहां पहुंची और पूरे एरिया की घेराबंदी कर दी ताकि कोई घटनास्थल ना जा सके. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1857335722769887514)
हैरानी की बात है कि जब बीबीसी की टीम अगले दिन फिर स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के बाहर पहुंची तो पाया कि वहां से दुर्घटना से जुड़े सभी सबूतों को साफ कर दिया गया था. वहां ऐसा नहीं लग रहा था कि एक दिन पहले कोई बड़ी (अप्रिय) घटना हुई है.
भले ही चीन एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति और ग्लोबल पावर बनने का दावा करता है लेकिन हकीकत ये है कि वहां प्रेस और मीडिया को अभी भी खुलकर बोलने और लिखने की इजाजत नहीं है. चीन में सिर्फ सीसीपी का सरकार मीडिया है जो अपने सरकार के इशारे पर ही काम करता है.
हाल के सालों में चीन ने विदेशी मीडिया और ग्लोबल न्यूज एजेंसियों के प्रतिनिधियों को बीजिंग में रहकर पत्रकारिता करने की इजाजत जरूर दी है लेकिन उन पर भी बंदिशें जारी हैं. झुहाई की घटना से ये साफ हो जाता है.
हालांकि, ये पहली घटना नहीं है जब इंटरनेशनल मीडिया को काम करने से रोका गया है. पिछले साल अक्टूबर (2023) में जब चीन के पूर्व प्रीमियर (प्रधानमंत्री) ली कियांग की अचानक मौत हो गई थी, उस वक्त भी विदेशी पत्रकारों को कवरेज करने से रोका गया था.
ली कियांग, चीन में बेहद लोकप्रिय थे. बावजूद इसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हे दूसरे कार्यकाल के लिए प्रीमियर नियुक्त नहीं किया था. ली की अचानक मौत से उनके घर पर हजारों-लाखों की तादाद में चीनी लोग इकठ्ठा गए थे. जैसे ही विदेश पत्रकार कवरेज के लिए वहां पहुंचे, सीसीपी कैडर वहां पहुंच गए. सीसीपी के सदस्यों ने विदेशी पत्रकारों से बदसलूकी की और कवरेज नहीं करने दी.
ऐसे चीन ने अब भारतीय पत्रकारों को अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए बीजिंग का न्योता दिया है. गलवान घाटी की झड़प (जून 2020) के बाद से भारत और चीन के संबंध बेहद नाजुक मोड़ पर पहुंच गए थे. दोनों देशों के बीच आवाजाही तक बंद हो गई थी. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थी.
पिछले महीने हालांकि, दोनों देशों के बीच हुए डिसएंगेजमेंट समझौते के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. हाल ही में रूस के कज़ान में ब्रिक्स समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात से संबंध पटरी पर आना शुरु हो गए हैं.
संबंधों में सुधार देखते ही चीन ने भारतीय पत्रकारों के एक समूह को बीजिंग का निमंत्रण दे डाला. साफ है कि भारतीय पत्रकारों के जरिए चीन की सीसीपी सरकार अपना ‘सेलेक्टिव नैरेटिव’ बताने में जुट जाएगी.
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चीन में मीडिया पर पाबंदी कायम, Narrative गढ़ने के लिए भारतीय पत्रकार आमंत्रित
- by Neeraj Rajput
- November 15, 2024
- Less than a minute
- 1 day ago